कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आज केवल तकनीकी प्रगति का प्रतीक नहीं, बल्कि एक ऐसी शक्ति बन चुकी है जो मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रही है। शिक्षा, पत्रकारिता, कला, उद्योग, शासन, कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं। भारत जैसे युवा-प्रधान देश के लिए यह तकनीक वरदान भी है और खतरा भी। जहाँ एक ओर एआई नए अवसरों और नवाचार की राह खोलता है, वहीं दूसरी ओर यह नौजवानों की रचनात्मकता, रोजगार, मानसिक संतुलन और नैतिक मूल्यों के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है।
युवाओं पर एआई का प्रभाव, अवसर या विनाश?
1.रोजगार पर खतरा-एआई और ऑटोमेशन के कारण दुनिया भर में लाखों पारंपरिक नौकरियाँ खतरे में हैं। भारत में विशेष रूप से कॉल सेंटर, डेटा एंट्री, अकाउंटिंग, ग्राफिक डिजाइन, कंटेंट राइटिंग जैसी नौकरियाँ पहले से ही एआई टूल्स द्वारा संचालित की जा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठनों का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में लगभग 40-50 प्रतिशत नौकरियाँ एआई से प्रभावित होंगी। यह स्थिति युवाओं में बेरोज़गारी और असुरक्षा की भावना बढ़ा रही है।
2. शिक्षा में सुविधा या आलस्य-एआई-टूल्स जैसे चैट जीपीटीए जैमिनी आदि ने शिक्षा-जगत में क्रांति ला दी है। छात्र अब तुरंत उत्तर, प्रोजेक्ट और निबंध प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन डॉ. प्रतिमा मूर्ति के अनुसार, इस आसान उपलब्धता ने युवाओं में “रचनात्मकता की सुस्ती” पैदा की है। उनका कहना है कि अत्यधिक एआई-निर्भरता छात्रों की आलोचनात्मक सोच और ध्यान-क्षमता को कमजोर कर रही है। शॉर्टकट से सफलता पाने की आदत उन्हें आत्म-विश्वास की बजाय मशीन पर निर्भर बना रही है।
3.नैतिक और मानसिक संकट-एआई द्वारा निर्मित फेक वीडियो, डीपफेक्स और गलत जानकारी युवाओं के मन में भ्रम फैला रहे हैं। सोशल मीडिया पर फैलती एआई-जनित झूठी खबरें और छवियाँ उनकी सोच और विश्वसनीयता को प्रभावित करती हैं। डॉ. प्रतिमा मूर्ति के अनुसार, यह न केवल संज्ञानात्मक क्षमताओं को प्रभावित करता है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन रहा है।
4.कला और रचनात्मकता पर असर-कला, संगीत, कविता, पेंटिंग, लेखन, इन सभी क्षेत्रों में एआई ने “भावनाहीन कला” का प्रवाह शुरू कर दिया है। जहाँ पहले कलाकार वर्षों तक अभ्यास कर संवेदनायुक्त रचनाएँ करते थे, अब एआई-जनरेटेड गीत, चित्र और कहानियाँ कुछ सेकंड में बन जाती हैं। डॉ. पायल अरोड़ा, जो भारत-मूल की डिजिटल मानवविज्ञानी हैं, कहती हैं कि “एआई का खतरा तब बढ़ता है जब युवा इसे केवल उपभोक्ता के रूप में इस्तेमाल करते हैं, निर्माता के रूप में नहीं।” उनका मानना है कि अगर युवा डिजाइन-सोच और आलोचनात्मक क्षमता विकसित करें, तो एआई उनका साथी बन सकता है, शत्रु नहीं।
विद्वानों के विचार, संतुलित दृष्टिकोण
1. डॉ. पायल अरोड़ा का कहना है कि एआई एक शक्ति है जो समाज में समानता भी ला सकती है और असमानता भी बढ़ा सकती है। युवाओं को केवल तकनीक का उपयोग करना नहीं, बल्कि उसे “समझना, सवाल करना और पुनःडिज़ाइन करना” आना चाहिए। यदि भारत के युवा एआई को नियंत्रित करने की कला सीख लें, तो वे उपभोक्ता नहीं, निर्माता बनेंगे।”
2. डॉ. प्रतिमा मूर्ति ने चेतावनी दी है कि अत्यधिक एआई-निर्भरता युवाओं को “भावनाहीन दक्षता” की ओर धकेल रही है। एआई से प्राप्त जानकारी में कई बार “भ्रमित या गलत” तत्व होते हैं, जिससे मानसिक असंतुलन, सूचना-भ्रम और आत्म-पहचान की समस्या उत्पन्न होती है। उनका सुझाव है कि शिक्षा-संस्थान “एआई नैतिकता” और “डिजिटल संतुलन” पर जोर दें।
3. अंतरराष्ट्रीय शोध और भारतीय परिप्रेक्ष्य-ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक अध्ययन के अनुसार, भारत के 57 प्रतिशत युवा एआई चैटबॉट्स से “भावनात्मक समर्थन” प्राप्त कर रहे हैं। यह मनोवैज्ञानिक दृष्टि से चिंता का विषय है, क्योंकि मशीनें सहानुभूति नहीं रखतीं। स्प्रिंगल जर्नल में प्रकाशित शोध बताता है कि उच्च शिक्षा में “एआई-साक्षरता” और “नैतिक शिक्षा” को प्राथमिकता देने की जरूरत है। एआरएक्सवी डॉट ओआरजी पर जारी पेपर “इथीकल एआई फॉर यंग डिजिटल सिटीजन्स” युवाओं के लिए डेटा-गोपनीयता, एल्गोरिदमिक पक्षपात और स्वायत्तता की रक्षा को लेकर चेतावनी देता है।
खतरे के बीच अवसर-एआई को केवल खतरा मानना भी उचित नहीं है। जैसा कि कई विशेषज्ञों ने कहा है, एआई एक दोधारी तलवार है, उपयोग पर निर्भर करता है कि यह विकास का साधन बनेगा या विनाश का कारण।
नए रोजगार के अवसर-एआई आधारित स्टार्ट-अप, डेटा एनालिटिक्स, मशीन-लर्निंग, साइबर-सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में नई नौकरियाँ तेज़ी से उभर रही हैं।
व्यक्तिगत शिक्षण-एआई से शिक्षा-प्रणाली में व्यक्तिगत मार्गदर्शन संभव हो रहा है।
सामाजिक नवाचार- भारत के युवा स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण के क्षेत्र में एआई आधारित समाधान विकसित कर रहे हैं।
कौशल-विकास का युग-एआई युग में जो युवा “सीखना और पुनःसीखना” की आदत रखेगा, वही भविष्य का नेतृत्व करेगा।
विद्वानों द्वारा सुझाए गए उपाय
एआई-साक्षरता-स्कूलों और कॉलेजों में एआई की बुनियादी समझ और उसका नैतिक प्रयोग पढ़ाया जाए।
नैतिकता और मानवीय दृष्टिकोण-शिक्षा-नीतियों में एआई के साथ “नैतिक व्यवहार, सत्य और संवेदना” को प्राथमिकता दी जाए।
एआई स्किल इंडिया मिशन-सरकार और उद्योग मिलकर युवाओं को व्यावहारिक एआई कौशल सिखाएँ।
डेटा-गोपनीयता की शिक्षा-युवाओं को सिखाया जाए कि उनका डेटा कैसे सुरक्षित रहे और वे तकनीक का अंधानुकरण न करें।
रचनात्मकता का संरक्षण-कला, संगीत, साहित्य, और संस्कृति के क्षेत्र में एआई का उपयोग “सहायक” की तरह हो, “प्रतिस्पर्धी” की तरह नहीं।
एआई भारत के युवाओं के लिए न तो पूर्णतः वरदान है, न अभिशाप। यह उस चाकू की तरह है जो भोजन भी बना सकता है और घाव भी। अगर युवा बिना समझे केवल इसके उपयोगकर्ता बने रहेंगे, तो यह उनकी सोच, भावनाओं और रोजगार को निगल जाएगा। लेकिन अगर वे एआई को सीखने, सृजन करने और नियंत्रित करने की शक्ति में बदल दें, तो यही तकनीक भारत को “एआई विश्वगुरु” बना सकती है। जैसा कि डॉ. पायल अरोड़ा कहती हैं-“एआई के युग में असली शक्ति डेटा की नहीं, दिशा की है।” भारत के युवाओं को चाहिए कि वे इस दिशा को अपने हाथों में लें ताकि तकनीक मानवता की दास बने, स्वामी नहीं।
लेखक
डॉ. चेतन आनंद
(कवि-पत्रकार)
