दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा दिनांक 22 अप्रैल 2025 को विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस के उपलक्ष्य में "कॉपीराइट जागरूकता बढ़ाने में पुस्तकालयों की भूमिका" विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। यह आयोजन डॉ. सुभाष चंद्र कानखेड़िया, अध्यक्ष, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के मार्गदर्शन एवं अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ मूर्तिमती सामन्तराय, रिटायर्ड उप पुस्तकालयाध्यक्ष, एन.सी.ई.आर.टी., नई दिल्ली एवं वक्ता के रूप में डॉ गरिमा गौड़, पुस्तकालयाध्यक्ष, पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय उपस्थित रहीं । भारतीय परंपरा अनुसार सभी गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया गया ।
श्रीमती सुनीता टुटेजा, सहायक पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी द्वारा अत्यंत दक्षता और गरिमा के साथ मंच संचालन किया गया । उन्होंने कार्यक्रम के उद्देश्य, स्वरूप और उसके प्रेरणात्मक संदेश को श्रोताओं के समक्ष सहज, संप्रेषणीय और भावनात्मक रूप से प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया, जिससे पूरे कार्यक्रम में उत्साह और सकारात्मकता की एक सशक्त लहर प्रवाहित हुई।
डॉ. सुभाष चन्द्र कानखेड़िया ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सभी गणमान्य अतिथियों एवं श्रोताओं का कार्यक्रम में सहभागिता हेतु आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि कॉपीराइट अधिनियम रचनात्मक व्यक्तियों के बौद्धिक अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है। जब किसी रचनाकार की कृति को बिना उसकी अनुमति के प्रयोग किया जाता है, तो न केवल उसकी मेहनत का अपमान होता है, बल्कि उसे गंभीर भावनात्मक क्षति भी होती है। यह न केवल व्यक्ति के आत्म-सम्मान को प्रभावित करता है, बल्कि समाज में सृजनशीलता और नवाचार की भावना को भी हानि पहुँचाता है। उन्होंने इस विषय पर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए सभी श्रोताओं से आह्वान किया कि वे कॉपीराइट नियमों का सम्मान करें और दूसरों को भी इसके प्रति संवेदनशील बनाएं।
डॉ. गरिमा गौड़ ने अपने वक्तव्य में कॉपीराइट अधिनियम की वैधानिक संरचना और इसके तहत मिलने वाले कानूनी अधिकारों (Legal Rights) पर प्रकाश डाला। उन्होंने स्पष्ट किया कि कॉपीराइट रचनाकार को एक विशेष समयावधि (Specific Period) के लिए उसकी रचना पर विशेषाधिकार (Exclusive Rights) प्रदान करता है। ये अधिकार लेखक, संगीतकार, चित्रकार, फिल्म निर्माता, और अन्य रचनात्मक कार्यों से जुड़े बौद्धिक व्यक्तियों के लिए बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) की सुरक्षा का माध्यम हैं। कॉपीराइट का उद्देश्य रचनाकार को उसकी मेहनत का सम्मान दिलाना और उसकी रचना की अनुचित नकल या दुरुपयोग से सुरक्षा प्रदान करना है। उन्होंने यह भी बताया कि यदि कोई व्यक्ति बिना अनुमति के फोटोकॉपी करता है, डिजिटल सामग्री साझा करता है या उसका व्यावसायिक उपयोग करता है, तो यह कॉपीराइट उल्लंघन माना जाता है और इसके लिए कानूनी दंड (Punishment) का प्रावधान है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि दिव्यांगजनों (Persons with Disabilities) के लिए कुछ विशेष प्रावधान भी हैं।
डॉ. गौड़ ने अपने वक्तव्य में "वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन (ONOS)" पहल की भी चर्चा की। यह भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों को सभी प्रमुख शैक्षणिक पत्रिकाओं, ई-रिसोर्सेज और डिजिटल कंटेंट तक समान और व्यापक पहुँच प्रदान करना है। यह पहल न केवल शोध और शैक्षिक विकास को गति देगी, बल्कि सर्वसुलभ ज्ञान समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
कार्यक्रम की समापन कड़ी में, श्री अनिल कुमार, हिंदी अधिकारी, दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी ने अध्यक्ष महोदय, गणमान्य अतिथियों और सभी श्रोताओं के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया। उन्होंने इस आयोजन को सफल बनाने में सभी के अमूल्य योगदान और सहयोग की सराहना की। इसके बाद, राष्ट्रगान के सामूहिक गायन के साथ कार्यक्रम को उत्कृष्ट और गरिमामयी रूप से समाप्त किया गया।