(08 दिसंबर/नई दिल्ली) : मातृभाषा के उन्नयन और संवर्धन के लिए, इन्हे जनजीवन में प्रयोग करने के लिए लोगों को प्रेरित करने के उद्देश्य से 'पर्पल पेन' संस्था द्वारा बहुभाषी काव्य गोष्ठी 'धनक' का आयोजन आईटीओ स्थित अणुव्रत भवन के कांफ्रेंस हॉल में रविवार, 08 दिसंबर को किया गया। गोष्ठी में दिल्ली/एनसीआर से पधारे कविगण ने हिन्दी, अवधी, भोजपुरी, ब्रज, अंगिका, कुमाऊनी, राजस्थानी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं में कविता पाठ किया।
गोष्ठी की अध्यक्षता विख्यात कवि, आकाशवाणी के पूर्व उप-महानिर्देशक श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ने की तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रसिद्ध कवयित्री सुश्री ममता किरण का सानिध्य रहा। 'पर्पल पेन' संस्था की संस्थापक-वसुधा कनुप्रिया के संयोजन में आयोजित 'घनक' गोष्ठी का शुभारंभ माँ सरस्वती की वंदना और माल्यार्पण से हुआ। मंचासीन अतिथिगण को मोती की माला, अंगवस्त्र और उपहार अर्पण कर वसुधा कनुप्रिया ने उनका अभिनन्दन-स्वागत किया। गोष्ठी के नाम ही के अनुरूप विविध भाषाओं में कविगण ने काव्य पाठ कर सभी को आनंदित और हर्षित कर दिया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री बाजपेयी ने कहा कि बहुभाषी गोष्ठी में विभिन्न भाषाओँ, रसों और छंदों में जो कवितायेँ पढ़ी गयी, उनसे इस गोष्ठी को सार्थकता मिली। ऐसे आयोजनों से व्यक्ति अपने साथ सुन्दर अनुभव और स्मृति ले कर जाता है। "जब हम लौटें तो कुछ प्रभाव ले कर जाएँ तभी गोष्ठी सार्थक होती है।", आपने प्रशंसा करते हुए संयोजक वसुधा कनुप्रिया को बधाई दी। श्री बाजपेयी ने बहुत सुन्दर पद, महिये और मुक्तक पढ़कर गोष्टी को ऊंचाइयों तक पहुँचाया --
प्रेम को परिभाषित करते हुए आपने कहा --
"आस्था के फ्रेम में विश्वास की तस्वीर मढ़ना
भावना की सीढ़ियों से आत्मा का शिखर चढ़ना
प्यार का मतलब नहीं है देह का भूगोल पढ़ना
प्यार का है अर्थ सच्चा दर्द का इतिहास गढ़ना"
विशिष्ट अतिथि सुश्री ममता किरण ने भी बहुभाषी गोष्ठी के माध्यम से इतनी भाषाओँ में काव्य पाठ के लिए सभी को बधाई दी। आपन बेहतरीन दोहे और ग़ज़ल पेश किये।
"हैं सब अल्फ़ाज़ उलझन में कहन की आज़माइश है,
ये ऐसा दौर है जिसमें सुखन की आज़माइश है। (1)
सुनाएं राम को वनवास या वरदान लें वापस,
घिरे दुविधा में हैं दशरथ वचन की आज़माइश है। (2)
वसुधा 'कनुप्रिया' की अंग्रेज़ी कविता "आई विश" को अध्यक्ष महोदय एवं अन्यों ने काफ़ी पसंद किया। उस से पहले वसुधा ने हिन्दी में कुछ समसामयिक दोहे और मुक्तक पढ़े जिन्हे भी ख़ूब सराहा गया --
"दिखावा करने वालों को मीत क्यों मान बैठे हम,
थे खंजर हाथ में जिनके, क्यों अपना जान बैठे हम,
सियासत रिश्तों में करते, उन्हें संवेदना से क्या,
हमारी ही तो ग़लती थी, ग़लत पहचान बैठे हम ।"
गांव के सीधी सुन्दर मुटियार अपने जीवन को किस प्रकार शहर में याद करती है, यह दर्शाता अपना पंजाबी गीत जब सुश्री शारदा मदरा जी ने गया तब सभी झूम उठे --
"मैं शहर विच आके पछताई, के पिंड मैनू याद आ गया।
नी रोटी, लस्सी ते मक्खन मलाई, के पिंड मैनू याद आ गया।:"
"दफ्तर दफ्तर सभै मनावैं हिन्दी कै पखवाड़ा
हिन्दी गावैं, हिन्दी पहिने, हिन्दी में संसारा
शाम सवेरे लेईन घचक के हिन्दी कै चटखारा,
भैया हिन्दी कै पखवाड़ा" --- श्री ओम प्रकाश शुक्ल की हिन्दी दिवस मानाने की होड़ पर प्रस्तुत व्यंग्य रचना बहुत प्रसांगिक लगी।
"अम्मा कै चौका जब सुधि आवै
आँखिम पानी भरि -भरि आवै" -- सुश्री सुषमा शैली के अवधी गीत ने सभी को भावुक कर दिया।
श्री छत्र छाजेड़ 'फक्कड़' ने एक वासंती गीत राजस्थानी में प्रस्तुत किया --
आंगऴ्यां हालण लागी, कलम चालण लागी
उतरण लाग्या प्रेम गीत, मन कहवै...ल्यो बसंत आयग्यो..."
"यादें मैकें आनी पहाड़ा, वो हिमाला वो पहाड़ा
नान तिना बैणी कैजा, गाड़ गधेरा गोरु बाछा।"
अपनी मातृभाषा कुमाऊनी में पढ़ी कविता के माध्यम से श्री मनोज कामदेव ने वहां के खूबसूरत नज़रों की, तीज त्योहारों और खान-पान सहित पर्यटक स्थलों और मंदिरों का भी ज़िक्र किया।
सुश्री सुप्रिया सिंह 'वीणा' ने अंगिका भाषा में दोहे, एक ग़ज़ल और गीत पढ़े। आपकी अंगिका ग़ज़ल सभी को विशेषतः पसंद आयी --
"ममता सें भिजलोॅ माटी रोॅ पवन याद छै,
माय अँगनवाँ बाबू केरोॅ गगन याद छै I"
"इस दिल को हो असीरी तो तेरी मारिफ़त हो
ग़र हो कभी रिहाई तो तेरा दस्तख़त हो" -- अपने ख़ूबसूरत अशआर से श्री जगदीश मीणा ने उर्दू की नुमाईंदिगी की। आपके अलावा सुश्री वंदना गोयल और श्री हशमत भरद्वाज ने भी उर्दू ग़ज़लें पेश की।
सुश्री गीता भाटिया ने अपनी मुक्तछंद हिन्दी कविता से सभी को प्रभावित किया --
"मैं जीत लिखूं या हार लिखूं, दोंनो ही बेमानी है
जी पाऊं संसार में बस, इतनी सी मेरी कहानी है"
सुश्री बबली सिन्हा 'वन्या', सुश्री मीनाक्षी भटनागर, सुश्री पुष्प शर्मा और सुश्री पूनम झा ने भी सुन्दर मुक्तछंद कविताओं का पाठ किया। सुश्री रेखा जोशी, सुश्री शालिनी शर्मा एवं सुश्री संगीता वर्मा के हिन्दी गीतों को सुनकर सभी आनंदित हुए।
श्री भूपिंदर कुमार ने ब्रज भाषा में होली के रंग बिखेरती एक सरस कविता का पाठ किया। भोजपुरी भाषा का प्रतिनिधत्व करते हुए सुश्री मिलन सिंह मधुर ने ये गीत गाया --
'आयि के सहरवा में गउवां भुलाइल,
हमरो संदेस लेइ जाऊ बटोहिया।"
जो कहूंगा सच कहूंगा, सच के सिवा कुछ न कहूंगा,
बस अदालत ही में ये अलफ़ाज़ अच्छा लगता है" -- सच्ची और अच्छी पंक्तियाँ गोल्डी गीतकार ने पढ़ीं।
बहुभाषी काव्य गोष्ठी 'घनक' में विभिन्न भाषाओँ में काव्य पाठ सुनकर सभी रोमांचित और आनंदित हुए।
गोष्ठी का शानदार सञ्चालन सुश्री मीनाक्षी भटनागर ने किया। सरस्वती वंदना सुश्री संगीता वर्मा ने प्रस्तुत की।
कार्यकर्म का समापन करते हुए वसुधा कनुप्रिया ने धन्यवाद ज्ञापित किया। आपने विश्वास दिलाया कि भविष्य में भी पर्पल पेन बहुभाषी काव्य गोष्ठियों के माध्यम से कविगण को अपनी मातृभाषा में नयी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित करता रहेगा तथा मातृभाषाओं को यथोचित सम्मान और गरिमा प्रदान करने में प्रयासरत रहेगा।
रिपोर्ट : वसुधा 'कनुप्रिया'