भाव यानी इसे खयाल, विचार, भावना या किसी व्यक्ति या वस्तु की स्थिति गुण या विशेषता भी कहा जा सकता है। यानी किसी कार्य या बात का उद्देश्य या मतलब भाव कहलाता है। संस्कृत में भाव की उत्पत्ति भव से मानी गई है। भव का अर्थ होना या अस्तित्व, जो किसी की अवस्था को दर्शाता है। भाव के समानार्थी शब्द मनोभाव, जज्बात, भावना, विचार, अभिप्राय या दशा भी कहे जाते हैं। अकसर होता यह है कि हमारे मन में भाव अचानक उमड़ते हैं और शब्दों के माध्यम से इसे हम बिना सोचे-समझे अभिव्यक्त कर देते हैं। इन भावों से शब्दों के माध्यम से रसों की निष्पत्ति होती है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हमारे भाव तो अच्छे होते हैं लेकिन हम जिस भाषा का प्रयोग करते हैं उसके अर्थ दूसरे को समझ नहीं आते। यानी अपने भावों को ट्रांसफर करने में हमने जिस भाषा या तरीके का इस्तेमाल किया, वह दूसरे को समझाने के काम नहीं आया। इससे होता क्या है, अनावश्यक नाराजगी, गुस्सा, सम्बंध खराब और रिश्तों में टूटन। कभी-कभी यह होता है कि हम मोबाइल फोन पर किसी से अपने भाव प्रकट करते हैं तो दूसरा हमारी प्रत्यक्ष उपस्थिति न होने के कारण उसका गलत अर्थ लगा बैठता है। अपनी बात को समझाना बहुत मुश्किल हो जाता है। आखिर क्या कारण हैं कि हम अपने भावों को स्पष्ट रूप से दूसरे को समझाने में बहुत अक्षम हो जाते हैं। ऐसा हम क्या करें कि हमारे भाव दूसरा व्यक्ति आसानी से समझ जाए और नाराज भी न हो। चाहे हम परिवार में हों, ऑफिस में या समाज में, हमारे व्यक्तित्व का प्रभाव हमारे भाव ही तय करते हैं। साथ ही उसे दूसरे तक भेजने के लिए हमारी भाषा निर्धारित करती है। अपने भावों को सही तरीके से दूसरों को समझाने के लिए हमें चाहिएं-अच्छे भाव, सुंदर शब्द, मनमोहक शारीरिक भाषा, बेहतरीन लेखन और भावों को सुंदर भाषा में दूसरे तक भेजने की कला।
हमारे ग्रंथों में भाव के चार प्रकार माने गये हैं-स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव। स्थायी विभाव 11 प्रकार के गिने जाते हैं, जिनसे 11 प्रकार के रसों की निष्पत्ति होती है। स्थायी भाव हैं-श्रृंगार, हास्य, करुण, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शांत, वात्सल्य और भक्ति। इनसे क्रमशः रति या प्रेम, हंसी, शोक या करुणा, उत्साह, क्रोध, भय, घृणा या जुगुप्सा, आश्चर्य, निर्वेद, स्नेह और अनुराग रस की उत्पत्ति होती है। विभाव दो प्रकार के होते हैं-आलम्बन और उद्दीपन। अनुभाव भी दो प्रकार के होते हैं-सात्विक और कायिक। जबकि 33 प्रकार के संचारी भाव होते हैं-निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, आलस्य, दैन्य, चिंता, मोह, स्मृति, धृति, ब्रीड़ा, चपलता, हर्ष, आवेग, जड़ता, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अमर्ष, अविहित्था, उग्रता, मति, व्याधि, उन्माद, मरण और वितर्क। यूं तो इन भावों के प्रकारों के भी प्रकार होते हैं लेकिन हम ज्यादा गहराई में नहीं जाएंगे। बस इतना समझ लो कि हमारे भाव हमारे जीवन में तरह-तरह से आते हैं और अनेक प्रकार से अपना गहरा प्रभाव डालते हैं।
अब इतने सारे भाव और उनके प्रकारों को अभिव्यक्त करने के लिए अच्छी शब्दावली का चयन करने की कला भी हमें आनी चाहिए। तीन प्रकार की शब्द शक्तियां साहित्य में गिनाई गई हैं-अभिधा, लक्षणा और व्यंजना। कहते हैं कि लक्षणा और व्यंजना में कहीं गई बात, कविता, कहानी, नाटक आदि समाज को सही से प्रभावित करते हैं। ज्यादातर अभिधा में कही गईं बातें आप पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। अभिधा का मतलब बात या भाव को सीधे-सीधे अभिव्यक्त करना। तू मूर्ख है, यह हुई अभिधा शब्दशक्ति। तू गधा है, यह हुई लक्षणा शब्दशक्ति मगर तू तो बहुत विद्वान है, इसे कहते हैं व्यंजना शब्दशक्ति। अब आपको तय करना है कि आपके भाव किस शब्दशक्ति में अभिव्यक्त होने चाहिएं ताकि सामने वाले को वह बात बुरी भी न लगे और सम्बंधों में मधुरता भी बनी रहे।
शब्दावली के साथ आपको अपने भाव ट्रांसफर करने की कला भी आना जरूरी है। ट्रांसफर मतलब संप्रेषण। संप्रेषण भी तीन प्रकार का होता है-मौखिक, गैर मौखिक और लिखित। मौखिक में आप मौखिक रूप से अपने भावों को अभिव्यक्त करते हैं। गैर मौखिक संप्रेषण में शारीरिक भाषा या आपके हाव-भाव महत्वपूर्ण होते हैं जबकि इन दोनों प्रकारों से जब काम नहीं चलता तो अकसर लोग या कलाकार अपने भावों को लिखित में अभिव्यक्त करते हैं। भाव के सही संप्रेषण से आपके सम्बंध अच्छे बने रहते हैं। समस्याएं हल हो जाती हैं और दूसरों को प्रेरित करने में आपके भाव मदद करते हैं।
संप्रेषण की बाधाएं-
1. भाषा की बाधाएं
2. सांस्कृतिक अंतर
3. भावनात्मक बाधाएं जैसे डर या क्रोध आड़े आना।
संप्रेषण बेहतर कैसे बनाएं-
1. भावनाएं स्पष्ट रूप से व्यक्त करें।
2. सुनने और समझने की कला का अभ्यास करें।
3. गैर मौखिक संकेतों पर ध्यान दें।
4. अपनी शारीरिक भाषा और आवाज के उतार-चढ़ाव पर ध्यान दें।
5. सांस्कृतिक अंतरों के प्रति संवेदनशील रहें।
6. नियमित अभ्यास करें।
अगर आप इन तरीकों को समझ गये तो आपको अपने जीवन में कभी भी अपने भावों को अभिव्यक्त करने में कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। अगर आप भावों को अभिव्यक्ति न दे पाएं तो सबसे अच्छा उपाय आप मौन धारण कर लें। मौन आपको भगवान बुध बनाता है। जो मौन रहकर अपने भावों को दूसरों तक पहुंचा देते हैं वे तथागत कहलाते हैं। पूर्ण ज्ञान होने पर व्यक्ति मौन धारण कर लेता है। लेकिन समाज और साहित्य की विविध विधाओं में अपना स्थान बनाने के लिए आपको अपने भावों को सुंदर तरीके से अभिव्यक्त करने की कला आना बेहद जरूरी है। तो देर किस बात की आज से ही अभ्यास शुरू कीजिए। शुभ दिवस।
लेखक
डॉ. चेतन आनंद
कवि, पत्रकार, विचारक