भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम’ को लिखे आज लगभग 150 वर्ष पूरे हो चुके हैं, परंतु विडम्बना यह है कि यह गीत आज भी विवादों के घेरे में है। जो गीत कभी स्वतंत्रता संग्राम के समय भारतीय जनमानस में जोश, बलिदान और मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना का प्रतीक बना था, वही आज धार्मिक, राजनीतिक और वैचारिक मतभेदों का केंद्र बन गया है। सवाल उठता है आखि़र 150 साल बाद भी यह गीत विवादों से मुक्त क्यों नहीं हो सका?
इतिहास और उत्पत्ति
वन्दे मातरम् गीत बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने 1875 में रचा था, जो बाद में उनके प्रसिद्ध उपन्यास आनन्दमठ (1882) में सम्मिलित हुआ। यह गीत मूलतः बंगाल की मातृभूमि की महिमा का वर्णन करता है, लेकिन धीरे-धीरे यह समूचे भारत की मातृभूमि का प्रतीक बन गया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह गीत ‘स्वराज्य’ और ‘स्वाभिमान’ का नारा बन गया था। लाला लाजपत राय, अरविंद घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर और महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने इसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक माना। 1950 में संविधान सभा ने इसे भारत का “राष्ट्रीय गीत” घोषित किया, जबकि “जन गण मन” को “राष्ट्रीय गान” का दर्जा मिला। लेकिन तभी से इसके कुछ धार्मिक और वैचारिक पक्षों को लेकर मतभेद प्रारंभ हुए।
विवाद के प्रमुख कारण
1. धार्मिक प्रतीकवाद और संवेदनशीलता-गीत के कुछ छंदों में माँ दुर्गा और देवी स्वरूपा मातृभूमि का चित्रण मिलता है। जैसे पंक्ति कृ “त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी”। हिन्दू दृष्टि से यह प्रतीकात्मक है, परंतु मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग का मत है कि मातृभूमि को देवी मानकर पूजना उनके एकेश्वरवादी सिद्धांत के विपरीत है। इसलिए, उनके लिए यह धार्मिक रूप से अस्वीकार्य बन जाता है। यही कारण है कि स्वतंत्रता संग्राम के समय भी कई मुस्लिम नेताओं ने इसके पूर्ण पाठ का विरोध किया था। वर्तमान में जम्मू-कश्मीर की मुत्तहिदा मजलिस-ए-उलेमा संस्था ने सरकार के उस आदेश का विरोध किया, जिसमें स्कूलों में वन्दे मातरम् को अनिवार्य रूप से गाने की बात कही गई थी। उनका कहना है कि यह आदेश “धार्मिक स्वतंत्रता” के अधिकार का उल्लंघन करता है।
2. अनिवार्यता बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता-वन्दे मातरम् गाना या न गाना, यह देशभक्ति का पैमाना नहीं हो सकता, यह बात कई विपक्षी नेताओं और शिक्षाविदों ने दोहराई है। महाराष्ट्र में हाल ही में जारी आदेश में सभी विद्यालयों को प्रतिदिन यह गीत गाने का निर्देश दिया गया, जिससे बहस तेज हो गई। समाजवादी पार्टी के नेता अबू आसिम आज़मी ने कहा-“जैसे मैं किसी को नमाज़ पढ़ने के लिए मजबूर नहीं कर सकता, वैसे ही कोई मुझे वन्दे मातरम् गाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।” विपक्षी नेताओं का कहना है कि देशभक्ति का प्रदर्शन वैकल्पिक होना चाहिए, अनिवार्य नहीं। जबकि सत्ताधारी पक्ष का तर्क है कि यह गीत राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है और इसे गाना हर नागरिक का सम्मान है।
3. राजनीति और प्रतीकवाद-150वीं वर्षगाँठ के अवसर पर भारतीय जनता पार्टी ने इसे राष्ट्रीय गौरव का उत्सव बनाते हुए देशभर में कार्यक्रम आयोजित किए। महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि “वन्दे मातरम् भारत की आत्मा का स्वर है।” दूसरी ओर कांग्रेस पर आरोप लगाया गया कि उसने 1937 में इस गीत के केवल पहले दो छंदों को स्वीकार किया और देवी-दुर्गा वाले छंदों को हटा दिया था, ताकि मुस्लिम समुदाय की भावना को आहत न किया जाए। बीजेपी के नेता सी.आर. केशवन ने कहा कि “नेहरू और कांग्रेस ने जानबूझकर माँ दुर्गा वाले हिस्से को हटाया ताकि तुष्टिकरण की राजनीति की जा सके।” कांग्रेस का जवाब था कि गीत के पहले दो छंद राष्ट्रवादी भावना के प्रतीक हैं, जबकि बाद के छंद धार्मिक प्रकृति के हैं, इसलिए संविधान-निरपेक्ष भारत के लिए दो छंद पर्याप्त माने गए।
4. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक व्याख्या का अंतर-विद्वान जे. जे. लिप्नर अपने शोध लेख ‘आइकॉन एंड मदर्स’ में लिखते हैं कि वन्दे मातरम् का मातृस्वरूप भारतीय सभ्यता में देवी-माँ की सांस्कृतिक छवि से जुड़ा है। यह किसी धर्म की आराधना नहीं बल्कि मातृभूमि के प्रति प्रेम का प्रतीक है। किन्तु समाज की विविध धार्मिक परंपराओं में इस प्रतीक की व्याख्या अलग-अलग हुई है। कुछ समुदायों ने इसे “राष्ट्र की माता” के रूप में स्वीकार किया, तो कुछ ने इसे “देवी की उपासना” के रूप में देखा। यह बहुआयामी अर्थ ही आज विवाद का कारण बन गया है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विवाद
नवम्बर 2025 में, गीत के 150 वर्ष पूरे होने पर देशभर में समारोहों का आयोजन हुआ। परंतु कई राज्यों में इसे लेकर राजनीति भी गरमाई। राजस्थान, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर में विपक्षी दलों ने कहा कि सरकार इसे एक “धार्मिक राष्ट्रवाद” के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत कर रही है। दूसरी ओर बीजेपी और उससे जुड़े संगठन इसे “भारत माता की आराधना” बताते हुए राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक मान रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ी। एक वर्ग ने कहा कि “जो वन्दे मातरम् नहीं कह सकता, वह देशभक्त नहीं।” वहीं दूसरा वर्ग कहता है कि “देशभक्ति का अर्थ जबरन थोपना नहीं है, बल्कि विविधता में एकता को स्वीकार करना है।”
विद्वानों की दृष्टि
राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत दोनों ही भारत की पहचान के अंग हैं, परंतु दोनों का स्वर अलग है। राष्ट्रगान (जन गण मन) “राज्य की व्यवस्था और एकता” का प्रतीक है, जबकि वन्दे मातरम् “भावनात्मक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” का। इतिहासकार रामचन्द्र गुहा के अनुसार, “वन्दे मातरम् का असली अर्थ भारत की भूमि और संस्कृति के प्रति प्रेम है, न कि किसी देवी की आराधना।” कई समाजशास्त्रियों का मत है कि यह विवाद भारत की धार्मिक बहुलता और राजनीतिक ध्रुवीकरण का प्रतीक बन गया है। गीत पर प्रतिबंध या अनिवार्यता, दोनों ही चरम स्थितियाँ हैं; समाधान संतुलन में है।
वन्दे मातरम् का सांस्कृतिक अर्थ
वन्दे मातरम का अर्थ है-“माँ, मैं तुम्हें नमन करता हूँ।” यह मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का प्रतीक है। स्वतंत्रता संग्राम के समय यह नारा जब गूँजता था, तो अंग्रेज शासन काँप उठता था। “वन्दे मातरम” के स्वर में वह शक्ति थी जिसने भगत सिंह, खुदीराम बोस, बिपिनचन्द्र पाल, सुभाषचन्द्र बोस जैसे युवाओं को प्रेरित किया। आज जब यह गीत विवादों में घिरा है, तो शायद हमें उसके मूल अर्थ और भावना को पुनः समझने की आवश्यकता है, यह किसी धर्म की नहीं, बल्कि भारत की मिट्टी की वंदना है। 150 वर्षों बाद भी वन्दे मातरम् का विवाद यह दिखाता है कि भारत की राष्ट्रीय प्रतीकात्मक एकता अभी भी संवेदनशील मुद्दा है। यह गीत भारत की आत्मा, संस्कृति और संघर्ष का प्रतीक है। लेकिन जब इसे राजनीतिक या धार्मिक दृष्टि से देखा जाता है तो इसकी पवित्रता कमजोर पड़ जाती है। गीत के रचनाकार बंकिमचन्द्र का उद्देश्य देश की धरती, नदियों, वनों और जनजीवन को “माँ” के रूप में पूजना था, न कि किसी संप्रदाय विशेष की देवी के रूप में। यदि हम इस मूल भावना को समझ सकें, तो वन्दे मातरम् पुनः वही प्रेरणा बन सकता है जो 1905 में स्वदेशी आंदोलन का नारा बना था। वन्दे मातरम् को लेकर मतभेद हो सकते हैं, परंतु यह अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि इस गीत ने भारतीय स्वतंत्रता और राष्ट्रभावना को एकजुट किया। इसलिए आज भी इसका संदेश स्पष्ट है-“भारत माता की सेवा ही सर्वोच्च धर्म है, और उसकी वंदना ही सच्ची देशभक्ति।”
लेखक
डॉ. चेतन आनंद
(कवि-पत्रकार)
