भारत की राजधानी दिल्ली और उससे सटे एनसीआर क्षेत्र (गाज़ियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुरुग्राम आदि) पिछले एक दशक से लगातार प्रदूषण के चंगुल में फंसे हुए हैं। सर्दियाँ आते ही हवा जहरीली हो जाती है, साँस लेना कठिन और दृश्यता धुँधली हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दिल्ली विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में शीर्ष स्थान पर बनी हुई है। यह सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और आने वाली पीढ़ियों का संकट बन चुका है।
पिछले 10 वर्षों का प्रदूषण परिदृश्य (वर्षवार आँकड़े)
वर्ष पीएम10 माइकोग्राम) पीएम 2.5 (माइकोग्राम) स्थिति
2015 295 133 अत्यंत गंभीर
2016 303 137 विश्व के सबसे खराब शहरों में
2017 277 130 कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं
2018 277 128 स्थिर प्रदूषण स्तर
2019 230 112 कुछ सुधार, पर सीमा से ऊपर
2020 187 101 लॉकडाउन का सकारात्मक प्रभाव
2021 221 113 फिर वृद्धि
2022 223 103 औसत स्तर समान
2023 219 106 डब्ल्यूएचओ मानक से 20 गुना अधिक
2024 (प्रारंभिक) 210 98 मामूली गिरावट, पर असुरक्षित स्तर
(स्रोतः डीपीसीसी 2023-24)
डब्ल्यूएचओ मानक के अनुसार पीएम 2.5 की अधिकतम स्वीकृत सीमा 5 माइकोग्राम है, जबकि भारतीय मानक 40 माइकोग्राम है। इस दृष्टि से दिल्ली की हवा 2023 में भी 20 गुना ज्यादा जहरीली थी।
प्रदूषण के मुख्य कारण
वाहन प्रदूषण (40 प्रतिशत)-दिल्ली की सड़कों पर प्रतिदिन लगभग 1.3 करोड़ वाहन चलते हैं। डीज़ल वाहन और ट्रैफिक जाम से निकलने वाला धुआँ सबसे बड़ा कारक है।
निर्माण और सड़क धूल (20 प्रतिशत)-निर्माण कार्यों, सड़कों की धूल और खुले में खुदाई से बड़ी मात्रा में पीएम 10 कण उड़ते हैं।
कृषि अवशेष (पराली) जलाना (15 प्रतिशत)-हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने से सर्दियों में दिल्ली की हवा में ज़हरीले तत्व 30-40 प्रतिशत तक बढ़ जाते हैं।
औद्योगिक उत्सर्जन (10 प्रतिशत)-एनसीआर में फैक्ट्रियाँ और थर्मल पावर स्टेशन गंधक ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड छोड़ते हैं।
घरेलू प्रदूषण और कूड़ा जलाना (10 प्रतिशत)-खुले में कचरा जलाना और ठोस ईंधन के प्रयोग से भी हवा दूषित होती है।
स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
फेफड़ों की बीमारियाँ-अस्थमा, सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़) और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियाँ तेजी से बढ़ी हैं।
हृदय रोग और स्ट्रोक-लगातार प्रदूषित हवा में रहने से हृदयाघात और स्ट्रोक का खतरा 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
कैंसर-डब्ल्यूएचओ ने बताया है कि पीएम 2.5 के लंबे समय तक संपर्क से फेफड़ों के कैंसर की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर प्रभाव-दिल्ली में जन्म लेने वाले बच्चे अपने फेफड़ों की क्षमता का औसतन 10 प्रतिशत हिस्सा खो देते हैं। गर्भस्थ शिशुओं में जन्म से पहले मृत्यु और कम वजन के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है।
मौतों का भयावह आँकड़ा
2019 में लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 17 लाख मौतें वायु प्रदूषण से जुड़ी थीं। अकेले दिल्ली में हर वर्ष 10,000-12,000 लोगों की असामयिक मृत्यु का अनुमान है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एअर रिपोर्ट 2023 के अनुसार, दिल्ली में वायु प्रदूषण से औसतन जीवन प्रत्याशा 11.9 वर्ष घट जाती है। 2021 में प्रकाशित आईआईटी दिल्ली अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण राजधानी के अस्पतालों में श्वसन रोगी 30 प्रतिशत बढ़े। बच्चों की मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी हुई। 2022 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में पाँच वर्ष से कम उम्र के हर 1000 बच्चों में से 9 की मृत्यु प्रदूषणजन्य कारणों से हुई।
सरकारी प्रयास और योजनाएँ
(1) ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी)
दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण के स्तर के अनुसार चार चरणों में कार्रवाई-
स्टेज वन (एक्यूआई 201-300)-सड़कों पर पानी का छिड़काव।
स्टेज टू (एक्यूआई 301-400)-निर्माण गतिविधियाँ सीमित।
स्टेज थ्री ((एक्यूआई 401-450)-स्कूल बंद, डीज़ल जेनरेटर प्रतिबंधित।
स्टेज फॉर ((एक्यूआई 450 से कम)-ट्रक एंट्री बंद, निर्माण पूर्ण प्रतिबंध।
(2) राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी)
2019 में शुरू हुआ। लक्ष्य 2017 के स्तर की तुलना में 2024 तक प्रदूषण में 30 प्रतिशत कमी लाना। लेकिन 2023 तक दिल्ली में पीएम 2.5 में औसत कमी मात्र 12 प्रतिशत रही।
(3) वाहन नीति और ईंधन सुधार
बीएस फोर ईंधन लागू किया गया। पुराने 15 साल से अधिक वाहनों पर प्रतिबंध। इलेक्ट्रिक वाहन नीति (ईवी पॉलिसी 2020) से अब तक 1 लाख से अधिक ई-वाहन पंजीकृत हुए।
(4) पराली प्रबंधन योजना
दिल्ली सरकार ने पूसकंपोस्ट बायो-डीकंपोजर का उपयोग किया, जिससे खेतों में पराली जलाने की आवश्यकता घटे। फिर भी हरियाणा-पंजाब में पराली जलाने के 60,000 से अधिक मामले 2024 में दर्ज हुए।
(5) कचरा प्रबंधन
कूड़ा जलाने पर सख्ती, तीन वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट सक्रिय किए गए हैं, लेकिन क्षमता अभी भी आधी ही उपयोग हो पा रही है.
आर्थिक और सामाजिक असर
2022 के एक वर्ल्ड बैंक अध्ययन के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण से सालाना 2.6 अरब डॉलर (लगभग 21,000 करोड रुपये़) का आर्थिक नुकसान होता है। उत्पादकता में गिरावट और स्वास्थ्य खर्चों में वृद्धि इसके मुख्य कारण हैं। गरीब वर्ग सबसे अधिक प्रभावित है, जो खुले में रहते हैं और जिनके पास एयर प्यूरिफायर या बंद आवास की सुविधा नहीं है।
निवारण के उपाय
1.सार्वजनिक परिवहन का विस्तार और निजी वाहन उपयोग पर नियंत्रण।
2.निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण और हरित पट्टी बढ़ाना।
3.पराली के लिए किसानों को वैकल्पिक मशीनें व आर्थिक सहायता। 4.थर्मल पावर संयंत्रों में आधुनिक उत्सर्जन नियंत्रण तकनीक लागू करना।
5.नागरिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा, वृक्षारोपण और “ग्रीन डेज़” का पालन।
दिल्ली-एनसीआर की हवा हर वर्ष हजारों लोगों की जान ले रही है। पिछले दस वर्षों में सरकारों ने नीतियाँ बनाईं, योजनाएँ लागू कीं, लेकिन परिणाम सीमित रहे हैं। पीएम 2.5 का स्तर आज भी 100 माइकोग्राम के आसपास है, जो सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक है। वायु प्रदूषण सिर्फ पर्यावरणीय नहीं बल्कि मानवीय आपदा है। जब तक केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर ठोस, निरंतर और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कार्य नहीं करतीं, तब तक दिल्ली की साँसों में जहर बना रहेगा। नागरिकों को भी यह समझना होगा कि यह संकट हमारे अपने जीवन का प्रश्न है कृ तभी “दिल्ली की हवा” सच में सुधर सकेगी।
लेखक
डॉ. चेतन आनंद
(कवि-पत्रकार)
