मोहन मंगलम
आज जब चहुं ओर राम की चर्चा छिड़ी है, हर किसी की जुबां पर ‘मेरी झोपड़ी के भाग आज खुल जाएंगे, राम आएंगे’, ‘सजा दो घर को गुलशन सा, मेरे सरकार आए हैं’ की गूंज सुनाई दे रही है, समाचार-पत्र-पत्रिकाओं से लेकर टीवी चौनल्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक राम ही राम दिखाई-सुनाई दे रहा है, गलियां-मोहल्लों से लेकर बाजार तक भगवा झंडे से अटे पड़े हैं, भारत की कौन कहे, पूरा विश्व राममय हो गया है। ऐसे में अयोध्या की चर्चा करना स्वाभाविक भी है और समीचीन भी।
सबसे पहले बात ‘अयोध्या’ शब्द की। ‘अयोध्या’ संस्कृत भाषा की क्रिया युद्ध, ‘लड़ना, युद्ध छेड़ना’ से बना व्युत्पत्ति है। योध्या भविष्य का निष्क्रिय कृदंत है, जिसका अर्थ है ‘लड़ा जाना’; आरंभिक ‘अ’ ऋणात्मक उपसर्ग है; इसलिए, अयोध्या का अर्थ है ‘लड़ा नहीं जाना चाहिए’। वहीं, अथर्ववेद द्वारा इसका ‘अजेय’ अर्थ प्रमाणित है, जो इसका उपयोग देवताओं के अजेय शहर को संदर्भित करने के लिए करता है। नौवीं शताब्दी की जैन कविता आदि पुराण में भी कहा गया है कि अयोध्या केवल नाम से नहीं बल्कि दुश्मनों से अजेय होने की योग्यता से अस्तित्व में है।
अदिकवि कालिदास अपने महाकाव्य ‘रघुवंशम’ में रघुवंश के साथ ही अयोध्या नगर के बसने की भी बहुत दिलचस्प कथा लिखी है। ‘रघुवंशम’ के अनुसार, अयोध्या एक स्त्री थी, जिसके नाम पर अयोध्या नगर बसा है। कालिदास तो वर्णन के सिद्धहस्त कवि हैं। अपने काव्य में वे बारीक से बारीक विवरण प्रस्तुत करते हैं। रेशा-रेशा खोलकर रख देते हैं।
रघुवंशम् के अनुसार अयोध्या एक स्त्री का नाम है। अयोध्या इस नगर की अधिष्ठात्री देवी भी कही जाती हैं। इस स्त्री अयोध्या के नाम पर ही अयोध्या नगर बसा। रघुवंशम् के मुताबिक अयोध्या को इंद्र का वरदान था कि वह कभी बूढ़ी नहीं होगी। सदैव जवान रहेगी। आज फिर कालिदास के अमर महाकाव्य के भाव हमारे सामने उपस्थित हो रहे हैं। अयोध्या नगरी एक बार फिर सबसे अधिक जवान होने की ओर अग्रसर है। अयोध्या का वैभव फिर लौट रहा है।
इक्ष्वाकु वंश के महाराज दिलीप संतान सुख से वंचित थे। एक ऋषि से उन्होंने अपनी पीड़ा बताई। ऋषि ने उनसे कहा कि बागेश्वर से सरयू नदी निकलती है। निर्दिष्ट स्थान पर इस नदी में सपत्नीक स्नान कर पूजा-पाठ करें, संतान प्राप्ति होगी। इसके बाद जहां भी कहीं जाइएगा, वहां एक स्त्री मिलेगी। वहीं अपना नगर बसा लीजिएगा।
समय बीतता गया। महाराज दिलीप एक दिन सरयू नदी में नहाकर निकले तो वह ‘अयोध्या’ नाम की स्त्री मिली। दिलीप ने पूछा, कब से हो यहां? तो वह स्त्री बोली कि दो लाख साल से यहीं हूं। महाराज दिलीप हंसे और बोले, इतनी तो तुम्हारी उम्र भी नहीं है। इस पर अयोध्या ने इंद्र के वरदान के बारे में बताते हुए कहा कि इसी के प्रभाव से वह चिरयौवना है। इसके बाद महाराज दिलीप ने वहां उसी स्त्री अयोध्या के नाम से नगर बसाया और न्याय प्रिय शासन की स्थापना की। बहुत दिन बीत गए, पर राजा दिलीप को संतान सुख नहीं मिला। वे मुनि वशिष्ठ के पास गए और अपनी पीड़ा बताई। मुनि वशिष्ठ ने बहुत विचार और गणना आदि के बाद महाराज दिलीप को बताया कि गऊ दोष है। गाय की सेवा करें। संतान प्राप्ति होगी। महाराज दिलीप ने गाय की सेवा शुरू की। उस गाय का नाम नंदिनी था। एक दिन अचानक एक शेर आया और नंदिनी गाय को शिकार बनाना चाहा। इस पर महाराज दिलीप शेर के सामने आकर खड़े हो गए और उससे निवेदन किया कि गो माता के बजाय मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लें। यह सुनती ही शेर ने रूप बदल लिया और कहा कि आप गो माता की सेवा की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। हम आप की गोसेवा से प्रसन्न हैं।
इसके बाद महाराज दिलीप की पत्नी सुदक्षिणा के गर्भ से एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया भगीरथ। भगीरथ ही कठोर तप करके स्वर्ग से मां गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल हुए। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ हुए और ककुत्स्थ के पुत्र रघु का जन्म हुआ। कालांतर में इसी रघु के पराक्रम के कारण इस वंश को रघुवंश नाम से जाना गया। फिर अज के पुत्र दशरथ तथा उनके पुत्र के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्म हुआ।
राम ने जब भाइयों और पुत्रों के बीच सारा राज-पाट बांटकर सरयू नदी में जल समाधि ले ली तो बाद के समय में अयोध्या नगरी पूरी तरह उजड़ गई। ऐसे में अयोध्या नाम की वह स्त्री पहुंची कुश के पास, जो आज के छत्तीसगढ़ स्थित अपने महल में रह रहे थे। अपना परिचय देते हुए उस स्त्री ने कहा कि मैं अयोध्या हूं। मैं तुम्हारे सभी पुरखों को जानती हूं। सभी मेरी गोद में खेले हैं। फिर अयोध्या ने इंद्र के वरदान के बारे में बताया। और बताया कि राम के बाद अयोध्या नगर उजड़ कर अनाथ हो गया है। जंगल हो गया है। अयोध्या में अब मनुष्य नहीं , जानवरों का वास हो गया है। सो तुम चलो और अयोध्या को फिर से बसाओ। अयोध्या की प्रार्थना सुनकर कुश अयोध्या लौटे और उजड़ चुकी अयोध्या को फिर से बसाया। ऐसा माना जाता है कि आज की अयोध्या कुश की बसाई हुई अयोध्या है।
उजड़ चुकी अयोध्या को जैसे कुश ने कभी दुबारा बसाया था, वैसे ही मुगलों के आक्रमण के बाद, फिर से बर्बाद हो रही अयोध्या और उसकी अस्मिता को प्रतिष्ठित करने का काम एक बार फिर से किया जा रहा है। ऐश्वर्य से परिपूर्ण अयोध्या को नई साज-सज्जा मिल रही है। अयोध्या धाम रेलवे जंक्शन से लेकर अंतरराष्ट्रीय महर्षि वाल्मीकि एयरपोर्ट तक के निर्माण के साथ ही विश्व स्तरीय नगर नगर बनने की मार्ग पर अग्रसर है अयोध्या। वैश्विक पर्यटन का एक बड़ा केंद्र बनकर उभर रही है। सांस्कृतिक राजधानी के रूप में तो प्रतिष्ठित हो ही गई है।