रामा तक्षक नीदरलैंड्स
दुनिया एक बहुत बड़ा विश्वविद्यालय है। बहुत सी बातें हमें दूसरे देशों की परम्पराओं से सीखने को मिल सकती हैं। इसके लिए यह जरुरी है कि दिमागी तौर पर हमारी तैयारी हो। यह आवश्यक है कि हम दिमागी तौर पर खुले हों। यह मानकर बैठ जाना कि हम सर्वश्रेष्ठ हैं। हमारी संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है। ऐसी सोच विश्व गांव के पटल पर बुद्धमानी नहीं है। हमारे शास्त्रों में जो लिखा है वह हमारी विरासत अवश्य है लेकिन जरूरी नहीं कि वह सब हमारी दिनचर्या और हमारी संस्कृति का हिस्सा है।
हमें वर्टीकल व्यवस्था पर संवाद करना होगा। हमें लिखना होगा। हमें मानवता के लिए खड़ा होना होगा। यह मानवीयता की दहलीज की मांग है। मानव होने का तकाज़ा भी है। समाज में आर्थिक अंतराल सदा रहेगा। इसे नहीं मिटाया जा सकता है। वर्टिकल व्यवहार को मिटाना होगा। इस सोच को मिटाना होगा कि ’’साहिब आये हैं।’’ हम सब मनुष्य हैं। मानव देह में सब समान हैं। अस्तित्व ने मानव देह के रूप में सबको एक जैसी देह दी है। कहना होगा कि ’’अतिथि आये हैं।’’
पारिवारिक उत्सवों जैसे जन्मदिन, विवाहोत्सव पर या सामाजिक आयोजनों पर नेताओं पर सबकी आंखें जम जाती हैं। सब नेताजी को घेरकर खड़े हो जाते हैं। अपनी बात कहने की होड़ सी लग जाती है। नेता जी के साथ खड़ा होकर फोटो की प्रतिस्पर्धा सी लग जाती है। फिर सिलसिला शुरू होता है सोसिअल मीडिया पर पोस्ट करने और लाइक करने और टिप्पणी करने का। बहुत ऊर्जा भी इस प्रक्रिया में खर्च होती है। इस सब प्रक्रिया में अहम अपनी यात्रा पर होता है। जबकि जमीन पर इस शाबाशी को पाने के लिए कोई सृजनात्मक उपलब्धि दिखाई नहीं देती है। ऐसी उपलब्धि जो समाज के काम आ सके।
हमारा समाज जातियों में बंटा है। समाज का जातियों में बंटा होना सामाजिक विकास के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। आप इस तथ्य पर आंख पसार कर देखें। समाज का जातियों में बंटा होना नेताओं के हाथ में हंटर सा है। भेड़ों के बीच नेताजी भेड़िए का रूप है। नेता चाहे जिस समूह से एक या अधिक भेड़ों को नोंच ले। उस समय के मिमींयाने को भी कोई नहीं सुनता।
जब आप किसी नेता से बंध जाते हैं तो आप उस नेता के अच्छे बुरे सब कामों का स्वागत करते हैं। नेता के पक्ष में बुराई को भलाई कहने के लिए भी तर्क ढ़ूंढ़ लेते हैं। तर्क के तले अपनी सामाजिक अस्मिता को दांव पर लगाने से नहीं चूकते। आप तर्क के तले दबने को राजी हो जाते हैं। एक समाज का हिस्सा होने के बजाय आप दलगत की दलदल का हिस्सा बन जाते हैं। जाति विशेष के नाम पर बहुत सी महासभाओं का आयोजन किया जाता है। राज्यों में चुनावों से पहले इन आयोजनों में बहुत गति आ जाती है। बहुत बड़े बड़े पोस्टर देखने को मिलते हैं। जिसमें जाति विशेष के राजनीतिक पिछड़ेपन या राजनीतिक महात्वाकांक्षाओं को पटल पर सामने रखा जाता है। जबकि समाज में रहते हुए हम सबकी मूलभूत आवश्यकताएं एक हैं, जैसे शिक्षा, भोजन, पानी, बिजली, सड़क, सार्वजनिक परिवहन आदि। कोई व्यक्ति यदि आपके घर, एक समाज की इकाई के रूप में, अपने पदनाम का उपयोग करता है। ऐसे व्यक्ति को दर्पण दिखाना आवश्यक है। पदनाम किसी कार्यालय विशेष का अधिभार है। पदनाम का जुड़ाव सम्बंधित कार्यालय से जुड़ा है। सम्बंधित कार्यालय के कार्यों से जुड़ा है। पदनाम का उपयोग सम्बंधित कार्यालय के कार्यों में ऊर्जा झोंकने का नाम है। पदनाम समाज व्यवस्था की सेवा की इकाई है। कार्यालय के बाहर दिखावे की व्यवस्था किस काम की ? हां, पदनाम का दिखावा कर, भ्रष्टाचार की कड़ी जोड़ने का प्रयास हो सकता है।
नीदरलैंड्स में विवाहोत्सव, जन्मोत्सव या विवाह वर्ष गांठ के आयोजन पर सब केवल अपने नाम के साथ अपना परिचय देते हैं। पदनाम का उपयोग कोई नहीं करता है। चाहे प्रधानमंत्री ही क्यों न हो। यदि सामाजिक आयोजन में कोई भूलकर भी अपने पदनाम का उपयोग करता है तो शब्दों में, उसे घर के बाहर, उसके पदनाम के साथ, उसके कार्यालय का रास्ता दिखा दिया जाता है। उस व्यक्ति से कहा जाता है ’’जाओ अपने कार्यालय में, वहां जाकर काम करके अपनी श्रेष्ठता दिखाओ।’’
इस बात का एक बहुत सुंदर उदाहरण है। नीदरलैंड्स के राजा और रानी अभिभावक के रूप में अपनी बेटियों के स्कूल मीटिंग में जाते हैं। वे सामान्य कुर्सी पर बैठते हैं। सभी अभिभावक मण्डली का हिस्सा बन जाते हैं। राजा और रानी का कहना भी है ’’हम अभिभावक के रूप में स्कूल में आये हैं। आधिकारिक रूप से राजा और रानी की भूमिका में नहीं।’’ इस उपरोक्त उदाहरण से मानवीय व्यवहार को सहज हॉरिजॉन्टल बनाया जा सकता है।