पर्पल पेन साहित्यिक समूह द्वारा ऑनलाइन काव्य गोष्ठी 'प्रत्याशा' का आयोजन
(दिल्ली ब्यूरो) : गुरुवार, दिनांक 29 जून, 2023 को दिल्ली की अग्रणी साहित्यिक संस्था 'पर्पल पेन' द्वारा ऑनलाइन काव्य गोष्ठी 'प्रत्याशा' का आयोजन किया गया जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों से लाइन जुड़कर समूह के सदस्यों ने कविताओं का पाठ किया। काव्य गोष्ठी का प्रसारण पर्पल पेन के फेसबुक पेज पर किया गया जिसमें देश भर से जुड़े काव्य प्रेमियों ने कविताओं का रसास्वादन किया। पर्पल पेन साहित्यिक समूह की संस्थापक-अध्यक्ष वसुधा 'कनुप्रिया' द्वारा आयोजित 'प्रत्याशा' ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का संचालन सुदूर राज्य असम के गुवाहाटी से युवा कवि श्री करुणानिधि तिवारी ने किया। सभी प्रतिभागी कवियों एवं कवयित्रियों ने अनेकानेक विषयों पर आशावादी, उत्साह और उमंग से भरी सुंदर कविताओं का पाठ किया।
सर्व सुश्री श्री प्रमोद मिश्र 'हितैषी' (बड़वानी, मध्य प्रदेश), सुरेंद्रपाल वैद्य (मंडी, हिमाचल प्रदेश), रेखा जोशी और वंदना मोदी गोयल (फरीदाबाद, हरियाणा) सहित दिल्ली से गीता भाटिया, मीनाक्षी भटनागर और रजनी रामदेव ने अपनी रचनाओं से दर्शकों/श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इनके बाद संयोजक वसुधा 'कनुप्रिया और गोष्ठी के संचालक करुणानिधि तिवारी ने भी रचना पाठ किया।
अपने स्वागत वक्तव्य में वसुधा 'कनुप्रिया' ने कहा की भाग-दौड़ से भरे नीरस जीवन में कविता आशा का संचार करती है। इसलिए आज की गोष्ठी का शीर्षक ही 'प्रत्याशा' यानी आस, उम्मीद रखा गया है।
"आशा और विश्वास रहे तो विष भी मानव पीता है,
नयन-नयन में जोत जगाकर मेरा जीवन बीता है ।"
-- इन प्रेरक पंक्तियों के साथ वरिष्ठ कवि प्रबोध मिश्र 'हितैषी' ने काव्य पाठ का शुभारंभ किया।
जीवन की क्षणभंगुरता दर्शाते हुए ये, पुष्प का बिम्ब लिए निम्न पंक्तियाँ सुरेन्द्रपाल वैद्य ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में पेश कीं ---
"अल्प बहुत होता है जीवन, फिर भी खिलते फूल।
लेकिन मुस्काते हैं अविरल, करते कभी न भूल।
जीवन में आगे बढ़ना है, छोड़ें तर्क-वितर्क।
मिल जाएगी मंज़िल हमको, स्वयं हटेंगे शूल।"
कुछ इसी तरह का भाव मीनाक्षी भटनागर की कविता में मिला --
"कितना दुर्गम निर्जन पथ हो,आगे बढ़ता जाऊँगा,
अपने पैरों के छालों को, खुद सहलाता जाऊंगा।"
आपकी दूसरी कविता 'मोबाइलनामा जिसमें मोबाइल के बढ़ते प्रयोग के अच्छे-बुरे परिणामों का ज़िक्र था -- को भी बहुत सराहा गया।
"इक जहां ऐसा भी हो
जहाँ गम की परछाई न हो
सूरज भी हो और चांद भी
पर रात अंधियारी न हो" --- इन आशावादी पंक्तियों सहित गीता भाटिया ने कई सार्थक क्षणिकाएँ पढ़ी।
इक सुहानी सुबह और खिली धुप का स्वागत करती निम्न कविता पढ़ी रखा जोशी जी ने ---
"सुबह से शाम आँगन मेरे, है धूप फिसलती
इधर-उधर धरती पर उसकी रश्मियां थिरकती"
रूमानी तासीर के चंद अशआर वंदना मोदी गोयल ने पेश किये ---
खत में पहले सा इक गुलाब आए,
उस का कुछ इस तरह जवाब आए।
"या तो आये न नींद ही मुझको,
या तो उसका ही बस ख़्वाब आए।"
वीना तँवर ने एक समसामयिक कविता बरसात और जलभराव पर प्रस्तुत की। साथ ही उन्होंने एक भक्तिमय रचना भी पढ़ी ---
"सांवरे कबहु मिलोगे आय,
मन मंदिर में छवि तिहारी, मंद मंद मुस्काय
बनवारी, मयूरा पंख धराय, सांवरे कबहु मिलोगे आय"
हाल ही में एक फिल्म को लेकर बहुत विवाद हुआ; इसके परिपेक्ष्य में रजनी रामदेव ने जनमानस के आक्रोश को इस सवैये के माध्यम से व्यक्त किया ---
"आजु विचारत हैं तुलसी उनकी रचना किस ओर चली है
शब्द दशानन कै सुनि सोचत मानस ये किस कोर भली है
बुद्धि विवेक जु ताक धरे अब लेखनि भी किस छोर ढली है
अश्रु बहाय रही सरजू यह राम कथा किस घोर छली है ।"
'भोर का टुकड़ा' शीर्षक की कविता से करुणानिधि तिवारी ने भी अपनी बात कुछ यूँ कही --
"ओस की टूटी बूँद से चुनकर,
हरे - हरे पत्तों से बीन कर,
ले आओ तुम भोर का टुकड़ा,
आये जो रोशनदान से छन कर"
वसुधा 'कनुप्रिया' द्वारा प्रस्तुत इस मुक्तक को भी सभी ने बहुत सराहा --
"लगी है डूबने नैया बनो कान्हा सहारा तुम,
मची है बाढ़ से हलचल दिखाओ अब किनारा तुम।
बचाने आ गए मानव का धर कर वेश गिरिधारी,
बदल दो पल में तक़दीरें करो जो इक इशारा तुम l"
छंदमुक्त कविताओं के साथ-साथ दोहे, मुक्तक, कुण्डलिया, गीत, गीतिका, माहिया, सवैया, पद और ग़ज़ल पाठ कर प्रतिभागी कविगण ने पर्पल पेन ऑनलाइन लाइव काव्य गोष्ठी 'प्रत्याशा' ने अभिव्यक्ति के अनूठे रंग बिखेरे। युवा प्रतिभा करुणानिधि तिवारी के शानदार सञ्चालन की कविगण एवं लाइव प्रसारण से जुड़े सभी दर्शकों ने भूरी-भूरी प्रशंसा की। सुश्री मीनाक्षी भटनागर ने धन्यवाद ज्ञापित कर गोष्ठी का समापन किया।
रिपोर्ट -- वसुधा 'कनुप्रिया'