डिजिटल युग ने जहाँ मानव जीवन को आसान बनाया है, वहीं साइबर अपराधों के नए खतरे भी उतनी ही तेजी से सामने आए हैं। आज दुनिया का हर देश हजारों-लाखों टेराबाइट डेटा संग्रह कर रहा है, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था उतनी मजबूत नहीं बन पाई है। परिणामस्वरूप, डेटा-चोरी, डेटा-लीक और अनधिकृत डेटा-शेयरिंग विश्वभर में गंभीर संकट के रूप में उभर रहे हैं। 2024-25 की अंतरराष्ट्रीय साइबर रिपोर्टों से पता चलता है कि कुछ देशों में इन घटनाओं की मात्रा अन्य देशों की तुलना में कई गुना अधिक है। इसका मुख्य कारण इन देशों में डिजिटल अवसंरचना का विशाल विस्तार, बड़ी कंपनियों द्वारा डेटा-संग्रह का पैमाना, और साइबर सुरक्षा की चुनौतियाँ हैं। अमेरिका, चीन, रूस, भारत और ब्राज़ील देशों में डेटा-लीक की मात्रा केवल संख्या में ही नहीं, बल्कि उसके प्रभाव, वित्तीय लागत, पारदर्शिता और साइबर-हमलों की तीव्रता में भी अलग-अलग है।
अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा डेटा-ब्रीच हॉटस्पॉट
अमेरिका लंबे समय से डेटा-लीक की घटनाओं में शीर्ष पर रहा है। 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 489 बड़े सार्वजनिक डेटा-ब्रीच दर्ज किए गए, जबकि कुल वार्षिक घटनाओं की संख्या 4,600 से भी अधिक मानी जाती है। आँकड़ों से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में ही अमेरिका से 5 अरब से अधिक डेटा-रिकॉर्ड्स लीक हुए। अमेरिका की यह स्थिति कई कारणों से बनती है। पहला, वहाँ डिजिटल अर्थव्यवस्था और ऑनलाइन सेवाओं का प्रसार सबसे अधिक है। दूसरा, हेल्थकेयर, फाइनेंस, ई-कॉमर्स और क्लाउड कंपनियों के पास अत्यंत संवेदनशील उपभोक्ता डेटा मौजूद रहता है, जिसे साइबर अपराधी बड़े मूल्य पर बेचते हैं। तीसरा, अमेरिका में घटनाओं का खुलासा अनिवार्य है, इसलिए अधिक मामले सार्वजनिक हो जाते हैं। इसके साथ एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि अमेरिका में किसी डेटा-ब्रीच की औसत लागत 10.22 मिलियन डॉलर से अधिक है, जो दुनिया में सबसे ऊँची है। यह लागत संस्थाओं के लिए भारी बोझ बन जाती है, परंतु उपभोक्ता सुरक्षा के प्रति मजबूत कानूनी ढाँचा होने के कारण पारदर्शिता भी उच्च रहती है।
चीन सबसे अधिक अकाउंट-लीक वाला देश
यदि घटनाओं की संख्या नहीं, बल्कि ब्रीच्ड अकाउंट्स की बात करें, तो 2024 की वैश्विक रिपोर्ट में चीन दुनिया में पहले स्थान पर पाया गया। देश के कई बड़े सरकारी व निजी डेटाबेस, स्वास्थ्य, नागरिक पहचान, मोबाइल सेवाएं, ई-कॉमर्स, साइबर अपराधियों का प्रमुख निशाना रहते हैं। चीन में कई बार गलत कॉन्फ़िगरेशन, अपर्याप्त एन्क्रिप्शन और विशाल सामाजिक डेटा-प्लेटफॉर्म के कारण बड़े पैमाने पर अकाउंट-लीक होते हैं। अनुमान के अनुसार पिछले वर्षों में चीन से 2 अरब से अधिक रिकॉर्ड्स डार्कवेब पर उपलब्ध हुए। यहाँ डेटा-लीक का एक कारण यह भी है कि कई ब्रिचेज़ सरकारी संस्थानों पर होते हैं, और कुछ मामलों का सार्वजनिक खुलासा सीमित रूप में ही किया जाता है। इससे वास्तविक आँकड़े अनुमान से भी कहीं अधिक हो सकते हैं।
रूस डार्कवेब में सबसे अधिक उपलब्ध डेटा
रूस साइबर युद्ध, डिजिटल जासूसी और ऑनलाइन वित्तीय अपराधों के केंद्रों में से एक माना जाता है। कई अंतरराष्ट्रीय साइबर सुरक्षा कंपनियों की रिपोर्ट बताती हैं कि रूस से 4.5 अरब से अधिक डेटा-प्वाइंट्स लीक हुए, जो दुनिया में सबसे ज्यादा उपलब्ध “चोरी के डेटा“ की श्रेणी में आता है। रूस में डेटा-लीक के दो प्रमुख कारण हैं। पहला, देश के सरकारी, सैन्य और बैंकिंग ढाँचे को लेकर लगातार साइबर हमले किए जाते हैं। दूसरा, रूस के भीतर भी कई साइबर अपराधी समूह सक्रिय हैं जो डेटा चोरी कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेचते हैं। रूस की स्थिति यह दर्शाती है कि डेटा-सुरक्षा केवल तकनीक से नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक परिस्थितियों से भी प्रभावित होती है।
भारत तेजी से उभरता हुआ टॉप 3 डेटा-लीक देश
भारत में डिजिटल क्रांति ने सामाजिक व आर्थिक बदलाव को नई दिशा दी है। लेकिन इसी के साथ डेटा-ब्रीच की घटनाएँ भी बड़ी गति से बढ़ी हैं। 2024 की रिपोर्ट में भारत को तीसरा सबसे अधिक डेटा-ब्रीच वाला देश बताया गया, जहाँ 114 बड़े साइबर घटनाएँ दर्ज की गईं। भारत में लीक हुए रिकॉर्ड्स की संख्या कई रिपोर्टों में 30-50 करोड़ के बीच बताई जाती है। ज्यादातर हमले स्वास्थ्य, शिक्षा, टेलीकॉम, सरकारी पोर्टल्स और ऑनलाइन सेवाओं पर होते हैं। भारत में सबसे बड़ी समस्या थर्ड-पार्टी वेंडर सिक्योरिटी, कमजोर पासवर्ड नीति और असुरक्षित क्लाउड कॉन्फ़िगरेशन है। भारत डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन रहा है। आधार, यूपीआई, डिजिटल हेल्थ मिशन आदि। लेकिन जैसे-जैसे डेटा संग्रह बढ़ता जा रहा है, सुरक्षा चुनौती भी उसी गति से जटिल होती जा रही है। विश्व स्तर पर भारत की यह बढ़ती संवेदनशीलता चिंता का विषय तो है, लेकिन इसे सुधारने की संभावनाएँ भी उतनी ही अधिक हैं, क्योंकि देश साइबर कानूनों को तेज़ी से मजबूत कर रहा है।
ब्राज़ील लैटिन अमेरिका का सबसे बड़ा डेटा-लीक क्षेत्र
ब्राज़ील डिजिटल भुगतान और इंटरनेट उपयोग के मामले में लैटिन अमेरिका का अग्रणी देश है। हालाँकि, देश अभी भी डेटा सुरक्षा कानूनों को पूरी तरह लागू करने की प्रक्रिया में है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में ब्राज़ील से 20-40 करोड़ रिकॉर्ड्स लीक होने की घटनाएँ दर्ज की गईं और इसे वैश्विक स्तर पर टॉप-5 में स्थान मिला। ब्राज़ील की चुनौतियों में सबसे बड़ा तत्व है, मोबाइल बैंकिंग और ई-कॉमर्स का तेजी से विस्तार, लेकिन समान गति से साइबर सुरक्षा अवसंरचना का विकास न हो पाना। इसके कारण क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी, पहचान-चोरी और सोशल मीडिया डेटा एक्सपोज़र जैसी घटनाएँ लगातार सामने आती रहती हैं।
सभी देशों के आँकड़ों की तुलना करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि डेटा-लीक की समस्या किसी विशेष क्षेत्र तक सीमित नहीं है। लेकिन कुछ देशों में इसके कारण अलग-अलग हैं। कहीं पारदर्शिता अधिक है, तो कहीं डिजिटल रिकॉर्ड्स का आकार बड़ा, कहीं साइबर अपराधियों की गतिविधियाँ व्यापक हैं, और कहीं डेटा-सुरक्षा ढाँचा अभी निर्माण के चरण में है। संक्षेप में कहें तो अमेरिका घटनाओं की संख्या और वित्तीय नुकसान में सबसे आगे है। चीन ब्रीच्ड अकाउंट्स की श्रेणी में शीर्ष पर है। रूस डार्कवेब पर उपलब्ध चोरी के डेटा की मात्रा में अग्रणी है। भारत तीव्र गति से बढ़ती डेटा-लीक घटनाओं के कारण अब वैश्विक टॉप-3 में शामिल है। ब्राज़ील लैटिन अमेरिकी क्षेत्र में सबसे अधिक प्रभावित देश है।
इन आँकड़ों से यह निष्कर्ष निकलता है कि डिजिटल सुरक्षा अब वैश्विक चुनौती बन चुकी है। देशों को केवल तकनीकी सुरक्षा पर नहीं, बल्कि कानून, जागरूकता, प्रशिक्षण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। डेटा-लीक की हर घटना सिर्फ एक संस्था का नुकसान नहीं होती, यह करोड़ों लोगों के निजी जीवन, आर्थिक सुरक्षा और डिजिटल विश्वास पर सीधा प्रहार करती है।
लेखक
डॉ. चेतन आनंद
(कवि-पत्रकार)
