समीक्षक- यशपाल शर्मा ’’यशस्वी’’
बालमन उस कोमल मिट्टी के समान होता है जिसे मनचाहा आकार दिया जा सकता है। वरिष्ठ साहित्यकार विजय सिंह नाहटा के अनुसार ’’बालसाहित्य के जरिये हम बच्चों में सद्संस्कार, मूल्यनिष्ठता एवं सांस्कृतिक चेतना के निर्माण का महती कार्य कर सकते हैं- यही वे मूल्य है जो नागरिक के रूप में उसे पुनर्परिभाषित कर सकते हैं। इस दृष्टि से बालसाहित्य का सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य भी कम नहीं है।’’ इन शब्दों के आलोक में बालकों में राष्ट्रीय चेतना के बीजवपन की दृष्टि से बालसाहित्य के महत्व एवं भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। इसी उद्देश्य की पूर्ति करते हुए बच्चों का देश के यशस्वी संपादक श्री प्रकाश तातेड़ जी द्वारा संपादित बालकविता संग्रह श्जग से न्यारा देश हमाराश् पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण स्थान की अधिकारिणी बनती हुई प्रतीत होती है।
तिरंगा लहराती बालिका के आवरण चित्र से सजी इस पुस्तक में उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, राजस्थान एवं गुजरात के 22 बालसाहित्यकारों की कुल 44 रचनाओं को स्थान दिया गया है। अंग्रेजी वर्णमाला के वर्णक्रमानुसार इनके नाम हैं- अनिता गंगाधर शर्मा, इंजी. आशा शर्मा, बलदाऊ राम साहू, भगवती प्रसाद गौतम, गौरीशंकर वैश्य विनम्र, गोपाल माहेश्वरी, गोविन्द भारद्वाज, कुसुम अग्रवाल, नलिन खोईवाल, प्रभुदयाल श्रीवास्तव, प्रकाश तातेड़, राजेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव, रजनीकान्त शुक्ल, राजकुमार निजात, रेखा लोढ़ा ’’स्मित’’, संतोष कुमार सिंह, श्यामपलट पांडेय, श्याम सुन्दर श्रीवास्तव ’’कोमल’’, सुरेश चन्द्र ’’सर्वहारा’’, तरुण कुमार दाधीच, यशपाल शर्मा, योगेन्द्र प्रताप मौर्य।
रचनाकारों का चयन स्वयं तातेड़ जी ने बहुत सोच-समझकर किया है। यही कारण है कि एकाध स्थान पर प्रूफ की कमियों को नजरअंदाज कर दिया जाए तो कोई भी रचना गेयता अथवा लयात्मकता की दृष्टि से उन्नीस नहीं ठहरती। संग्रह में 27 बालगीत, 12 बाल कविताएँ तथा 5 बाल सजलें संकलित की गई हैं। रचनाओं के साथ प्रत्येक पृष्ठ पर दिए गए श्वेत श्याम चित्र पुस्तक के आकर्षण को द्विगुणित करते हैं। राष्ट्रीय पर्व, राष्ट्रीय ध्वज, महापुरुष, स्वतंत्रता सेनानी, स्वच्छता का महत्व समेत विविध विषयों को स्पर्श करती सभी रचनाओं की मूल आत्मा राष्ट्र के प्रति अनन्य प्रेम भावना ही है। अधिकांश रचनाओं की भाषा व शब्द चयन बाल-मन के अनुसार ही हैं-
अपनी बगिया अपने फूल,
अपना आँगन अपनी धूल,
सुख-दुख सारा अपना है।
देश हमारा अपना है।।
-भगवती प्रसाद गौतम
इन रचनाओं को पढ़ते, गुनगुनाते हुए बच्चे अपने मन में देश की एक छवि तो बना ही लेते हैं, साथ ही स्वयं को गौरवान्वित भी महसूस करते हैं-
है सारे संसार में न्यारा सुंदर देश हमारा।
जैसे होता आसमान के तारों में ध्रुव तारा।।
-गोपाल माहेश्वरी
संग्रह की सुंदर रचनाओं के माध्यम से बालक अपनी संस्कृति व इतिहास से भी सहज ही परिचित हो जाते हैं। राष्ट्र के स्वरूप की जानकारी के लिए यह आवश्यक भी है-
जालिम हमको बाँट गए थे
दो टुकड़ों में जाते-जाते।
मुश्किल था तब बड़ा संभलना
याद करो वह सारी बातें।।
-कुसुम अग्रवाल
इसी देश में कृष्ण हुए हैं,
इसी देश में राम।
सबसे पहले जाना जग ने,
इसी देश का नाम।।
-प्रभुदयाल श्रीवास्तव
राष्ट्रहित में कार्य करने की चाह विविध कविताओं में प्रतिबिंबित होती है। सैनिक बनकर देश की रक्षा करना, वैज्ञानिक बनकर देश का नाम रोशन करना, बच्चों के ऐसे स्वप्न राष्ट्र के उत्थान का आश्वासन देते हैं-
देश हमारा सुंदर उपवन।
करें समर्पित इस पर तन-मन।।
-रेखा लोढ़ा ’’स्मित’’
बन वैज्ञानिक खोज करूँगा,
ऐसा बीज बनाऊँगा।
हरे-भरे झट पेड़ बनेंगे,
बादल को बुलवाउँगा।।
-अनिता गंगाधर शर्मा
जहाँ देश की खुशहाली के,
स्वप्न देखते हो बच्चे।
निश्चित उनके संकल्पों से,
सपने सब होते सच्चे।।
-यशपाल शर्मा श्यशस्वीश्
इन रचनाओं में निहित राष्ट्रप्रेम व गौरव मात्र स्वर्णिम अतीत पर आश्रित नहीं, वर्तमान की उपलब्धियों को भी स्वर देता है-
अंगारा हूँ खेल नहीं हूँ।
हूँ राफेल गुलेल नहीं हूँ।।
मैं ब्रह्मोस चलाने वाला,
गल जाए वह ढेल नहीं हूँ।
-संतोष कुमार सिंह
समग्रतः यह संग्रह अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल होता है। विद्यार्थियों एवं विद्यालयों हेतु इसे एक पठनीय एवं संग्रहणीय पुस्तक माना जा सकता है। पाठकों व समीक्षकों को यह पुस्तक निश्चय ही उपादेय लगेगी। भविष्य में भी इस तरह के श्रेष्ठ प्रयासों की पुनरावृत्ति होती रहे, यही कामना की जानी चाहिए।
समीक्ष्य कृति- जग से न्यारा देश हमारा
विधा- बाल कविता
संपादक- श्री प्रकाश तातेड़
प्रकाशक- सुभद्रा पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स
मूल्य- 125/-
पृष्ठ संख्या- 48
प्रकाशन वर्ष- 2023