नई दिल्ली, "हिंदी में कविता, कहानी आदि का सृजन तो बहुत हो रहा है, जो अच्छी बात है, किंतु अब हमें हिंदी में जान-विज्ञान के विविध अनुशासनों में सृजन की अधिक आवश्यकता है।
भारत सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नौति 2020 भारतीय ज्ञान परंपरा के विकास में योगदान दे रही है और इससे संभावनाओं का नया आकाश खुला है।" ये विचार विगत दिनों सोनीपत के गाँव छतेरा में नव उन्नयन साहित्यिक सोसाइटी एवं श्री प्राणनाथ मिशन के संयुक्त तत्वावधान में 'भारतीय जान परंपरा और हिंदी' विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि एवं बीज वक्ता लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर सूर्य प्रसाद दीक्षित ने व्यक्त किए। संगोष्ठी के प्रथम सत्र का विषय था भारतीय ज्ञान परंपरा अवधारणा और स्वरूप। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व वरिष्ठ प्रोफेसर एवं नव उन्नयन साहित्यिक सोसाइटी के अध्यक्ष प्रो. पूरनचंद टंडन ने अपने स्वागत वक्तव्य में इस सारस्वत उत्सव में आए सभी शिक्षकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों का स्वागत किया तथा कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रति उदासीन होने की बजाय उसे केवल भाषा या साहित्य तक सीमित न रखते हुए विभिन्न अनुशासनों में ढूँढा जाए।
तत्पश्चात संस्था की महासचिव, प्रो. विनीता कुमारी ने 2006 में स्थापित इस संस्था के उद्देश्यर्थी, महत्त्वपूर्ण कार्यों एवं 'सहृदय' पत्रिका का विवरण देते हुए संस्था का संक्षिप्त परिचय दिया। प्रथम सत्र के अंत में संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि प्राणनाथ मिशन के निदेशक मोहन प्रियाचार्य द्वारा महामति प्राणनाथ की वाणी में समाहित साहित्यिक, समाजशास्त्रीय, ऐतिहासिक, भौगोलिक जान पर प्रकाश डाला गया।
दृद्धिीिय सत्र में प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित जी की अध्यक्षता में प्रो. रवि शर्मा 'मधुप (श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स), पो. प्रदीप कुमार (स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज), प्रो. संध्या वात्स्यायन (अदिति महाविद्यालय), डॉ. नृत्यशीपाल शमी (हंसराज कॉलेज), डॉ. करुणा शमी (वरिष्ठ शिक्षाविद) एवं डॉ. कमला शर्मा (श्री पाणनाथ मिशन) ने अपने महत्वपूर्ण विचारों से आरतीय जान परंपरा की महत्ता एवं वैज्ञानिक पक्ष को उद्घाटित करते हुए श्रीमाओं का ज्ञानवर्धन किया। इस संगोष्ठी के प्रथम सत्रका कुरा पालन भटिंडा कंठीय विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य कुलभूषण शमी ने किया तथा दवितीयका प्रभावी संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती महाविद्यालय की प्रो. राजरानी शर्मा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मौजा पांडे (विवेकानंद महाविद्यालय) ने किया।
रांगोष्ठी का शुभारंभ भारतीय परंपरा का निर्वहन करते हुए दीप प्रज्वलन एवं डॉ० शाक्षी जोशी द्वारा सरस्वती वंदना के मधुर गायन तथा सुहानी त्यागी द्वारा महामति प्राणनाथ के पर्दा की प्रभावी प्रस्तुति से किया गया। इस संगोष्ठी में जव उन्नयन साहित्यिक सोसाइटी की पत्रिका 'सहृदय' के 59, 60, 61 और 62वें अंक, महामति प्राणनाथ मिशन की पत्रिका 'जागनी', रामचरितमानस पर आधारित प्रश्नोत्तरी और डॉ. करुणा शर्मा की पुस्तक 'चित्रा मुद्गल का बाल साहित्य का लोकार्पण मंचासीन अतिथियों के कर कमलों से किया गया।
इस संगोष्ठी के अध्यक्ष, प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने अपने विस्तृत और ज्ञानपरक बीज वक्तव्य में उद्धरणी के आधार पर भारतीय ज्ञान परंपरा का विस्तार से परिचय दिया तथा उसमें विद्यमान संभावित शोध विषयों का संकेत किया। उन्होंने पुराणों, महाभारत, रामायण, भगवद्गीता आदि का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें मनुष्यता की पराकाष्ठा तथा सत्य का ज्ञान समाहित है। भारतीय ज्ञान परंपरा सनातन गंगा प्रवाह है, जो समय के साथ वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, उपनिषद, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र आदि के द्वारा अभिसिंचित है। इस जान को नारद, कपिल, कणाद, शंकराचार्य आदि ऋषियों ने प्रसारित किया। भारतवर्ष पर बहुत से विदेशी आक्रमण हुए, जिन्होंने भारत की संस्कृति और वैभव को क्षीण किया। भारतीय संस्कृति को अपसंस्कृति में परिवर्तित करने का भरसक प्रयास किया गया ।
भारतीय जान परंपरा में पर्यावरणीय चिंतन भी विद्यमान है। प्रकृति हमारे लिए पूजनीय है। शांति पाठ में भी समस्त पाँच तत्वों की शांति का आह्वान किया गया है। यहाँ की चिकित्सा पद्धति, गणितीय ज्ञान, साहित्यिक जान अत्यंत प्राचीन और गूढ है। दीक्षित जी ने भारतीय जान परंपरा के ऐतिहासिक पक्षी से जुड़े विभिन्न प्रश्नों और आयामी पर विश्लेषणात्मक दृष्टिपात करते हुए उसके विभिन्न स्रोतों पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपनी सूक्ष्म दृष्टि से भारतीय ज्ञान परंपरा की वैज्ञानिकता, व्यापकता और वर्तमान संदर्भों में उसकी उपयोगिता तथा महता को भी उद्घाटित किया।
अकादमिक सत्र में भारतीय ज्ञान परंपरा और हिंदी' विषय पर चचर्चा की गई। सत्र का संचालन करते हुए प्रो० राजरानी शमी ने अध्यक्ष के रूप में पी० मूर्व प्रसाद दीक्षित तथा सभी प्रबुद्ध वक्ताओं का औपचारिक परिचय देते हुए मंच पर आमंत्रित किया। पी० रवि शमी मधुप ने भारतीय जान परंपरा में निहित सामग्री की कमान आधुनिक शोध पदधति के आधार पर प्रामाणिक रूप से सिद्ध करने की आवश्यकता पर बल दिया। पी० पटीप कुमार ने भारतीय जान परंपरा में गुरु की महता का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि भारतवर्ष की संस्कृति महानहै, ओ संपूर्ण विश्व को निरंतर आलोकित कर रही है। प्रो० संध्या वात्स्यायन ने भारतीय वाड्मय के अक्षय भंडार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी ज्ञान परंपरा संतुलन एवं सामंजस्य पर जोर देती है। हमारे पर्व-उत्सव, संस्कार, भाषा, उदारता, विनमता शाश्वत है, जिसे अपने जीवन में आत्मसात् किया जाना चाहिए। डॉ० करुणा शर्मा ने कबीर के दोहों के माध्यम से संत साहित्य के भारतीय जान परंपरा में प्रदेय पर प्रकाश डाला। डॉ० कमला शर्मा ने महामति प्राणनाथ की वाणी का महत्त्व बताया। डॉ० नृत्यगोपाल शर्मा ने सुदामा एवं कृष्ण के माध्यम से मित्रता एवं भ्रातृत्व ककी परंपरा का आधुनिक संदर्भों में विवेचन किया। सत्र का समापन डॉ० मौना पांडे द्वारा धन्यवाद ज्ञापन तथा मंगलकामनाओं के साथ किया गया।
रिपोर्ट प्रस्तुति :
प्रो. रवि शर्मा 'मधुप, डॉ साक्षी जोशी, पूजा एवं अपूर्वा सिंह