मोहन मंगलम
पिछले महीने 22 तारीख को अयोध्या में रामजन्मभूमि पर भव्य और दिव्य मंदिर में बालकराम के रूप में प्रभु श्रीराम की अलौकिक प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से देश ही नहीं, पूरी दुनिया में सर्वत्र राममय ही नजर आ रहा है। ऐसी अवधि में राम मंदिर आंदोलन के नायक लालकृष्ण आडवाणी को देश का सर्वाेच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किये जाने की घोषणा के बाद आडवाणी एक बार फिर सोशल मीडिया से लेकर न्यूज चैनल्स तक चर्चा के केन्द्र में हैं।
भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी को 96 साल की उम्र में देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा के संस्थापक सदस्य नानाजी देशमुख के बाद आडवाणी यह सर्वाेच्च नागरिक सम्मान पाने वाले भाजपा के तीसरे नेता हैं। आडवाणी 50वें ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्हें भारत रत्न दिया जाएगा।
मंडल कमीशन की रिपोर्ट के बाद उत्पन्न हुए आरक्षण आंदोलन के फलस्वरूप वर्ष 1990 में देश विकट परिस्थितियों से जूझ रहा था। जातिवादी तत्व भारत की एकता और अखंडता को तार-तार करने पर तुले हुए थे, दूसरी तरफ छद्म धर्मनिरपेक्षता के पैरोकार धर्म के आधार पर देश को बांटना चाहते थे, उस दौर में लालकृष्ण आडवाणी आगे आये और इन राष्ट्र विरोधी ताकतों को करारा जवाब दिया।
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर की स्थापना को लेकर लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के लिए राम रथयात्रा निकाली। हालांकि उन्हें बीच में ही गिरफ्तार कर लिया गया, पर इस यात्रा के बाद आडवाणी का राजनीतिक कद और बड़ा हो गया। रथयात्रा ने लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता को चरम पर पहुँचा दिया। इस रथयात्रा के जरिये भारतीय जनता पार्टी अपना सन्देश जन-जन तक ले गई। यह एक ऐसी यात्रा थी जो भारत के समुद्र तट से शुरू होकर हिमालय की ऊँचाइयों तक गई। ये किसी ईंट-पत्थर को जोड़कर एक मंदिर बनाने की यात्रा भर नहीं थी, बल्कि राष्ट्र की भावनाओं से अपने आराध्य को उनका सही स्थान दिलाने की यात्रा थी। इस रथयात्रा ने सुप्तावस्था में पड़े राष्ट्रवाद की भावनाओं को जगा दिया। राष्ट्रवाद की दबी-कुचली भावनाओं को नयी जगह ही नहीं दी, बल्कि हमारे देश के उच्च नैतिक आदर्शों को भी पुनः प्रतिष्ठित किया।
संगठक क्षमता के धनी माने जाने वाले आडवाणी हमेशा अपने समर्थकों से कहते थे कि उनमें ‘मारक क्षमता’ होनी चाहिए ताकि वे स्थिति का मुकाबला कर सकें। इसी मारक क्षमता के बूते आडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर कांग्रेस के राजनीतिक एकाधिकार को तोड़ा। हिन्दू राष्ट्रवाद की अवधारणा के दम पर आडवाणी भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर ले आए और अयोध्या राम मंदिर आंदोलन के नायक बने।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का भाजपा को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख स्थान दिलाने बनाने में सर्वाेपरि योगदान है। कभी भाजपा के कर्णधार तो कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवम्बर 1927 को अविभाजित भारत के कराची शहर में हुआ था। इनकी माताजी का नाम ज्ञानी देवी और पिताजी का नाम किशनचंद आडवाणी था। लालकृष्ण ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट पैट्रिक हाई स्कूल, कराची से पूरी की और फिर गवर्नमेंट कॉलेज हैदराबाद, सिंध में दाखिला लिया। उन्होंने बचपन से ही अनुशासन को जीवन का आधार बनाया।
1947 में आडवाणी देश के आजाद होने का जश्न भी नहीं मना सके क्योंकि आजादी के महज कुछ घंटों में ही उन्हें अपना घर छोड़कर भारत रवाना होना पड़ा। हालांकि आडवाणी ने इस घटना को खुद पर हावी नहीं होने दिया और मन में इस देश को एकसूत्र में बांधने का संकल्प ले लिया। इस विचार के साथ वे राजस्थान में आरएसएस प्रचारक के काम में लगे रहे। अगले एक दशक तक राजस्थान ही उनकी कर्मभूमि बनकर रहा, पहले प्रचारक के तौर पर और फिर भारतीय जनसंघ के पूर्णकालीन कार्यकर्ता के तौर पर।
वर्ष 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की। तबसे लेकर सन 1957 तक लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के सचिव रहे। 1957 में आडवाणी से राजस्थान छोड़कर दिल्ली आने के लिए कहा गया। इसके बाद दिल्ली इनका कार्यक्षेत्र और राजनीति का अखाड़ा बन गई।
आडवाणी ने वर्ष 1960 में अपने जीवन का एक नया अध्याय बतौर पत्रकार शुरू किया। उन्होंने हिन्दी साप्ताहिक पत्रिका ऑर्गनाइजर में सहायक संपादक का पदभार ग्रहण किया। उन्हें फिल्मों का काफी शौक था और ‘नेत्र’ नाम से सिनेमा और थिएटर पर लेखन करने लगे। ऑर्गनाइजर के साथ आडवाणी की पारी करीब 7 साल तक चली। इसके बाद वे पूरी तरह राजनीति में सक्रिय हो गए। वर्ष 1973 से 1977 तक उन्होंने भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष का दायित्व सम्भाला।
लालकृष्ण आडवाणी चार बार राज्यसभा के और पांच बार लोकसभा के सदस्य रहे। वर्ष 1977 से 1979 तक पहली बार केन्द्रीय सरकार में कैबिनेट मन्त्री की हैसियत से लालकृष्ण आडवाणी ने दायित्व सम्भाला। वे इस दौरान सूचना प्रसारण मन्त्री रहे।
1980 में भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद से लालकृष्ण आडवाणी वह शख्स हैं जो सबसे ज्यादा समय तक पार्टी में अध्यक्ष रहे। 1980 से 1990 के बीच आडवाणी ने भाजपा को एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने के लिए अपना पूरा समय दिया और इसका परिणाम तब सामने आया, जब 1984 में महज 2 सीटें हासिल करने वाली पार्टी को लोकसभा चुनावों में 86 सीटें मिलीं जो उस समय के लिहाज से काफी बेहतर प्रदर्शन था। पार्टी की स्थिति 1992 में 121 सीटों और 1996 में 161 पर पहुंच गई। आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर थी और भाजपा सबसे अधिक संख्या वाली पार्टी बनकर उभरी थी।
एक अच्छे सांसद के रूप में आडवाणी अपनी भूमिका के लिए कभी सराहे गए तो कभी पुरस्कृत भी किए गए। 2015 में आडवाणी को भारत के दूसरे सर्वाेच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। आडवाणी पुस्तकें, संगीत और सिनेमा में विशेष रुचि रखते हैं।