आओ; चलो! तुम्हें अपना "करमोली गांव" घुमा लाता हूं,
खेत, खलिहान और बाग दिखा लाता हूं।
आम, जामुन, अमरूद जैसे फल बहुत हैं वहां,
नहर, ताल और तलइयों में डुबकी लगा आता हूं।। 1।।
हरी-भरी घास है वहां और हैं डरावने जंगल,
सब तरफ है अपूर्व शान्ति और मंगल ही मंगल।
गाय-भैंसों के तो अनगिनत झुण्ड वहां मिल जाएंगे,
प्रकृति में अदृश्य मेरे अम्मा-बाबू भी मिल जाएंगे।।2।।
बीता हुआ बचपना होगा; कुछ परिपक्व बालसखा होंगे,
उस निश्छल हंसी की यादें होंगी और कुछ चाचा-ताऊ भी होंगे।
लोगों का तो पता नहीं; पर मेरा गांव बड़ा ही सीधा है,
"फिर वापस आना" कहकर हर बार बिलख कर विदा लेता है।। 3।।
मेरा आन - बान - शान और मान है -"मेरा करमोली गांव",
ढेर सारी यादों और हसीन पल का साक्षी भी है मेरा गांव।
कैसे भूल सकता हूं अपनी उस परम पावन मातृभूमि को,
सच, बड़ा ही सरल और बहुत ही प्यारा है मेरा अपना गांव।।4।।
जितनी भी बार जाओ; बड़ी ही दुआ देता है,
आ गए "मेरे लाल" जैसे अम्मा के शब्द का अहसास करा देता है।
नगर का नगरीय जीवन मुझे बिल्कुल भी रास नहीं आता है,
अम्मा-बाबू का पावन दुलार हर पल याद आता है।।5।।
असंख्य दुआवों का साक्षी है-"मेरा करमोली गांव",
अतीत के झरोखे से आज फिर अपने बचपने की याद आयी,
खट्टी-मीठी यादों के साथ आंसुओं की बाढ़ भी लायी।
समय और जीवन से तो तालमेल कर लेता हूं,
पर, दिल और दिमाग में सामंजस्य अभी भी बिठा नही पाता हूं।।6।।
समय बीतता गया और हम बड़े हो गए,
बचपना तो कब का खो गया और मेरे अपने भी कहीं खो गए।
काश! 'पवन' बचपन का बचपना मिल पाता,
सब तरफ होती अपूर्व शान्ति और मैं भी जन्नत पाता।।7।।
पवन कुमार पाण्डेय
अनुभाग अधिकारी
श्री वेंकटेश्वर महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय)