अन्तरराष्ट्रीय कवयित्री डॉ कीर्ति काले जी के द्वारका नई दिल्ली निवास पर सम्पन्न हुई।
इस बार की गोष्ठी राष्ट्रीय विचारधारा के कवि श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी को समर्पित थी। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के कारण इस काव्य गोष्ठी का मूल विषय देश भक्ति था।
उपस्थित सभी रचनाकारों ने देशप्रेम पर आधारित उत्साहवर्धक श्रेष्ठ कविताओं का पाठ किया।
सबसे पहले कला एवं ज्ञान की देवी माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित करके उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। तदुपरान्त दो मिनट का मौन रखकर कश्मीर में मारे गए निर्दोष भारतीयों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
अन्तरराष्ट्रीय सकारात्मक साहित्य मंच भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं का पोषक मंच है। श्रद्धांजलि के पश्चात डॉ वर्षा सिंह जी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। फिर सामुहिक रूप से वंदेमातरम् का गान हुआ।
मंच की अध्यक्षा प्रसिद्ध कवयित्री डॉ कीर्ति काले जी ने इस मंच के उद्देश्यों एवं भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए सभी का शब्दों द्वारा स्वागत किया। ध्यातव्य है कि श्रद्धांजलि अर्पित करने के कारण इस बार किसी अतिथि का विधिवत् स्वागत नहीं किया गया।
पूरे कार्यक्रम का सफल संचालन उपाध्यक्ष श्री ओमप्रकाश कल्याणे ने किया।
आभार ज्ञापन श्री श्रीकान्त काले जी ने किया। स्वादिष्ट जलपान ग्रहण करके सबने फिर मिलने के संकल्प के साथ बिदाई ली।
व्यवस्था में सहयोगी रहे मंच के सचिव श्री संजीव कुमार, परामर्शदाता श्री प्रेम बिहारी मिश्र एवं कवयित्री डॉ वर्षा सिंह।
काव्यपाठ के क्रम में थे -
डॉ कीर्ति काले ,श्री ओमप्रकाश कल्याणे, श्री जयसिंह आर्य, श्री देवेन्द्र माँझी,डॉ वर्षा सिंह ,श्री प्रेम बिहारी मिश्र,
श्री संजीव कुमार, श्री अनिल उपाध्याय,
डॉ रंजना अग्रवाल ,श्रीमती मधूलिका दास, श्रीमती कमल उप्रेती,श्रीमती प्रतिभा कुमार, श्री ताराचंद नादान, श्री श्रीकान्त काले, श्रीमती प्रीति कौशल,
श्री गौरव कुमार, श्री सुनहरीलाल वर्मा तुरन्त,श्री विजय श्रीवास्तव,
श्रीमती अनीता श्रीवास्तव
आदि।
डॉ कीर्ति काले ने सुनाया -
घाटी में आतंकवाद ने फिर ललकारा है
क्या सिंहों का देश कभी चूहों से हारा है?
ऋषि कश्यप के काश्मीर में बम गोली बंदूकें क्यों
कल्हण वाली राज तरंगिणि के सारे स्वर सूखे क्यों
मंदिर की घंटियां नही हैं अब हैं सिर्फ अज़ानें क्यों
सोचो कश्मीरी पंडित अपना घर छोड़ के भागे क्यों
ये बदला परिदृश्य बताओ किसके द्वारा है
क्या सिंहों का देश कभी चूहों से हारा है?
ताराचंद शर्मा नादान ने कहा -
नफ़रत की दीवारें मत तामीर करो
प्यार रहे हर दिल में वो तदबीर करो
राह भले मुश्किल हो या आसान रहे
हरइक दिल में लेकिन हिन्दुस्तान रहे
ताराचन्द 'नादान’
डॉ रंजना अग्रवाल ने प्रस्तुत किया -
आकुल हो, व्याकुल हो
बहुत छटपटाए हैं
कैसे पल आए हैं
कैसे दिन आए हैं
डॉ वर्षा सिंह की पंक्तियां हैं -
याद नहीं कलमा जिसे मिली मौत सौगात ।
लिखो आतंकवाद की, आज यहाँ पर जात ॥
वरिष्ठ रचनाकार श्री देवेन्द्र माँझी जी की पंक्तियां -
आँखों को चीरता गया अख़बार सुब्ह का
एक ऐसा ख़ूनी हादिसा पहली ख़बर में था
मातम हर एक फूल के चेहरे पे लिख गया
धब्बा जो एक ख़ून का तितली के पर में था