किसी व्यक्ति को भुलाने और भूलने के लिए दो तीन साल ही पर्याप्त होते हैं । लेकिन हम अपने प्रियजनों और पूर्वजों के चित्र अपने घरों में लगाकर उनकी स्मृति को पीढ़ी दर पीढ़ी अक्षुण्य बनाये रखते हैं । इसी क्रम में हम फ़ोटो फ़्रेम से लेकर चित्रों को बदलते रहते हैं । मेरा यहाँ उद्देश्य राजनीतिक लोगों से संबंधित है ।राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में किसी नायक और उसके नायकत्व को स्मरण करने का मंतव्य है । मैं महात्मा गांधी के विषय में बात कर रहा हूँ जिनको मरे पचहत्तर साल हो गये । फिर भी पूरा विश्व आज गांधी जी का 165 वाँ जन्म दिन मनाने जा रहा है । बड़े -बड़े सरकारी आयोजन होंगे । स्वच्छता अभियान चलाया जायेगा । जगह जगह उनकी प्रतिमा और चित्र पर हार चढ़ाये जाएँगे और पुष्पांजलि होगी । उनकी प्रशंसा में गीत लिखे और गाये जाएँगे । लाखों करोड़ों रुपये खर्च किये जाएँगे । फिर ऐसा क्या था गांधी जी में जो हम उन्हें आज भी भूलने के लिये तैयार नहीं है ? हम क्यों विदेशों में नयी नयी जगह पर गांधी जी की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं ? क्यों हम हर विदेशी अतिथि को गांधी समाधि पर ले जाते है ? उत्तर मिलेगा कि गाँधी जी ने आज़ादी की निर्णायक लड़ाई में देश का नेतृत्व किया । क्या इतना भर योगदान उन्हें आज भी याद करने के लिये पर्याप्त है ? गाँधी जी के साथ मिलकर अनेक ज्ञात -अज्ञात लोगों ने लड़ाई लड़ी थी फिर सारा श्रेय उनको ही क्यों दिया जाये ? उन्होंने तो अंग्रेजों और जिन्ना के साथ मिलकर देश का बटवारा करवा दिया ,कुछ लोगों का यह भी मत है और इसी के चलते उनकी हत्या की गयी । कुछ लोग आज भी उनके चित्र पर गोलियाँ चला रहे हैं ।
गांधी जी के प्रति इतने सम्मान और घृणा के बावजूद यदि आज भी वे हमारी श्रद्धा का केंद्र बने हुए है तो यह तथ्य उनके व्यक्तित्व की विराटता स्थापित करता है । उनकी विराटता में साधारण मनुष्य की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझना -वैष्णव जन तो तेने कहिए तो पीर पराई जाने है - सत्य के साथ अंतिम साँस तक खड़े रहना , गरीब और शोषित के उत्थान अर्थात् अंत्योदय की कामना करना , स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से आत्मनिर्भरता की परिकल्पना करना और सबसे प्रेम करते रहना , प्रमुख बिंदु हैं। इन्हीं उदार विचारों से प्रभावित होकर एक दिन लोगों ने मोहन दास करम चंद गाँधी से बापू और राष्ट्रपिता बना दिया । वे युग पुरुष बन गये । इसलिए देश की आज़ादी के बाद की हर सत्ता को उनके सामने नतमस्तक होना ही पड़ रहा है । देश ही नहीं विदेशियों के लिए भारत की अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत की जब प्रदर्शनी करनी होती है तब वहाँ वेद , उपनिषद , योग के साथ साथ एक खिड़की में मजबूरन गांधी को भी रखना पड़ता है । लेकिन एक वह समय भी आ सकता है जब गांधी जी उस खिड़की में न दिखाई दें और उनका स्थान कोई और महामानव ले ले । समय परिवर्तनशील है । हमें उसका स्वागत भी करना होगा । यह तो निश्चित है गाँधी जी की विचारधारा कभी विलुप्त नहीं होगी क्योंकि गाँधी बनना किसी के लिये संभव नहीं है और वर्तमान में कोई गाँधी से अधिक महान बनने की दिशा में बढ़ रहा हो , मुझे दिखता नहीं हैं। घोर स्वार्थ और घृणा की भूमि में कभी शांति और प्रेम के बीज अंकुरित हो नहीं सकते । विश्व को उनके दिये गये सत्य,अहिंसा और प्रेम के अद्भुत दर्शन/संदेश के कारण मैं चरखा चलाते हुए इस गाँधी जी को भूलना चाहते हुए भी गांधी जी को भूल नहीं पाता हूँ ।
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रामकिशोर उपाध्याय