4 अक्तूबर, 2025 नई दिल्ली| “युद्ध शाश्वत सत्य है| यह युद्ध चाहे भीतरी शत्रु से हो, चाहे बाहरी शत्रु से|युद्ध की शुरुआत व्यक्ति के अपने संघर्ष से ही होती है| समय तथा समाज में परिवर्तन से युद्ध के रूपों में भी परिवर्तन आया है|युद्ध दर्शन से जुड़ी साहित्यिक कृतियाँ हमें ज्ञान संपदा, हमारी सांस्कृतिक विरासत एवं भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ती हैं|” ये शब्द नव उन्नयन साहित्यिक सोसायटी और आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ, श्यामा प्रसाद मुखर्जी महाविद्यालय, पंजाबी बाग, दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में महाविद्यालय के सभागार में 'युद्ध दर्शन और हिंदी साहित्य' विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित (प्रतिष्ठित समालोचक एवं साहित्य चिंतक, लखनऊ) ने कहे।
इस अवसर पर प्रो. पवन अग्रवाल (हिंदी विभागाध्यक्ष, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ) विशिष्ट अतिथि एवं प्रो. सुशील शर्मा (मिजोरम विश्वविद्यालय, मिजोरम) सारस्वत अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। दीप प्रज्वलन एवं 'माँ शारदे' की सुमधुर वंदना की परंपरा के साथ कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया गया। नव उन्नयन साहित्यिक सोसायटी के संस्थापक प्रो. पूरनचंद टंडन ने प्रतीक चिह्न, अंगवस्त्र एवं उपहार देकर सभी अतिथियों का अभिनंदन एवं स्वागत किया। संस्था की महासचिव प्रो. विनीता कुमारी ने मंच संचालित करते हुए संस्था के गठन, उद्देश्य एवं साहित्यिक गतिविधियों से परिचित कराया।
नव उन्नयन साहित्यिक सोसायटी
की वार्षिक संगोष्ठी
प्रो. टंडन ने सभागार में उपस्थित प्रतिभागियों का स्वागत-अभिवादन करने के बाद संगोष्ठी की रूपरेखा, उद्देश्य और विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए युद्ध की आवश्यकता और उसके विभिन्न आयामों से परिचित कराया। प्रो. दीक्षित ने विभिन्न पौराणिक, साहित्यिक रचनाओं एवं ऐतिहासिक साक्ष्यों द्वारा विषय का गहन विश्लेषण एवं विशद विवेचन किया। पीलीभीत से आमंत्रित वक्ता श्री प्रणव शास्त्री ने युयुत्सु भाव छोड़ देने एवं विश्व शांति को स्थापित करने के पक्ष में अपनी बात रखी। प्रो. सुशील शर्मा ने ‘कृष्ण काव्य और युद्ध दर्शन’ पर बात की। मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. पवन अग्रवाल ने विषय के व्यावहारिक पक्ष को उद्घाटित किया। उन्होंने युद्ध दर्शन का मूल धर्म-स्थापना, मानव-हित और स्त्री-उत्थान को बताया। विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों से अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि वीरता के लिए अस्त्र आवश्यक नहीं है, बल्कि भाषा भी शक्तिशाली अस्त्र है। प्रो. टंडन ने स्वदेश, स्वमूल्य, स्वत्व, स्वाभिमान की रक्षा को युद्ध की आधारशिला बताया गया। उन्होंने युद्ध से जुड़े अनुशासनों पर भी बात की।
इस मंच से संस्था की त्रैमासिक पत्रिका ‘सहृदय’ के नए अंक और डॉ. वनिता शर्मा के गीत-काव्य संग्रह – विरह वनितांश का लोकार्पण किया गया। संगोष्ठी के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र दिए गए और प्रो. विनीता द्वारा सभी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का सफलतापूर्वक समापन किया गया।
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रिपोर्ट प्रस्तुतकर्ता टीम –
प्रो. रवि शर्मा ‘मधुप’, डॉ. ममता चौरसिया, डॉ. साक्षी जोशी एवं डॉ. प्रीति मिश्र