सितंबर का महीना राजभाषा हिंदी से जुड़ा है। केंद्रीय सरकार के विभिन्न कार्यालय एवं विभागों ,उपक्रमों ,स्वायत्त संस्थानों में हिंदी सप्ताह ,हिंदी पखवाड़ा ,हिंदी माह का आयोजन किया जाता है। विद्यालय ,महाविद्यालय ,विश्वविद्यालय स्तर पर भी हिंदी पर प्रतियोगिताएं ,कार्यशालाएं, नाटक प्रदर्शनी आदि का आयोजन किया जाता है विद्यार्थियों में सितंबर माह को लेकर बड़ा जोश रहता है जैसे कि हिंदी एक उत्सव हो। पर क्या हिंदी उनके भविष्य के लिए सचमुच अवसर प्रदान करती है? आज इसी विषय पर हमारे मंचासीन विद्वान चर्चा करेंगे।
जया केतकी ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि हिंदी में बहुत अवसर है परंतु
चुनौतियां भी कम नहीं है हमारे युवा हिंदी समझना नहीं चाहते हैं ।उनके मन में हिंदी के प्रति वह सम्मान नहीं है जो आवश्यक है ।आज सूचना क्रांति में ,साहित्य सृजन, पत्रकारिता, रोजगार, मनोरंजन, विज्ञापन और शिक्षण इन सभी में हिंदी के लिए अनंत संभावना है।
प्रमुख वक्ता डॉ. विनय राजाराम ने हिंदी के हीरक जयंती वर्ष में प्रवेश करने की सबको बधाई दी और बताया कि इस अवसर पर सरकार के द्वारा एक सिक्का और डाक टिकट हिंदी के सम्मान में जारी किया गया है ।यह बहुत ही स्वागत योग्य है, परंतु कंप्यूटर के की पैड में हिंदी टंकण की व्यवस्था न होना विचारणीय है और हिंदी के समक्ष यह एक बहुत बड़ी चुनौती भी है। देवनागरी लिपि जिसकी वैज्ञानिकता के हम गुणगान करते हैं, उसके लुप्त होने की भी चिंता उन्होंने व्यक्त की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा कि हिंदी भाषी संख्या में 45.6 प्रतिशत हैं पर आज हिंदी के विकास के लिए सबसे जरूरी है कि आइ टी टीम का युवा हिंदी के लिए काम करे। प्रदीप श्रीवास्तव जी का यह भी कहना था कि हमें अपनी लिपि को बचाने के लिए कंप्यूटर और लैपटॉप में भी हिंदी टंकण को स्थान देना होगा। हमें रोमन लिपि के एल्फाबेट का आश्रय ले कर लिखना पड़ता है। हिंदी तो संस्कृत की मौसी है, पूर्ण आत्मविश्वास से हिंदी में संवाद और कार्य करना ही हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाता है।
आयोजन की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि,पत्रकार संपादक लक्ष्मीशंकर वाजपेयी जी ने कहा कि हम आत्ममुग्ध हो कर हिंदी का गुणगान हिंदी दिवस के मास में करते रहते हैं पर वास्तविकता यह है कि बाहर हमारे प्रवासी भारतीय हिंदी में पहचान पा रहे हैं पर अपने देश में हिंदी के प्रति हमारी मानसिकता में बदलाव की सख्त जरूरत है। हमारे देश में 100 करोड़ हिंदी समझते हैं। उसमें से 50 करोड़ पढ़े लिखे हैं पर पुस्तकें मात्र 300 प्रकाशित होती हैं।इसी कारण पूर्ण कालिक लेखक हिंदी में बहुत कम हैं।
उनका कहना था कि साक्षरता दर बढ़ाना आवश्यक है जिससे अखबार और पुस्तक की खरीद बढ़े और लोग हिंदी अनुरागी बनें।
बच्चे के जन्म से ही हम उसे अंग्रेजी के शब्द सिखाते पढ़ाते हैं। अपने घर पर अंग्रेजी की नेमप्लेट लगाते हैं।इन दोहरे मापदंड से ऊपर उठ व्यवहार में हिंदी उतारना आवश्यक है।
वाजपेयी जी ने संतोष श्रीवास्तव जी को अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच के दस वर्ष पूर्ण होने की बधाई देते हुए कहा कि अनेक संस्थाएं खुलती हैं और बंद हो जाती हैं पर आपकी संस्था दस वर्षों से उत्तरोत्तर हिंदी को समर्पित हो काम कर रही है, इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।
इस अवसर पर संस्था द्वारा अहिंदी भाषी हिंदी लेखक मुजफ्फर सिद्दीकी, लता तेजेश्वर ' रेनुका और कमल कपूर को सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम का कुशल एवं रोचक संचालन शकुंतला मित्तल ने किया। आभार सुरेखा जैन ने बहुत ही चुटीले अंदाज में किया।
कार्यक्रम में भारत के विभिन्न शहरों से लगभग 40 लोगों की उपस्थिति रही। अमेरिका से मराठी की लेखिका डॉक्टर वसुधा सहस्त्रबुद्धे उपस्थित रहीं।
प्रस्तुति
शकुंतला मित्तल
अध्यक्ष दिल्ली इकाई