-रामकिशोर उपाध्याय
वित्त सचिव रहे आईएएस अधिकारी सुभाष गर्ग की किताब #WeAlsoMakePolicy की चर्चा खूब हो रही है ।उन्होंने अपनी नौकरी समय से पहले ही छोड़ दी थी । यह पुस्तक अक्तूबर में आएगी अतः अभी पढ़ने का सवाल ही नहीं उठता ।अख़बारों के माध्यम से कतरने से 14/9/2018 को दिये गये एक प्रेजेंटेशन के हवाले से कुछ कहा गया है । इसमें कहा जा रहा है कि तत्कालीन आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल को
“पैसे के ढेर पर बैठा साँप” कहा गया । अभी तक यह भी सभी जान गये होंगे कि यह किसने कहा होगा ।अब धुँआ उठ रहा है तो पूरी संभावना है कि आग ज़रूर लगी होगी । अब इस संबोधन की पृष्ठभूमि के विषय में मुझे कुछ भी नहीं कहना । लेकिन उनतालीस साल वित्त विभाग में काम करते हुए हम लोगों को कुछ मिलते जुलते ऐसे ही संबोधनों से पुकारा जाता था और भविष्य में वित्त विभाग को ऐसा ही कुछ कहा ही जाएगा । वित्त विभाग को जन- धन (राजस्व )का ‘वॉच डॉग ‘ कहा जाता है । यह वित्त विभाग की ज़िम्मेदारी है कि खर्च किए जाने वाले एक एक रुपये पैसे के औचित्य पर प्रश्न करे । प्रस्तावित व्यय की छानबीन करे और संतुष्ट होने पर सहमति प्रदान करे ।हम लोग कई बार व्यय करने वाले विभागों की आँख कि किरकिरी भी बने ,आलोचना सही किंतु अपने पथ से विचलित नहीं हुए ।एक रेल यात्रा के दौरान सहयात्री जो दिल्ली सरकार के अधिकारी थे, ने अपने यहाँ वित्त विभाग द्वारा व्यय पर रोकटोक को ग़लत बताया । मुझे आलोचना सुनकर अच्छा लगा कि उनका वित्त विभाग अपना काम ठीक ढंग कर रहा हैं यानी डॉग वाच कर रहा है । वित्त विभाग के लोग यदि व्यय के औचित्य पर प्रश्न न करे तो सरकारी राजस्व पर नियंत्रण कठिन हो जाएगा और एक दिन कैग (CAG) वित्तीय गड़बड़ियों का संज्ञान लेकर संसद तक को खबर कर देगा । मेरा उद्देश्य ज्ञान बाँटना या किसी का पक्षधर बनना नहीं बल्कि धन पर वास्तविक साँप का ज़िक्र करना है । बहुत पहले की बात है । हमारी दूर की एक वृद्ध रिश्तेदार धनवान थी । उसके पति की मृत्यु हो गई ।लक्ष्मी के भोग के लिए संतान भी नहीं थी । उसे हमेशा चिंता रहती थी कि उसके मरने के बाद धन को कोई रिश्तेदार न ले ले । उसे धन से बड़ा लगाव था । मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि निस्संतान मनुष्य धन के प्रति बहुत आसक्त रहता है । बचपन में एक दिन उस वृद्घा से जब मैंने पूछा -मरने के बाद अपना पैसा किसको देकर जाओगी ? उसका उत्तर था - ‘धन को मैंने एक मटके में भरकर उसे ज़मीन में गाड़ दिया है । मरने के बाद मैं साँप बनकर इसकी रक्षा करूँगी । लेकिन मैं किसी को धन नहीं दूँगी ।’इन दोनों घटनाओं में एक वस्तुनिष्ठ समानता है -धन की रक्षा । अर्थात् धन की रक्षा साँप या साँप की व्यवहार करके ही किया जा सकता है । सरकारी राजस्व जनता की गाढ़ी कमाई है अतः उसका खर्च नियोजित और किफ़ायत ढंग से ही होना चाहिए । धन के अपव्यय पर जब तक धन रक्षक अधिकारी साँप की तरह कुंडली मारकर बैठा रहेगा या फन उठाकर फुँकारता रहेगा यानी वाच डॉग बना रहेगा , तब तक जनता के धन को कोई नहीं लूट सकता । अतः उर्जित पटेल को अपने संवैधानिक कर्तव्य का निर्वहन करते समय मिले “पैसे के ढेर पर बैठा साँप” जैसे संबोधन पर गर्व होना चाहिए ।
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रामकिशोर उपाध्याय