समीक्षक - मोहन मंगलम
साहित्य की विभिन्न विधाओं में जो विपुल सृजन हुआ है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा आधी आबादी के नाम पर है। विभिन्न साहित्यकारों ने अपनी दृष्टि के अनुसार स्त्री के विभिन्न रूपों पर लेखन के साथ ही स्त्री जीवन के विभिन्न पहलुओं को पाठकों के सामने रखने का प्रयत्न किया है। बी. एल. माली ‘अशांत’ के आत्मकथात्मक उपन्यास ‘मृत्यु विकल्प’ की नायिका स्त्री जीवन में आने वाली चुनौतियों को मात देने के साथ ही कामयाबी के नये प्रतिमान गढ़ती है।
फ्लैप पर प्रकाशित परिचयात्मक पंक्तियों में उपन्यास का बीज तत्व हमारे सामने उपस्थित होता है - “मैं उन आदर्शों के खिलाफ हूँ जो स्त्री के लिए किसी जमाने ने बनाए। यह सदी औरत को और कुछ करने के लिए कहती है। आज के आदर्श इस सदी के जीवन संघर्ष के अनुसार स्थापित होंगे। मैंने मृत्यु के विकल्प ढूंढें हैं। मैं मरूं ही क्यों? जीवन के सत्यों का सामना कर मैंने जीवन जीया है। हर स्त्री को यह जीवन, जो उसे जीने को मिला है, सुंदर ढंग से हंस-हंसकर संघर्ष करते हुए जीना होगा, पड़ेगा नहीं। मैंने जीने के लिए अपनी जिंदगी को परिभाषित कर दांव पर लगाया है। मैं मोक्ष की कल्पना नहीं करती। जो जिंदगी मुझे जीने के लिए मिली है, उसे जीने के तमाम रास्ते तय किए हैं। मैं मरने के खिलाफ हूँ।”
पृष्ठ दर पृष्ठ पढ़ते हुए यह उपन्यास हमें स्त्री के सामाजिक जीवन में आने वाली विसंगतियों की परतों को उधेड़ने के साथ ही सूक्ति वाक्य के रूप में पाठकों का पथ-प्रदर्शन भी करती है। बानगी देखें - “पराये पैसे और पराई मौज घर में गलत बात लेकर आती है।” कई बार पति की अर्मण्यता भी पत्नी को जीवन निर्वाह के लिए अपने शरीर का सौदा करने के लिए विवश करती है - “मेरे जैसी औरतों की यह त्रासदी है। हमारी पूरी कॉलोनी इन पतियों के कारण एक विशेष संबोधन प्राप्त कर चुकी है। हमारे सेक्टर का नाम आते ही लोगों के दिमाग में, आंखों में एक तस्वीर खिंच जाती है। घर “गाछी” बन चुके हैं। ‘सोना’ तो इनका मजाक है जो विशेषण रूप में कैसे लगा, पता नहीं, लेकिन यह रूप विख्यात है।”
नायिका अपने तेज का परिचय इन शब्दों में देती है - “लोग अपना मैल गंगा में बहाते हैं। इसके बाद पता नहीं क्यों फिर-फिर पाप करते हैं। मैंने गंगा में अपने पाप नहीं बहाये हैं, अपने पास रखे हैं। अपने पाप अगर हैं तो मैं गंगा को देकर उसे मैला नहीं करूँगी। गंगा में नहाने से मुक्ति नहीं। मेरी मुक्ति अलग है। कल फिर मुझे जीने के लिए संघर्ष करना है। मैं करूँगी, मरूँगी नहीं!”
दुनियावी तौर-तरीकों को ठेंगा दिखाने का माद्दा रखने वाली नायिका बुलंद स्वर में कहती है - “जीवनशैली कैसे निर्धारित होती है यह जीवन क्षेत्र निर्धारित करता है लेकिन जीने की जिजीविषा होनी चाहिए। औरत का जीवन बहुत अलग है। वह जन्म दर जन्म जीकर अपनी जीवनशैली निर्धारित करती है।”
उपन्यास का सार तत्व इन पंक्तियों में हमारे सामने आता है - “जिंदगी ऊंच-नीच, ओछी-बड़ी, कम-बेसी का भरा-पूरा रूप है। यह तरकीब और तरीके से जी जाती है। मरा नहीं जाता। जीवन जीने के लिए मिलता है, हाथ में जहर लेकर मरने के लिए नहीं। जहर तो कंठों को नीलकंठ करने हेतु पीया जाता है और तब न आदमी मरता है और न औरत। दोनों नीलकंठ बन सकते हैं। शिव तो आदमी थे। औरतों को किसी ने नीलकंठ नहीं कहा। शिव तो एक थे, औरतें अनगिनत। वे नीलकंठ बनीं, धरती पर आज भी नीलकंठ जीवन जी रही हैं। मैंने गरल पीया है और वह मेरे गले में है। मेरा गला नीला हो गया है। आप देखो! मैं देखती हूँ।”
एक अन्य स्थान पर स्त्री शक्ति का परिचय कुछ यूं सामने आता है - “मैं अर्द्ध पुरुष रूप हूँ। मैं अर्द्ध पुरुषेश्वर रूप हूँ। मैं औरत हूँ, सशक्त औरत रूप। मैं एक अपना रूप हूँ। आंदोलन नहीं। नारा नहीं, प्रपंच नहीं, एक शाश्वत यथार्थ हूँ। मैं उपदेश नहीं। ज्ञान नहीं, अज्ञान नहीं। मैं द्रष्टा हूँ - धरती की भाँति, प्रकृति की भाँति।”
महज बाहरी सौंदर्य को निखारने में बहुमूल्य समय और संसाधन जाया करने वाली लड़कियों-युवतियों को चेताते हुए नायिका कहती है - “कारोबारी तौर-तरीके और संजीदगी नहीं है तो गोरी चर्म किसी काम की नहीं। जिसे सौंदर्य कहा जाता है, वह संजीदगी लिये हो, शालीन और गुनगुने आभास देने वाला हो तो लोग उसके प्रशंसक हो जाते हैं। बार-बार देखना चाहते हैं। प्रकृति का सौंदर्य देखते ही तो हैं, उसे निहारने से ही तो मन भर जाता है। स्त्री का सौंदर्य भी प्रकृति का एक रूप है। यह आप पर है कि आप इसे कैसे चिंतन करोगी।”
जीवन की उतार-चढ़ाव भरी पगडंडियों से गुजरते हुए अपनी कर्मठता का जीवंत प्रमाण देने के साथ ही सुख-समृद्धि के सारे संसाधन जुटाने वाली नायिका उम्र के तीसरे पड़ाव पर कहती है - “मुझे वे मृत्यु विकल्प दे गये। मैं जीऊँगी। पहले की भाँति। निःसहाय आश्रमों में उनकी सेवा में अपने आप को बिताऊँगी। अस्पताल में भी उन तक जाकर उनके मदद करूँगी।”
उपन्यास का अंत इन पंक्तियों में दिये सार्थक संदेश से होता है - “जिंदगी एक यात्रा है। मृत्यु का विकल्प। स्त्री मरने की कल्पना ही क्यों करे? आदमी क्यों मरे? मैं मृत नहीं हूँ, मृत्यु का विकल्प हूँ जीवंत। सांप्रत, निपट प्रत्यक्ष। मैं रास्ते की धूल नहीं हूँ। मिट्टी हूँ, जिससे शक्लें बनती हैं।”
तीन उपन्यासों और सैकड़ों कहानियों के रचयिता तथा अनेक विशिष्ट पुरस्कारों से अलंकृत लेखक की यह महत्वपूर्ण कृति पढ़ते हुए पंक्ति दर पंक्ति वर्तनी की अशुद्धियां ऐसे ही खलती हैं जैसे स्वादिष्ट खीर खाते हुए मुँह में कंकड़ आ जाये। आशा है, लेखक और प्रकाशक आगामी संस्करणों में इन अशुद्धियों का निराकरण अवश्य ही कर देंगे।
मृत्यु विकल्प
लेखक - बी. एल. माली ‘अशांत’
प्रकाशक - जीएस पब्लिशर डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली
मूल्य - 375 रुपये