रामा तक्षक, नीदरलैंड्स
मई माह 2022 में, पोलिश एयरलाइंस से एम्स्टर्डम से दिल्ली वाया वारसा एयरपोर्ट जाना हुआ। वारसा एयरपोर्ट पर ट्रांजिट में दिल्ली की फ्लाइट का इंतजार करते हुए, मैं कॉफी कप हाथ में लिए हुए था। मेरे मस्तिष्क में चार वर्षीय बालक माइकल की याद उभर आई। स्मृतियों में नन्हा माइकल जी आया। पहली बार वारसा आने की यादें ताजा हो आई। माइकल से मिलने को मन भर आया। विचारों की एक कसमसाहट माइकल के व्यक्तित्व का चित्र बुनने लगी।
माइकल से मिलने से पहले दिन मैं क्राकोव में था। मेरी क्राकोव से ग्डांइस्क जाने की योजना थी। एक भारत के व्यापारी मित्र ने कहा था कि पोलैंड जा रहे हो तो अम्बर नगीने के व्यापार की सम्भावना तलाशना, ग्डांइस्क जरूर जाना। वहाँ जाने के लिए मैंने पोलैण्ड में, ग्लोबल ट्यूर्स, क्राकोव की मालकिन मार्था को पत्र लिखा था कि वे मेरी क्राकोव से ग्डांइस्क तक की यात्रा तथा ग्डांइस्क से वारसा की ट्रेन की टिकट बुक करवा दें। जब मैं क्राकोव पहुंचा तो मैंने सबसे पहले मार्था से क्राकोव से ग्डांइस्क तक की यात्रा तथा ग्डांइस्क से वारसा की ट्रेन रिजर्वेशन के बारे में पूछा। मार्था ने जवाब में बताया ’’मैं भी कापादोच्या और इस्तांबुल की यात्रा कर, कल ही लौटकर आई हूँ। आज ही टिकट करवाती हूँ। आप चिंता न करें।’’ ’’चिंता न करें’’ सुनकर मैं और अधिक चिंतित हुआ।
पोप जॉन पॉल द्वितीय पोलैंड में बहुत लोकप्रिय थे। पोप जॉन पॉल द्वितीय का जन्म, क्राकोव से पचास किलोमीटर दूर, वादोविचे के निकट स्थित छोटे से कस्बे कारोल वोयतिला में, 1920 में हुआ था। वे 31 मई से 10 जून तक पोलैण्ड की सबसे लम्बी यात्रा पर थे। जिस दिन मुझे क्राकोव से ग्डांइस्क जाना था उसी दिन पोप जॉन पॉल द्वितीय का क्राकोव में एक जनसभा को सम्बोधित करने का आयोजन था। यह सब मुझे ज्ञात न था। इस दिन क्राकोव शहर में सभी गलियों में भारी भीड़ देखकर मैंने मार्था से पूछा ’’क्या कुछ विशेष ...?’’
’’हाँ, सुना है पोप जॉन पॉल द्वितीय आ रहे हैं।’’
मार्था ने मेरे लिए रेल टिकट, बस टिकट और यहाँ तक की एयर टिकट बुक करने के लिए चौतरफा हाथ मारे लेकिन कुछ हाथ न लगा। सांझ हो चुकी थी। हम एक रेस्टोरेंट में भोजन कर चुके थे। मेरे चेहरे पर उभरी चिंता को देखकर मार्था बार बार यही कह रही थी कि चिंता मत करो। ’’चिंता मत करो।’’ ये तीन शब्द मेरी चिंता को दूर नहीं कर पा रहे थे।
सांझ का अंधेरा गहराने लगा था। रात के ग्यारह कब के बज चुके थे। आखिर मार्था ने कहा चलो घर चलते हैं। हम तीनों, मैं, मार्था और उसका पति क्रिस्टोफर लगभग बारह बजे उनके घर पहुंच गये। घर पहुंचने से पहले मार्था ने मेरी ओर देखते हुए ’’चिंता मत करो’’ शब्दों को फिर से दोहराया। इस समय तक मैं सब आस छोड़ चुका था। क्राकोव से ग्डांइस्क की दूरी लगभग छः सौ किलोमीटर है। मार्था के घर पहुंचते ही उसने कहा ’’अब तैयार हो जाओ। कार आ रही है।’’ कुछ ही समय बाद एक टैक्सी आई और मार्था ने कहा ’’मैं आपके साथ चलूंगी।’’ इस बात से मुझे बहुत शुकून मिला। ड्राइवर अंग्रेजी नहीं जानता था। मैंने मार्था से कहा ’’आप पीछे की सीट पर बैठ जाओ।’’
वह सहमत न हुई। उसने आगे की सीट पर बैठना उचित समझा और बोली ’’मैं मिखाइल (ड्राइवर) से बात करती रहूंगी।’’ यह सुन मैं पीछे की सीट पर लेटकर सो गया। कुछ घण्टे के बाद मैंने मार्था को पीछे की सीट पर आराम करने के लिए कहा। वह मान गई। हम सुबह एक पैट्रोल स्टेशन पर पहुंचे। वहीं थोड़ा मुंह धोकर ताजगी महसूस की। यहाँ से ग्डांइस्क एक घण्टे की दूरी पर था। थोड़ा ड्राइव करने के बाद हमने नाश्ता किया और दस बजने और दुकानों के खुलने का इंतजार करने लगे।
हम उसी ड्राइवर के साथ, ग्डांइस्क से दोपहर में वारसा के लिए रवाना हुए और लगभग चार घण्टे की ड्राइव के बाद कृस्टो के घर वारसा पहुंचे। मैंने टैक्सी ड्राइवर से बिल पूछा तो मार्था ने ड्राइवर को ’’नींए’’ कह इशारा किया। वह बिन बिल भुगतान लिए ’’जिन दोबरे’’ कह, कार स्टार्ट कर चला गया।
इन स्थितियों में, माइकल से मेरा मिलना जून 1997 में हुआ था। यह मेरी दूसरी पोलैंड यात्रा थी। यह बात लगभग छब्बीस वर्ष पूर्व की है। जैसा कि मैंने पहले लिखा, उस समय माइकल चार वर्ष का था। वह गौरे रंग के मां बाप की इकलौती संतान था। उसके लम्बे बाल, घुंघराले व स्वर्णिम रंग के थे। वह जब तब चेहरे को नीचा करता तो लटकते सुनहरे रंग के घुंघराले बालों से उसका चेहरा ढ़क जाता था। चेहरा ऊपर उठाने पर वह दोनों हाथों से चेहरे के सामने आये बालों को कान और माथे के ऊपर वापस धकेल सा देता था। ऐसा करने पर उसके चेहरे पर आया पसीना भी पुंछ जाता।
माइकल केवल पोलिश भाषा जानता था और मैं केवल हिंदी, अंग्रेजी या थोड़ी बहुत काम चलाऊ इटालियन। यानी हम दोनों के बीच किसी एक भाषा में संवाद या मजाक की स्थिति न थी। मातृभाषा और सीखी गई भाषाओं के जरिए कुछ भी संवाद सम्भव नहीं था। माइकल का पिता कृस्टो खरीददारी करने सुपरमार्केट गया था। मैंने भी सुपरमार्केट जाने का कहा तो कृस्टो ने सलाह दी ’’आप रात भर और दिन भर चलकर ही तो आये हो। वैसे भी मैं बहुत जल्दी लौटकर आ रहा हूँ।’’
माइकल की मां रसोई और घर के काम में व्यस्त थी। वह अपने ऑफिस से लौटकर आई ही थी और शाम का भोजन तैयार करने में लगी हुई थी। उसे भी केवल अपनी मातृभाषा पोलिश ही आती थी। मेरा इस घर में आना माइकल के लिए एक आकर्षण था। यह आकर्षण माइकल की आंखों में झलक रहा था। वह मुझसे बात करने का यत्न कर रहा था। लेकिन उसे मर्जी का जवाब न मिल रहा था। मैं जवाब में, अंग्रेजी में जो भी कुछ बोल रहा था। वह उसकी समझ से परे था। अचानक माइकल ने मेरा नाम पुकार कर, मेरा ध्यान आकर्षित किया। उसने मुझे अपने खिलौने दिखाने शुरू किए। खिलौने बच्चों की विरासत होते हैं। खिलौने दिखाते हुए वह पोलिश भाषा में कुछ कह रहा था। मैंने विस्मय भरे भाव से भौंहें चढ़ा, आंखें चौड़ी कर, हिन्दी में ही कहा ’’अरे इतने अच्छे खिलौने !’’
माइकल को मेरे विस्मयकारी बोध का अहसास हुआ। वह खुश नजर आया। उसके चेहरे पर मुस्कराहट उभरी और मुस्कान उसकी आंखों तक तैर गई। मुस्कान भरे चेहरे के साथ, उसने दूसरा खिलौना अपने हाथ में लेकर मुझे दिखाया और कुछ कहा। उसका कहना मेरी समझ से बाहर था। मैंने दूसरे खिलौने में भी दिलचस्पी दिखाकर हिन्दी में प्रशंसा की। इसके बाद एक तीसरा खिलौना, एक कार, उसने मेरे हाथ में दे दी।
मैंने खिलौने को फर्श पर टिका कर, कार में चाबी लगाकर स्टार्ट करने का खेल खेला। कार को हाथ में पकड़े पकड़े, फर्श पर, जितना सम्भव हो सकता था कार को दौड़ाया। मैंने मुंह में हवा भर, होटों को फड़फड़ा ’’फट, भर्र, फट, भर्र, भर्र’’ की आवाज की। साथ ही ’’पों पों पीं पीं’’ हार्न की नकल कर, अपनी आवाज को शांत किया। यह सुनकर माइकल की हंसी छलक उठी। उसके हाथ में अगला खिलौना एम्बुलेंस थी। मैंने प्रयास कर एम्बुलेंस के सायरन ’’नूं ना नूं... ना नूंउं.... नूं ना ऊं आं ऊं आं ’’ की आवाज मुंह से निकाली।
यह आवाज सुनकर माइकल के चेहरे पर, एक समझ की संतुष्टि का भाव उभरा। वह दौड़कर अपने खिलौनों की टोकरी में कुछ ढ़ूढने लगा। कुछ क्षण ढ़ूंढने के बाद, खिलौनों के ढ़ेर से हाथी को पकड़कर निकाला। यह खिलौना पकड़े हुए वह मेरी ओर बढ़ा और हाथी को मेरे सिर पर टिका दिया। जब मैंने बोझ तले दबी ’’गर्दन लुढ़काई’’ के नाटक का प्रयास किया तो उसने अपना खिलौना हाथी, मेरे कंधे पर रख दिया। मैंने हाथी के बोझिल होने का सांग रचा। मैं बोझ के दर्द से, कंधा और गर्दन झुका, शिकायत के साथ बड़बड़ाया।
मैं जमीन पर लेट गया। मेरी थकी देह की चाह भी यही थी। वह हाथी सहित मुझ पर चढ़ बैठा। मैं बोझ से कराहने का नाटक करने लगा। हालांकि बालक की देह का बोझ, मेरे थके बदन के लिए, वरदान सिद्ध हो रही थी। माइकल को मेरा नाटक करना बहुत पसंद आया। कुछ ही क्षणों में माइकल खेल को जीवनदान देते हुए, पोलिश भाषा में कुछ कहते हुए, वह सोफे पर चढ़ गया। उसने सोफे पर चढ़कर, सोफे पर रखे कुशन को मेरी ओर धीरे से फेंका। कुशन मेरे नजदीक ही गिरा। मैंने कुशन को बहुत ही सहज भाव से पकड़ कर, अपनी ओर खींचते हुए धीरे धीरे हवा में उठाया।
जमीन और सोफे की ऊंचाई से यह कुशन फाइट कुछ समय चली। माइकल मेरी ओर कुशन फेंकता तो उसकी हंसी हर बार बढ़ घट रही थी। उसकी हंसी को घर के किसी भी कौने में सुना जा सकता था। यह हंसी सुनकर माइकल की मां लीडिया अपना काम छोड़कर दौड़ी हुई आई। शायद उसे लगा हो कि माइकल मेरे साथ शरारत कर रहा है। लीडिया ने माइकल से पोलिश भाषा में कुछ कहा और वह वापस चली गयी। लीडिया के कुछ कहते ही माइकल की हंसी थम गई। वह कुछ क्षण को सोच में, गम्भीर हो गया।
सोच के चेहरे के साथ वह सोफे से नीचे उतर आया। वह कुछ खोजने लगा। उसने हाथी को फिर से उठाया और मेरे कन्धे पर ’’पदड़, पदड़, पदड़’’ कह हाथी को दौड़ाना शुरु कर दिया। कन्धे पर पड़ते हल्के दबाव को अनदेखा करते हुए, मैंने घुटनों और हाथों के बल माइकल को अपनी पीठ दिखाई। वह हंसता हुआ हाथी समेत मेरी पीठ पर चढ़ बैठा। मेरी पीठ पर बैठकर, उसने घुड़सवारी शुरू कर दी। माइकल को पीठ पर लादे लादे घोड़ा घर के कौनों की यात्रा पर निकलना पड़ा। कुछ देर बाद घोड़ा थककर लेट गया। माइकल घोड़े की छाती पर चढ़ बैठा। इस खेल में काफी समय निकल गया।
इसी बीच एक बार उसने मेरी हाथेली के पीछे की त्वचा को अपने नाखून से कुरेदा। मेरी चमड़ी पर एक सफेद सी लकीर उभरी। मैंने दर्द के मारे चीख का नाटक किया। मेरी दर्द भरी आवाज सुनकर वह सहम गया। मेरा हाथ कुरेदकर उसने त्वचा के रंग की जिज्ञासा को शांत किया। थोड़े समय बाद मुझे टॉयलेट जाना पड़ा। जब मुझे कुछ ज्यादा समय लगा तो माइकल ने दरवाजा पीटना शुरु कर दिया। बार बार मेरा नाम पुकारने लगा। मैंनें सोचा शायद माइकल का खेलने से मन नहीं भरा है। उसके दिमाग में कुछ था।
जैसे ही मैं टॉयलेट से निकला तो माइकल ने मेरा हाथ पकड़ लिया। वह मुझे गैलेरी में साथ चलने के लिए इशारा कर, कुछ कह रहा था। मेरा हाथ पकड़े पकड़े वह मुझे एक ओर चलने की जिद कर रहा था। मैंने उसके संकतों का अनुसरण किया। वह मुझे अपने कमरे में ले गया।
अगले दिन मेरी वारसा से रोम की फ्लाइट थी। मुझे एक रात इसी घर में गुजारनी थी। यहां यह भी बताना जरूरी है कि मैं माइकल के घर पोलैंड में कैसे पहुंचा।
माइकल के पिता कृस्टो। जिनका नाम मैं यहीं तक सीमित रखना चाहूंगा। कृस्टो पोलैंड के गुप्तचर विभाग में कार्यरत थे। वे मार्था के ग्रुप में एक बार भारत आये थे। समूह में उनसे थोड़ी सी गुफ्तगू हुई थी। मैंने उनसे पूछा था कि आप क्या काम करते हैं ? मेरे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ना पूछो तो बेहतर है। मैं बहुत व्यस्त रहता हूँ। इसलिए मैंने ना पूछना ही बेहतर समझा। मैं स्वयं बतौर गाइड तीन सप्ताह की भारत नेपाल की इस लम्बी यात्रा में पोलैंड के इस पर्यटक समूह के साथ था। इस ग्रुप के कुछ लोगों से मेरे सम्बंध प्रगाढ़ बन गए थे।
माइकल के साथ खेलते हुए दोस्ती और गहरी हो गई थी। हम एक कमरे में थे। यह उसका स्वंय का कमरा था। मैंने सोचा यह मुझे अपना कमरा दिखाने लाया है। उसने बिस्तर पर हाथ रखकर कुछ कहा। मैं उसकी बात को समझ नहीं पा रहा था। वह मेरा हाथ थामे, अपने दूसरे हाथ से बिस्तर की ओर इशारा करने लगा। उसने कुछ और इशारा भी किया। मैंने कुछ अनुमान लगाने की कोशिश भी की। मैंने सोचा कि वह मुझे अपनी पसंद की बंदर लंगूर छपाई की बैडसीट दिखा रहा है। यह उसकी पसंदीदा बैडसीट है। डिनर के बाद शाम को मुझे पता चला कि मुझे माइकल के कमरे में ही सोना है। मेरा बिस्तर उसी के कमरे में है। माइकल का बार बार बिस्तर की ओर इशारा यही था कि यह बिस्तर आज रात आपके लिए है।
हम सब भोजन से पहले छोटे छोटे गिलास हाथ में लिए थे। इन गिलासों में घास से बनी जुबरोवका वोदका भरी थी। इसमें पानी या सोडा नहीं मिलाया गया था। अल्कोहल प्रतिशत चालीस था। गिलास हाथ में लिए सबके हाथ ऊपर एक स्वर में उठे। ’’नासद्रोवीय !’’ अर्थात चिन चिन। मदिरा के भरे गिलास छनक उठे।
जुबरोवका के भरे गिलास को ’’नासद्रोवीय’’ कहते हुए एक ही बार में गटकना पोलिश परम्परा है। यह कृस्टो ने मुझे बताया। मैंने उसके बताये अनुसार किया। इस क्षण का अनुभव मुंह का गले से पेट तक लावे की आग का सा बहना, उतरना सा रहा। लावे को गले से उतारने पर मेरे चेहरे पर रंग आ जा रहे थे। यह देखकर कृस्टो को हंसी आ गई। एक और हंसी का ठहाका भी हवा में, बहक जी उठा। कमरे की ऊर्जा में, ठहाके के साथ एक हल्कापन आकर ठहर गया। दुनिया भर की बातें होने लगी। यही हल्कापन सब बातों का गवाह बन खड़ा रहा।
मेरे गिलास को कृस्टो ने दूसरी बार वोदका भरने के लिए उठाया तो मैंने गिलास को पकड़ लिया। ’’एक ही बहुत हुआ’’ कहते हुए मैंने हाथ जोड़ लिए। यह सब होते होते हमने भोजन किया। यह जून का महीना था। गर्मियों में उत्तरी यूरोप में सूरज का प्रकाश शाम को बहुत देर तक बना रहता है। शाम के करीब 10.30 बजे तक सूरज की चमक बनी रहती है। खाना खाने के बाद हम घूमने निकले। माइकल बहुत उत्तेजित था। वह मेरी उंगली पकड़कर पैदल चल रहा था। अचानक उसे ठोकर लगी। वह गिर पड़ा। घुटने की त्वचा में थोड़ी खरोंच से आ गई थी। इस खरोंच के बीचोंबीच उभरी ललाई में उभरते रक्त कणों को देख, माइकल की आंखें आंसूओं से भर आई। वह दर्द के कारण कम और त्वचा में खरोंच और खून को देखकर रोने लगा। वह सड़क पर ही बैठ गया। उसकी मां ने उसे गोद में उठाने का प्रयास किया। वह अपनी मां की गोद में जाने के लिए राजी न हुआ। इसके बाद माइकल के पिता कृस्टो ने भी प्रयास किया। रोते हुए माइकल अपने पिता को अपनी चोट दिखाने लगा।
अवसर पाकर, कुछ क्षण बाद मैं उसके पास सड़क पर बैठ गया। मैंने कृस्टो की ओर आंखों से इशारा किया। मैंने दर्द को भगाने का नाटक रचा। इस बात को मैंने कृस्टो से बताया कि मैं थोड़ा नाटक करता हूँ। दर्द भगाता हूं। आप मेरी यह बात पोलिश भाषा में अनुवाद कर माइकल को बतायें कि दर्द को भगाया जा रहा है। मैं अपनी दाहिनी आधी खुली हाथेली को खरोंच के पास लाया। माइकल ने मेरी हथेली को अपने घुटने के करीब आते हुए देख रोना कम कर दिया था। उस समय वह अपने दायें हाथ की अंगुलियों से दाईं आंख को मसल रहा था। अंगुलियों के दबाव से उसकी दाईं आंख से आंसू लुढ़क कर गाल पर, अपनी राह बना रहा था। बाईं आंख अभी भी आंसू से भरी थी।
मैंने अपनी हथेली को माइकल के घुटने के पास दो तीन सैकण्ड के ठहराव के बाद, आसमान की ओर ले जाकर, खोलते हुए गम्भीरता पूर्वक इटालियन में कहा ’’दोलोरे वा वीया।’’ इसे मैंने कई बार दोहराया ’’वा वीया दोलोरे, दोलोरे वा वीया।’’ यानि दर्द भाग जा। दर्द भाग जा। संगीत के स्वर में ऐसा मैंने कई बार दोहराया। ’’वा वीया दोलोरे, दोलोरे वा वीया।’’ तीन चार बार ऐसा दोहराये जाने पर माइकल ने रोना बंद कर दिया था।
’’वा वीया दोलोरे, दोलोरे वा वीया’’ शब्दों के साथ, पास आती अधखुली मुट्ठी और कुछ क्षण बाद आसमान की ओर खुलती हथेली और फैलती अंगुलियों...। ऐसा बार बार दोहराने पर माइकल की हंसी फूट पड़ी। उसकी बाईं आंख में अटका आंसू भी उसकी हंसी के साथ लुढ़क पड़ा। कृस्टो ने माइकल को स्वंय की गोद में लेना चाहा। लेकिन माइकल अपने पिता की गोद में जाने के लिए राजी न हुआ। अगले ही क्षण मैंने माइकल को गोद लेने के लिए हाथ फैलाए तो उसने भी मेरी गोद में आने के लिए अपने कंधे ढ़ीले छोड़ दिये। उसका रोना बंद हो गया। मैंने उसे अपने कंधे पर बैठाना उचित समझा। माइकल को भी बात जम गई। लगभग एक डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद लीडिया ने कुछ कहा।
कृस्टो ने अनुवाद कर बताया ’’अब माइकल के सोने का समय हो गया है। लीडिया माइकल को लेकर वापस घर जाना चाहती है। माइकल को कल स्कूल भी जाना है।’’ मैंने कहा ’’ठीक है।’’ लेकिन माइकल मेरे कंधे से नीचे उतरने को राजी न था। वह मेरे कन्धे से उतरकर अपनी मम्मी के पास जाने को राजी न हुआ। उसने मेरे माथे पर हथेलियों की कसकर पकड़ बना ली। उसने अपनी मम्मी से कहा ’’नींए’’ मतलब नहीं। कृस्टो ने लीडिया को कुछ कहा। वह वापस घर चली गयी।
हम टहलते टहलते पन्द्रह बीस मिनट बाद एक बड़े से पार्क के पास आ पहुंचे। हम पार्क में पहुंचे तो वहां पर हवा में संगीत घुल रहा था। हवा में संगीत का कम्पन्न था। वातावरण संगीत के स्वर में ऊर्जायमान था। ज्यों ज्यों हम नजदीक पहुंचे तो पता लगा कि इटली के मशहूर ओपेरा गायक लुचियानो पावारोती गा रहे हैं। इस संगीतमय वातावरण में भी माइकल मेरे कन्धों पर बैठा था। मैं संगीत से थरकती हवा में डूब मस्त हो गया था। माइकल मेरे सिर पर अपनी गर्दन टेढ़ी किये सो गया था। उसका शिथिल शरीर मुझे बोझिल लग रहा था। उसके पैर निढाल मेरी छाती पर लटक गये थे। कुछ समय पावारोती को सुनने के बाद हम घर लौट आये। वापसी के समय कृस्टो ने माइकल को अपनी गोद में लेकर उसका सिर कंधे से लगा लिया। माइकल एकदम गहरी नींद में सो गया था।
अगले दिन दोपहर में मुझे वारसा एयरपोर्ट के लिए निकलना था। कृस्टो ने कहा कि मैं आपको एयरपोर्ट छोड़ आऊंगा। मेरे एयरपोर्ट के लिए निकलने के समय ही माइकल का किंडरगार्टन से वापस आने का समय हो रहा था। लीडिया माइकल को लाने स्कूल गई हुई थी। उन दिनों मोबाइल न थे। कृस्टो ने कहा जल्दी से निकलते हैं। माइकल स्कूल से लौटेगा तो बहुत सम्भव है वह आपको अटेची के साथ निकलते देखकर रोये चिल्लाये। मेरी अटेची तैयार थी।
कृस्टो ने बताया कि किंडरगार्टन जाने से पहले नाश्ते के समय भी माइकल कह रहा था कि रामा को भी जगा दो। स्कूल के लिए निकलने से ठीक पहले वह आपको ’’जिन दोबरे’’ (शुभदिन) कहना चाहता था। लीडिया ने उसे राजी किया और कहा ’’स्कूल से लौटकर जिन दोबरे कहना।’’एयरपोर्ट जाते समय कृस्टो ने मुझे बताया कि आज सुबह उठते ही माइकल आपके कमरे के सामने से गुजरते हुए, आपके बारे में पूछ रहा था। उसने सुबह सुबह एक सवाल भी किया था। उसने अपनी मम्मी से पूछा ’’मम्मी रामा का रंग अलग क्यों है ? पापा जैसा क्यों नहीं है ?’’
’’रामा दूसरे देश के हैं। इसलिए उनका रंग भी अलग है।’’ मम्मी ने जवाब दिया।
यह सुनकर, कल शाम सड़क पर गिर जाने से लगी हल्की खरोंच पर उभरे खुरंड को अपनी मम्मी को दिखाते हुए माइकल बोला ’’कल उसने छू मंतर कर, मेरे दर्द को भगा दिया था।’’
रामा तक्षक, नीदरलैंड्स
मई माह 2022 में, पोलिश एयरलाइंस से एम्स्टर्डम से दिल्ली वाया वारसा एयरपोर्ट जाना हुआ। वारसा एयरपोर्ट पर ट्रांजिट में दिल्ली की फ्लाइट का इंतजार करते हुए, मैं कॉफी कप हाथ में लिए हुए था। मेरे मस्तिष्क में चार वर्षीय बालक माइकल की याद उभर आई। स्मृतियों में नन्हा माइकल जी आया। पहली बार वारसा आने की यादें ताजा हो आई। माइकल से मिलने को मन भर आया। विचारों की एक कसमसाहट माइकल के व्यक्तित्व का चित्र बुनने लगी।
माइकल से मिलने से पहले दिन मैं क्राकोव में था। मेरी क्राकोव से ग्डांइस्क जाने की योजना थी। एक भारत के व्यापारी मित्र ने कहा था कि पोलैंड जा रहे हो तो अम्बर नगीने के व्यापार की सम्भावना तलाशना, ग्डांइस्क जरूर जाना। वहाँ जाने के लिए मैंने पोलैण्ड में, ग्लोबल ट्यूर्स, क्राकोव की मालकिन मार्था को पत्र लिखा था कि वे मेरी क्राकोव से ग्डांइस्क तक की यात्रा तथा ग्डांइस्क से वारसा की ट्रेन की टिकट बुक करवा दें। जब मैं क्राकोव पहुंचा तो मैंने सबसे पहले मार्था से क्राकोव से ग्डांइस्क तक की यात्रा तथा ग्डांइस्क से वारसा की ट्रेन रिजर्वेशन के बारे में पूछा। मार्था ने जवाब में बताया ’’मैं भी कापादोच्या और इस्तांबुल की यात्रा कर, कल ही लौटकर आई हूँ। आज ही टिकट करवाती हूँ। आप चिंता न करें।’’ ’’चिंता न करें’’ सुनकर मैं और अधिक चिंतित हुआ।
पोप जॉन पॉल द्वितीय पोलैंड में बहुत लोकप्रिय थे। पोप जॉन पॉल द्वितीय का जन्म, क्राकोव से पचास किलोमीटर दूर, वादोविचे के निकट स्थित छोटे से कस्बे कारोल वोयतिला में, 1920 में हुआ था। वे 31 मई से 10 जून तक पोलैण्ड की सबसे लम्बी यात्रा पर थे। जिस दिन मुझे क्राकोव से ग्डांइस्क जाना था उसी दिन पोप जॉन पॉल द्वितीय का क्राकोव में एक जनसभा को सम्बोधित करने का आयोजन था। यह सब मुझे ज्ञात न था। इस दिन क्राकोव शहर में सभी गलियों में भारी भीड़ देखकर मैंने मार्था से पूछा ’’क्या कुछ विशेष ...?’’
’’हाँ, सुना है पोप जॉन पॉल द्वितीय आ रहे हैं।’’
मार्था ने मेरे लिए रेल टिकट, बस टिकट और यहाँ तक की एयर टिकट बुक करने के लिए चौतरफा हाथ मारे लेकिन कुछ हाथ न लगा। सांझ हो चुकी थी। हम एक रेस्टोरेंट में भोजन कर चुके थे। मेरे चेहरे पर उभरी चिंता को देखकर मार्था बार बार यही कह रही थी कि चिंता मत करो। ’’चिंता मत करो।’’ ये तीन शब्द मेरी चिंता को दूर नहीं कर पा रहे थे।
सांझ का अंधेरा गहराने लगा था। रात के ग्यारह कब के बज चुके थे। आखिर मार्था ने कहा चलो घर चलते हैं। हम तीनों, मैं, मार्था और उसका पति क्रिस्टोफर लगभग बारह बजे उनके घर पहुंच गये। घर पहुंचने से पहले मार्था ने मेरी ओर देखते हुए ’’चिंता मत करो’’ शब्दों को फिर से दोहराया। इस समय तक मैं सब आस छोड़ चुका था। क्राकोव से ग्डांइस्क की दूरी लगभग छः सौ किलोमीटर है। मार्था के घर पहुंचते ही उसने कहा ’’अब तैयार हो जाओ। कार आ रही है।’’ कुछ ही समय बाद एक टैक्सी आई और मार्था ने कहा ’’मैं आपके साथ चलूंगी।’’ इस बात से मुझे बहुत शुकून मिला। ड्राइवर अंग्रेजी नहीं जानता था। मैंने मार्था से कहा ’’आप पीछे की सीट पर बैठ जाओ।’’
वह सहमत न हुई। उसने आगे की सीट पर बैठना उचित समझा और बोली ’’मैं मिखाइल (ड्राइवर) से बात करती रहूंगी।’’ यह सुन मैं पीछे की सीट पर लेटकर सो गया। कुछ घण्टे के बाद मैंने मार्था को पीछे की सीट पर आराम करने के लिए कहा। वह मान गई। हम सुबह एक पैट्रोल स्टेशन पर पहुंचे। वहीं थोड़ा मुंह धोकर ताजगी महसूस की। यहाँ से ग्डांइस्क एक घण्टे की दूरी पर था। थोड़ा ड्राइव करने के बाद हमने नाश्ता किया और दस बजने और दुकानों के खुलने का इंतजार करने लगे।
हम उसी ड्राइवर के साथ, ग्डांइस्क से दोपहर में वारसा के लिए रवाना हुए और लगभग चार घण्टे की ड्राइव के बाद कृस्टो के घर वारसा पहुंचे। मैंने टैक्सी ड्राइवर से बिल पूछा तो मार्था ने ड्राइवर को ’’नींए’’ कह इशारा किया। वह बिन बिल भुगतान लिए ’’जिन दोबरे’’ कह, कार स्टार्ट कर चला गया।
इन स्थितियों में, माइकल से मेरा मिलना जून 1997 में हुआ था। यह मेरी दूसरी पोलैंड यात्रा थी। यह बात लगभग छब्बीस वर्ष पूर्व की है। जैसा कि मैंने पहले लिखा, उस समय माइकल चार वर्ष का था। वह गौरे रंग के मां बाप की इकलौती संतान था। उसके लम्बे बाल, घुंघराले व स्वर्णिम रंग के थे। वह जब तब चेहरे को नीचा करता तो लटकते सुनहरे रंग के घुंघराले बालों से उसका चेहरा ढ़क जाता था। चेहरा ऊपर उठाने पर वह दोनों हाथों से चेहरे के सामने आये बालों को कान और माथे के ऊपर वापस धकेल सा देता था। ऐसा करने पर उसके चेहरे पर आया पसीना भी पुंछ जाता।
माइकल केवल पोलिश भाषा जानता था और मैं केवल हिंदी, अंग्रेजी या थोड़ी बहुत काम चलाऊ इटालियन। यानी हम दोनों के बीच किसी एक भाषा में संवाद या मजाक की स्थिति न थी। मातृभाषा और सीखी गई भाषाओं के जरिए कुछ भी संवाद सम्भव नहीं था। माइकल का पिता कृस्टो खरीददारी करने सुपरमार्केट गया था। मैंने भी सुपरमार्केट जाने का कहा तो कृस्टो ने सलाह दी ’’आप रात भर और दिन भर चलकर ही तो आये हो। वैसे भी मैं बहुत जल्दी लौटकर आ रहा हूँ।’’
माइकल की मां रसोई और घर के काम में व्यस्त थी। वह अपने ऑफिस से लौटकर आई ही थी और शाम का भोजन तैयार करने में लगी हुई थी। उसे भी केवल अपनी मातृभाषा पोलिश ही आती थी। मेरा इस घर में आना माइकल के लिए एक आकर्षण था। यह आकर्षण माइकल की आंखों में झलक रहा था। वह मुझसे बात करने का यत्न कर रहा था। लेकिन उसे मर्जी का जवाब न मिल रहा था। मैं जवाब में, अंग्रेजी में जो भी कुछ बोल रहा था। वह उसकी समझ से परे था। अचानक माइकल ने मेरा नाम पुकार कर, मेरा ध्यान आकर्षित किया। उसने मुझे अपने खिलौने दिखाने शुरू किए। खिलौने बच्चों की विरासत होते हैं। खिलौने दिखाते हुए वह पोलिश भाषा में कुछ कह रहा था। मैंने विस्मय भरे भाव से भौंहें चढ़ा, आंखें चौड़ी कर, हिन्दी में ही कहा ’’अरे इतने अच्छे खिलौने !’’
माइकल को मेरे विस्मयकारी बोध का अहसास हुआ। वह खुश नजर आया। उसके चेहरे पर मुस्कराहट उभरी और मुस्कान उसकी आंखों तक तैर गई। मुस्कान भरे चेहरे के साथ, उसने दूसरा खिलौना अपने हाथ में लेकर मुझे दिखाया और कुछ कहा। उसका कहना मेरी समझ से बाहर था। मैंने दूसरे खिलौने में भी दिलचस्पी दिखाकर हिन्दी में प्रशंसा की। इसके बाद एक तीसरा खिलौना, एक कार, उसने मेरे हाथ में दे दी।
मैंने खिलौने को फर्श पर टिका कर, कार में चाबी लगाकर स्टार्ट करने का खेल खेला। कार को हाथ में पकड़े पकड़े, फर्श पर, जितना सम्भव हो सकता था कार को दौड़ाया। मैंने मुंह में हवा भर, होटों को फड़फड़ा ’’फट, भर्र, फट, भर्र, भर्र’’ की आवाज की। साथ ही ’’पों पों पीं पीं’’ हार्न की नकल कर, अपनी आवाज को शांत किया। यह सुनकर माइकल की हंसी छलक उठी। उसके हाथ में अगला खिलौना एम्बुलेंस थी। मैंने प्रयास कर एम्बुलेंस के सायरन ’’नूं ना नूं... ना नूंउं.... नूं ना ऊं आं ऊं आं ’’ की आवाज मुंह से निकाली।
यह आवाज सुनकर माइकल के चेहरे पर, एक समझ की संतुष्टि का भाव उभरा। वह दौड़कर अपने खिलौनों की टोकरी में कुछ ढ़ूढने लगा। कुछ क्षण ढ़ूंढने के बाद, खिलौनों के ढ़ेर से हाथी को पकड़कर निकाला। यह खिलौना पकड़े हुए वह मेरी ओर बढ़ा और हाथी को मेरे सिर पर टिका दिया। जब मैंने बोझ तले दबी ’’गर्दन लुढ़काई’’ के नाटक का प्रयास किया तो उसने अपना खिलौना हाथी, मेरे कंधे पर रख दिया। मैंने हाथी के बोझिल होने का सांग रचा। मैं बोझ के दर्द से, कंधा और गर्दन झुका, शिकायत के साथ बड़बड़ाया।
मैं जमीन पर लेट गया। मेरी थकी देह की चाह भी यही थी। वह हाथी सहित मुझ पर चढ़ बैठा। मैं बोझ से कराहने का नाटक करने लगा। हालांकि बालक की देह का बोझ, मेरे थके बदन के लिए, वरदान सिद्ध हो रही थी। माइकल को मेरा नाटक करना बहुत पसंद आया। कुछ ही क्षणों में माइकल खेल को जीवनदान देते हुए, पोलिश भाषा में कुछ कहते हुए, वह सोफे पर चढ़ गया। उसने सोफे पर चढ़कर, सोफे पर रखे कुशन को मेरी ओर धीरे से फेंका। कुशन मेरे नजदीक ही गिरा। मैंने कुशन को बहुत ही सहज भाव से पकड़ कर, अपनी ओर खींचते हुए धीरे धीरे हवा में उठाया।
जमीन और सोफे की ऊंचाई से यह कुशन फाइट कुछ समय चली। माइकल मेरी ओर कुशन फेंकता तो उसकी हंसी हर बार बढ़ घट रही थी। उसकी हंसी को घर के किसी भी कौने में सुना जा सकता था। यह हंसी सुनकर माइकल की मां लीडिया अपना काम छोड़कर दौड़ी हुई आई। शायद उसे लगा हो कि माइकल मेरे साथ शरारत कर रहा है। लीडिया ने माइकल से पोलिश भाषा में कुछ कहा और वह वापस चली गयी। लीडिया के कुछ कहते ही माइकल की हंसी थम गई। वह कुछ क्षण को सोच में, गम्भीर हो गया।
सोच के चेहरे के साथ वह सोफे से नीचे उतर आया। वह कुछ खोजने लगा। उसने हाथी को फिर से उठाया और मेरे कन्धे पर ’’पदड़, पदड़, पदड़’’ कह हाथी को दौड़ाना शुरु कर दिया। कन्धे पर पड़ते हल्के दबाव को अनदेखा करते हुए, मैंने घुटनों और हाथों के बल माइकल को अपनी पीठ दिखाई। वह हंसता हुआ हाथी समेत मेरी पीठ पर चढ़ बैठा। मेरी पीठ पर बैठकर, उसने घुड़सवारी शुरू कर दी। माइकल को पीठ पर लादे लादे घोड़ा घर के कौनों की यात्रा पर निकलना पड़ा। कुछ देर बाद घोड़ा थककर लेट गया। माइकल घोड़े की छाती पर चढ़ बैठा। इस खेल में काफी समय निकल गया।
इसी बीच एक बार उसने मेरी हाथेली के पीछे की त्वचा को अपने नाखून से कुरेदा। मेरी चमड़ी पर एक सफेद सी लकीर उभरी। मैंने दर्द के मारे चीख का नाटक किया। मेरी दर्द भरी आवाज सुनकर वह सहम गया। मेरा हाथ कुरेदकर उसने त्वचा के रंग की जिज्ञासा को शांत किया। थोड़े समय बाद मुझे टॉयलेट जाना पड़ा। जब मुझे कुछ ज्यादा समय लगा तो माइकल ने दरवाजा पीटना शुरु कर दिया। बार बार मेरा नाम पुकारने लगा। मैंनें सोचा शायद माइकल का खेलने से मन नहीं भरा है। उसके दिमाग में कुछ था।
जैसे ही मैं टॉयलेट से निकला तो माइकल ने मेरा हाथ पकड़ लिया। वह मुझे गैलेरी में साथ चलने के लिए इशारा कर, कुछ कह रहा था। मेरा हाथ पकड़े पकड़े वह मुझे एक ओर चलने की जिद कर रहा था। मैंने उसके संकतों का अनुसरण किया। वह मुझे अपने कमरे में ले गया।
अगले दिन मेरी वारसा से रोम की फ्लाइट थी। मुझे एक रात इसी घर में गुजारनी थी। यहां यह भी बताना जरूरी है कि मैं माइकल के घर पोलैंड में कैसे पहुंचा।
माइकल के पिता कृस्टो। जिनका नाम मैं यहीं तक सीमित रखना चाहूंगा। कृस्टो पोलैंड के गुप्तचर विभाग में कार्यरत थे। वे मार्था के ग्रुप में एक बार भारत आये थे। समूह में उनसे थोड़ी सी गुफ्तगू हुई थी। मैंने उनसे पूछा था कि आप क्या काम करते हैं ? मेरे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ना पूछो तो बेहतर है। मैं बहुत व्यस्त रहता हूँ। इसलिए मैंने ना पूछना ही बेहतर समझा। मैं स्वयं बतौर गाइड तीन सप्ताह की भारत नेपाल की इस लम्बी यात्रा में पोलैंड के इस पर्यटक समूह के साथ था। इस ग्रुप के कुछ लोगों से मेरे सम्बंध प्रगाढ़ बन गए थे।
माइकल के साथ खेलते हुए दोस्ती और गहरी हो गई थी। हम एक कमरे में थे। यह उसका स्वंय का कमरा था। मैंने सोचा यह मुझे अपना कमरा दिखाने लाया है। उसने बिस्तर पर हाथ रखकर कुछ कहा। मैं उसकी बात को समझ नहीं पा रहा था। वह मेरा हाथ थामे, अपने दूसरे हाथ से बिस्तर की ओर इशारा करने लगा। उसने कुछ और इशारा भी किया। मैंने कुछ अनुमान लगाने की कोशिश भी की। मैंने सोचा कि वह मुझे अपनी पसंद की बंदर लंगूर छपाई की बैडसीट दिखा रहा है। यह उसकी पसंदीदा बैडसीट है। डिनर के बाद शाम को मुझे पता चला कि मुझे माइकल के कमरे में ही सोना है। मेरा बिस्तर उसी के कमरे में है। माइकल का बार बार बिस्तर की ओर इशारा यही था कि यह बिस्तर आज रात आपके लिए है।
हम सब भोजन से पहले छोटे छोटे गिलास हाथ में लिए थे। इन गिलासों में घास से बनी जुबरोवका वोदका भरी थी। इसमें पानी या सोडा नहीं मिलाया गया था। अल्कोहल प्रतिशत चालीस था। गिलास हाथ में लिए सबके हाथ ऊपर एक स्वर में उठे। ’’नासद्रोवीय !’’ अर्थात चिन चिन। मदिरा के भरे गिलास छनक उठे।
जुबरोवका के भरे गिलास को ’’नासद्रोवीय’’ कहते हुए एक ही बार में गटकना पोलिश परम्परा है। यह कृस्टो ने मुझे बताया। मैंने उसके बताये अनुसार किया। इस क्षण का अनुभव मुंह का गले से पेट तक लावे की आग का सा बहना, उतरना सा रहा। लावे को गले से उतारने पर मेरे चेहरे पर रंग आ जा रहे थे। यह देखकर कृस्टो को हंसी आ गई। एक और हंसी का ठहाका भी हवा में, बहक जी उठा। कमरे की ऊर्जा में, ठहाके के साथ एक हल्कापन आकर ठहर गया। दुनिया भर की बातें होने लगी। यही हल्कापन सब बातों का गवाह बन खड़ा रहा।
मेरे गिलास को कृस्टो ने दूसरी बार वोदका भरने के लिए उठाया तो मैंने गिलास को पकड़ लिया। ’’एक ही बहुत हुआ’’ कहते हुए मैंने हाथ जोड़ लिए। यह सब होते होते हमने भोजन किया। यह जून का महीना था। गर्मियों में उत्तरी यूरोप में सूरज का प्रकाश शाम को बहुत देर तक बना रहता है। शाम के करीब 10.30 बजे तक सूरज की चमक बनी रहती है। खाना खाने के बाद हम घूमने निकले। माइकल बहुत उत्तेजित था। वह मेरी उंगली पकड़कर पैदल चल रहा था। अचानक उसे ठोकर लगी। वह गिर पड़ा। घुटने की त्वचा में थोड़ी खरोंच से आ गई थी। इस खरोंच के बीचोंबीच उभरी ललाई में उभरते रक्त कणों को देख, माइकल की आंखें आंसूओं से भर आई। वह दर्द के कारण कम और त्वचा में खरोंच और खून को देखकर रोने लगा। वह सड़क पर ही बैठ गया। उसकी मां ने उसे गोद में उठाने का प्रयास किया। वह अपनी मां की गोद में जाने के लिए राजी न हुआ। इसके बाद माइकल के पिता कृस्टो ने भी प्रयास किया। रोते हुए माइकल अपने पिता को अपनी चोट दिखाने लगा।
अवसर पाकर, कुछ क्षण बाद मैं उसके पास सड़क पर बैठ गया। मैंने कृस्टो की ओर आंखों से इशारा किया। मैंने दर्द को भगाने का नाटक रचा। इस बात को मैंने कृस्टो से बताया कि मैं थोड़ा नाटक करता हूँ। दर्द भगाता हूं। आप मेरी यह बात पोलिश भाषा में अनुवाद कर माइकल को बतायें कि दर्द को भगाया जा रहा है। मैं अपनी दाहिनी आधी खुली हाथेली को खरोंच के पास लाया। माइकल ने मेरी हथेली को अपने घुटने के करीब आते हुए देख रोना कम कर दिया था। उस समय वह अपने दायें हाथ की अंगुलियों से दाईं आंख को मसल रहा था। अंगुलियों के दबाव से उसकी दाईं आंख से आंसू लुढ़क कर गाल पर, अपनी राह बना रहा था। बाईं आंख अभी भी आंसू से भरी थी।
मैंने अपनी हथेली को माइकल के घुटने के पास दो तीन सैकण्ड के ठहराव के बाद, आसमान की ओर ले जाकर, खोलते हुए गम्भीरता पूर्वक इटालियन में कहा ’’दोलोरे वा वीया।’’ इसे मैंने कई बार दोहराया ’’वा वीया दोलोरे, दोलोरे वा वीया।’’ यानि दर्द भाग जा। दर्द भाग जा। संगीत के स्वर में ऐसा मैंने कई बार दोहराया। ’’वा वीया दोलोरे, दोलोरे वा वीया।’’ तीन चार बार ऐसा दोहराये जाने पर माइकल ने रोना बंद कर दिया था।
’’वा वीया दोलोरे, दोलोरे वा वीया’’ शब्दों के साथ, पास आती अधखुली मुट्ठी और कुछ क्षण बाद आसमान की ओर खुलती हथेली और फैलती अंगुलियों...। ऐसा बार बार दोहराने पर माइकल की हंसी फूट पड़ी। उसकी बाईं आंख में अटका आंसू भी उसकी हंसी के साथ लुढ़क पड़ा। कृस्टो ने माइकल को स्वंय की गोद में लेना चाहा। लेकिन माइकल अपने पिता की गोद में जाने के लिए राजी न हुआ। अगले ही क्षण मैंने माइकल को गोद लेने के लिए हाथ फैलाए तो उसने भी मेरी गोद में आने के लिए अपने कंधे ढ़ीले छोड़ दिये। उसका रोना बंद हो गया। मैंने उसे अपने कंधे पर बैठाना उचित समझा। माइकल को भी बात जम गई। लगभग एक डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद लीडिया ने कुछ कहा।
कृस्टो ने अनुवाद कर बताया ’’अब माइकल के सोने का समय हो गया है। लीडिया माइकल को लेकर वापस घर जाना चाहती है। माइकल को कल स्कूल भी जाना है।’’ मैंने कहा ’’ठीक है।’’ लेकिन माइकल मेरे कंधे से नीचे उतरने को राजी न था। वह मेरे कन्धे से उतरकर अपनी मम्मी के पास जाने को राजी न हुआ। उसने मेरे माथे पर हथेलियों की कसकर पकड़ बना ली। उसने अपनी मम्मी से कहा ’’नींए’’ मतलब नहीं। कृस्टो ने लीडिया को कुछ कहा। वह वापस घर चली गयी।
हम टहलते टहलते पन्द्रह बीस मिनट बाद एक बड़े से पार्क के पास आ पहुंचे। हम पार्क में पहुंचे तो वहां पर हवा में संगीत घुल रहा था। हवा में संगीत का कम्पन्न था। वातावरण संगीत के स्वर में ऊर्जायमान था। ज्यों ज्यों हम नजदीक पहुंचे तो पता लगा कि इटली के मशहूर ओपेरा गायक लुचियानो पावारोती गा रहे हैं। इस संगीतमय वातावरण में भी माइकल मेरे कन्धों पर बैठा था। मैं संगीत से थरकती हवा में डूब मस्त हो गया था। माइकल मेरे सिर पर अपनी गर्दन टेढ़ी किये सो गया था। उसका शिथिल शरीर मुझे बोझिल लग रहा था। उसके पैर निढाल मेरी छाती पर लटक गये थे। कुछ समय पावारोती को सुनने के बाद हम घर लौट आये। वापसी के समय कृस्टो ने माइकल को अपनी गोद में लेकर उसका सिर कंधे से लगा लिया। माइकल एकदम गहरी नींद में सो गया था।
अगले दिन दोपहर में मुझे वारसा एयरपोर्ट के लिए निकलना था। कृस्टो ने कहा कि मैं आपको एयरपोर्ट छोड़ आऊंगा। मेरे एयरपोर्ट के लिए निकलने के समय ही माइकल का किंडरगार्टन से वापस आने का समय हो रहा था। लीडिया माइकल को लाने स्कूल गई हुई थी। उन दिनों मोबाइल न थे। कृस्टो ने कहा जल्दी से निकलते हैं। माइकल स्कूल से लौटेगा तो बहुत सम्भव है वह आपको अटेची के साथ निकलते देखकर रोये चिल्लाये। मेरी अटेची तैयार थी।
कृस्टो ने बताया कि किंडरगार्टन जाने से पहले नाश्ते के समय भी माइकल कह रहा था कि रामा को भी जगा दो। स्कूल के लिए निकलने से ठीक पहले वह आपको ’’जिन दोबरे’’ (शुभदिन) कहना चाहता था। लीडिया ने उसे राजी किया और कहा ’’स्कूल से लौटकर जिन दोबरे कहना।’’एयरपोर्ट जाते समय कृस्टो ने मुझे बताया कि आज सुबह उठते ही माइकल आपके कमरे के सामने से गुजरते हुए, आपके बारे में पूछ रहा था। उसने सुबह सुबह एक सवाल भी किया था। उसने अपनी मम्मी से पूछा ’’मम्मी रामा का रंग अलग क्यों है ? पापा जैसा क्यों नहीं है ?’’
’’रामा दूसरे देश के हैं। इसलिए उनका रंग भी अलग है।’’ मम्मी ने जवाब दिया।
यह सुनकर, कल शाम सड़क पर गिर जाने से लगी हल्की खरोंच पर उभरे खुरंड को अपनी मम्मी को दिखाते हुए माइकल बोला ’’कल उसने छू मंतर कर, मेरे दर्द को भगा दिया था।’’
रोचक! दर्द का अस्तित्व कल्पना है -निस्संदेह!
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