-डॉ. अशोक कुमार गदिया
अभी हाल ही में हम सबने देखा कि पहलगाम कश्मीर में पाकिस्तान की प्रायोजित एवं प्रशिक्षित सेना के गुन्डों ने हमारे निर्दोष भारतीयों की उनका मजहब पूछकर निर्मम हत्या कर दी। इस हत्याकांड में 26 निर्दोष जानें उनके परिवारजनों के सामने गईं। यह कुकृत्य पाकिस्तान सेना द्वारा पहली बार नहीं किया गया है, यह सिलसिला सन् 1948 से चला आ रहा है। हर बार हमारा समाज एवं सरकार यह निर्णय लेती है कि हम इस तरह के हत्याकांड को करने वाले आतंकवादियों से सख्ती से निबटेंगे। इन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा देंगे और आतंकियों और आतंकवाद का खात्मा करके ही चैन लेंगे। हम कई वर्षों से बेचैन हैं। आतंकवाद से परेशान हैं। पीड़ित हैं। भुक्तभोगी हैं। पर कुछ नहीं कर पा रहे हैं। जितना इस बीमारी का इलाज करते हैं, बीमारी उतनी ही बढ़ती जाती है। बल्कि यह बीमारी हर बार एक नया दर्द लेकर हमारे सामने आती है। इस बार यह नया दर्द पहलगाम की घटना के रूप में मिला है। जिसने भारतीय समाज को झकझोर दिया है। समाज के हर व्यक्ति चाहे वह किसी जाति सम्प्रदाय का हो यह मजहब का, सबने एक आवाज में कहा कि आतंकियों को मौत की सज़ा दो और आतंकवाद को पालने-पोसने वाली शक्तियों को सबक सिखाओ। पहली बार पाकिस्तानी आतंकवाद के विरोध में कश्मीर की जनता भी खुलकर सड़कों पर उतरी। सभी राजनैतिक दलों ने अपने आपसी मतभेद भुलाकर एक आवाज में सरकार का साथ देने का वादा किया और साथ भी दिया। हमारी सेना पाकिस्तान को करारा जवाब देने और वहां छिपे आतंकियों को चुन-चुनकर मारने के लिए पूर्णरूप से तैयार एवं सक्षम भी है। ऐसे में यदि पाकिस्तान की सेना लड़ने आए तो उससे भी दो-दो हाथ कर उसे पूरी तरह परास्त करने को तैयार है। हमारे एक-एक जवान की यह दृढ़ इच्छा है कि यदि इस बार पाकिस्तान से लड़ने का मौका मिल जाए तो उसे छठी का दूध याद दिला देंगे। दुश्मनों का सर्वनाश कर उनका अस्तित्व ही खत्म कर देंगे। भारत की जनता तन, मन और धन से पूरी तरह से सरकार के साथ है। वह सरकार में बैठे हमारे मुखिया आदरणीय यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से आस लगाये बैठी है कि मोदी जी इस बार आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे और हमें हमारा कश्मीर सम्पूर्ण रूप से मिलेगा। पाकिस्तान में प्रताड़ित बलूची समाज को अपना स्वतंत्र राष्ट्र मिलेगा। बंगलादेश में बैठे मजहबी कठमुल्लाओं, आतंकियों एवं उन्मादी गुन्डों को कड़ी सजा मिलेगी। भारत अपने स्वाभिमान के साथ विश्व पटल पर अपना तिरंगा फहराएगा और विश्व को दिखाएगा कि हम शांतिप्रिय हैं। लेकिन यदि हमें कोई छेड़ेगा तो हम उसे छोडेंगे नहीं। हमारे यहां मजहबी आतंकवाद एवं जिहाद का कोई स्थान नहीं है। हमारे प्रधानमंत्री जी ने अपने हर भाषण में यही कहा कि मैं किसी भी कीमत पर देश नहीं झुकने दूंगा। भारत का मान बढ़ाऊंगा। सात मई को जब संघर्ष शुरू हुआ तो हमारी सेना ने संयम बरतते हुए सटीक निशाने लगाये। सम्पूर्ण विश्व ने हमारी तकनीक के साथ हमारी ताकत का बेहतरीन प्रदर्शन देखा। हमने पाकिस्तान की बचकानी हरकतों को भी बड़ी कुशलता के साथ कुचला। अभी हमारी थल सेना मैदान में उतरकर आर-पार की लड़ाई की तैयारी कर ही रही थी कि इतने में पता नहीं क्या हुआ, अचानक सीजफायर का ऐलान हो गया। उधर, चीन एवं अमेरिका सक्रिय हुए। उन्होंने पाकिस्तान को आईएमएफ से बड़ी तादाद में सहायता राशि दिलवा दी, हथियार दिये एवं भारत पर युद्धविराम का दबाव बनाने लगे। फिर हम बिना किसी विरोध के उनके दबाव में आ गये और युद्धविराम की घोषणा कर बैठे। जबकि अभी युद्ध तो आरम्भ ही नहीं हुआ था। यह तो ऐसा हुआ जैसे वार्म अप एक्सरसाइज में ही दोनों पहलवान थक गये और बिना अखाड़े में उतरे अपने-अपने घर लौट गये। भारत सरकार एवं हमारे प्रधानमंत्री जी पर ऐसा क्या दबाव था जिसने भारत की आम जनता की इच्छा एवं आकांक्षा के विरुद्ध ऐसा निर्णय लेने पर मजबूर किया, यह भारत की आम जनता जानना चाहती है। विपक्षी राजनीति के पैरोकारों ने यह बात फैला रखी है कि आज भारत की आम जनता अपने आपको ठगा और सहमा हुआ-सा महसूस कर रही है। यह भी चर्चाओं में है कि इस पूरे घटनाक्रम में टीवी मीडिया अपनी विश्वसनीयता खो बैठा है। टीवी चैनल देखने का बिल्कुल मन नहीं करता है। ऐसा लगता है कि ये सब झूठ बोल रहे हैं। कुछ अखबारों में प्रकाशित लेखों में यह पढ़ने को मिल रहा है कि यदि हम युद्धविराम नहीं करते तो पाकिस्तान बिना युद्ध आरम्भ किये ही परमाणु बम चलाने वाला था! उधर, विदेशी महाशक्तियां यह भी तर्क दे रही हैं कि पाकिस्तान तो बरबाद देश है, भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, हमें दिमाग से काम लेना चाहिए। यह युद्ध का समय नहीं है। हमें तो विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है। अगर युद्ध में जाएंगे तो बरबाद हो जाएंगे! तर्क यह भी दिया जा रहा है कि हमें तो केवल पहलगाम हत्याकांड का बदला लेना था, वही हमारा लक्ष्य था। और...वह हमने ठोस योजना बनाकर जांबाजी के साथ आतंकवादियों के ठिकाने नेस्तनाबूद करके ले लिया है। साथ ही पाकिस्तान के हमलों का मुंहतोड़ जवाब भी दे दिया है। उनके महत्वपूर्ण ठिकानों को बर्बाद करके अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल भी कर लिया है। और....यह हकीकत भी है कि हम अमेरिका, चीन एवं इंग्लैंड को नाराज कर अपनी अर्थव्यवस्था नहीं चला सकते। अतः यदि वे लोग नहीं चाहते तो हम युद्ध नहीं कर सकते। शायद यही कारण है कि युद्ध का फैसला हमारे प्रधानमंत्री, हमारी मंत्रिपरिषद, हमारे सेना प्रमुख एवं हमारे सुरक्षा सलाहकार अकेले अपने दम पर नहीं कर सकते। यह तो हमारे देश के बाहर बैठी आर्थिक शक्तियां जैसे अमेरिका, यूरोप के देश, चीन आदि ही तय करते हैं कि हमें कब युद्ध करना है और कब युद्धविराम कर देना है। उन्हें लगता है हमारी संम्प्रभुता अब हमारे हाथों में नहीं है। हम अपनी आर्थिक सम्प्रभुता काफी पहले सन् 1990 में ही खो चुके हैं। विदेशी महाशक्तियां समझती हैं कि हम अपनी राजनैतिक, सामरिक, प्रशासनिक एवं सैन्य सम्प्रभुता भी कब की खो चुके हैं, इसका अंदाजा अभी भारत की अवाम को नहीं है। जैसा प्रकरण 9 एवं 10 मई की रात को हुआ, उसे देखकर अब हमारे विपक्षी राजनेताओं में आम चर्चा है कि हमारे आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक अधिकार एवं हमारी सम्प्रभुता विदेशों के हाथों गिरवी रख दी गई है। वरना अमेरिका एवं चीनी राष्ट्राध्यक्ष भारत के मामलों में हस्तक्षेप करने वाले कौन होते हैं? वे कैसे हमारी सरकार को मजबूर कर सकते हैं कि आप अचानक पाकिस्तान के फोन पर तुरंत युद्धविराम की घोषणा कर देते हैं। कहां तो आप समग्र एवं निर्णायक युद्ध की तैयारी कर रहे थे, कहां आप युद्धविराम की घोषणा कर रहे हैं। विपक्षियों का मानना है कि जनभावना के विरुद्ध की गई युद्धविराम की घोषणा हमेशा हमारे राजनैतिक नेतृत्व को भारी पड़ी है। चाहे वह 1948 में या 1962 में पंडित नेहरू द्वारा की गई हो या फिर 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा जनभावना के विरुद्ध किया गया शिमला समझौता हो। लेकिन जहां तक सवाल विदेशी दबाव का है, यह दबाव तो हर समय रहा है। 1965 एवं 1971 में भारत की आंतरिक स्थिति तो आज के मुकाबले बहुत कमजोर थी और विदेशी दबाव आज से कई गुना ज्यादा था। भारतीय इतिहास गवाह है कि हमारे उस समय के प्रधानमंत्रियों ने उसे दरकिनार करते हुए अपने शौर्य का हमेशा सम्मान किया, जनभावना के अनुकूल काम किया, इतिहास में अमर हुए और भारत का मान बढ़ाया। आज हमारी आर्थिक उन्नति एवं हमारे चमचमाते विकास से पूरा विश्व चकित है। हमारे देश की एक अलग पहचान है। हमारे सर्वप्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की विदेशों में ससम्मान और दमदार उपस्थिति दर्ज होती है। भारतीय विद्वानों ने भी कहा है कि हमारा मान बढ़ता है अपनी सभ्यता, संस्कृति, आत्मसम्मान, हमारी सम्प्रभुता, हमारी आजादी, हमारे गौरव को सुरक्षित एवं सवंर्द्धित करने से। हमारा मान बढ़ता है विपरीत परिस्थितियों में अभावग्रस्त रहते हुए लाख मुसीबतों को झेलते हुए विश्व पटल पर दृढ़ता के साथ खड़े रहने से। हमारा मान बढ़ता है अपने दुश्मनों का मुंहतोड़ जवाब देने से। हमारा मान बढ़ता है विदेशी व्यापारिक देशों की धमकियों को अनदेखा कर अपने लक्ष्य को हर सूरत में प्राप्त करने से। इतिहास ने जयपुर के धनाड्य एवं बलशाली राजा मान सिंह का सम्मान नहीं किया। इतिहास ने अभावग्रस्त होकर जंगलों में दर-दर भटकते, घास की रोटी से गुजारा करते और अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए लड़ने वाले महाराणा प्रताप का सम्मान किया है। माना कि अमेरिका यूरोपीय देश एवं चीन विशुद्ध व्यापारी देश हैं। लेकिन यह याद रहे कि ये हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं। हम 150 करोड़ की आबादी का देश हैं। इन्हें हमारी जरूरत है। हमें इनकी जरूरत बिल्कुल नहीं है। हमारा इनके बगैर गुजारा हो सकता है लेकिन इनका हमारे बगैर नहीं। यह अकाट्य सत्य है। हम भारत के लोग अभाव और गरीबी में रह सकते हैं पर अपना आत्मसम्मान खोकर नहीं। यह ब्रह्म वाक्य भारत के वर्तमान सत्ताधारी नेता भली प्रकार अपनाये हुए हैं। इसलिए यह बात हम सभी को ध्यान रखनी चाहिए कि जब तक पाकिस्तान की सेना को पूरी तरह से परास्त कर उनके सभी संसाधनों को नष्ट नहीं किया जाता, तब तक भारत में आतंकवाद कभी खत्म नहीं हो सकता। आतंकवाद की जड़ पाकिस्तान में बैठे आतंकी सरगना नहीं हैं। भारत में आतंकवाद की जड़ पाकिस्तान सेना है और वहां की सेना के आला अफसरों की जिहादी मानसिकता है। यदि हमें आतंकवाद को खत्म करना है तो पाकिस्तान से निर्णायक युद्ध करना होगा। यदि चीन या तुर्की जैसे अड़ियल देश बीच में आते हैं तो उनसे भी हमें निबटना होगा। हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से भारत की अवाम की यह अपेक्षा है, आकांक्षा है और यह अटल विश्वास भी है कि वह हमारे पड़ोस में पनप रहे आतंकवाद एवं घृणा के वातावरण को अपनी अपार शक्ति का सदुपयोग करते हुए हमेशा के लिए समाप्त करेंगे। भारत का बच्चा-बच्चा जानता है कि मोदी है तो मुमकिन है। इसीलिए मोदी जी भी अपने प्रयासों से जन आकांक्षाओं को मुमकिन करने में जुटे हैं। हम भी तन, मन और धन से अपने प्रधान सेवक के साथ हैं। निश्चित ही जीत हमारी ही होगी।