'कविता शब्दों का ऐसा भाव है जो राष्ट्र की आत्मा को छूता है। यह केवल शब्दों का स्पंदन नहीं, जीवन का संस्कार है।' ये विचार राष्ट्रीय संस्थान दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा 45 वर्षों से निरंतर आयोजित ’गरिमा के स्वर : कवयित्री सम्मेलन’के आयोजन के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित लोकसभा सांसद बाँसुरी स्वराज ने कहे। उन्होंने यह भी कहा कि कविता वो सामाजिक क्रांति है जिसे जब कवयित्री अपने शब्दों में लिखती है तो उसमें एक ऊर्जा को जन्म देती है। अक्का देवी, महादेवी वर्मा, सक्कू बाई, मीरा बाई आदि कवयित्रियों के अपनी कविताओं के द्वारा साहित्य जगत को भाव विभोर कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि कवि सदा ही एक जागरूक और गंभीर चिंतक होते हैं जो दूसरों की भावनाओं और समस्याओं को सहज रूप से प्रकट कर समाज को जाग्रत करते हैं। उनके विचार में नारियाँ भगवान की अनूठी कृति हैं, इसलिए इनको भगवान नेे त्याग, तपस्या और प्रेम की मूर्ति बनाया है। आज वे अपने तपबल से दुनिया के हर क्षेत्र में पहुँच बना चुकी हैं।
विगत 80 वर्षों से हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन के लिए सेवारत दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन हिंदी भवन, नई दिल्ली में संपन्न हुआ। सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री एवं सम्मेलन की अध्यक्ष श्रीमती इंदिरा मोहन ने की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप मेें लोकसभा सांसद सुश्री बाँसुरी स्वराज की गरिमामय उपस्थिति रही। सान्निध्य डाॅ॰ रत्नावली कौशिक, सह-मंत्री हिंदी भवन का प्राप्त हुआ। स्वागताध्यक्ष के रूप में समाजसेवी श्रीमती हेमलता अग्रवाल उपस्थित रहीं।
कार्यक्रम का प्रारंभ मंच पर उपस्थित अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कर एवं माँ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करने के साथ हुआ। इसी समय वरिष्ठ कवयित्री अंजु जैन द्वारा मधुर कंठ से सरस्वती आराधना प्रस्तुत की गई।
सम्मेलन के महामंत्री प्रो॰ हरीश अरोड़ा ने सम्मेलन के विगत 80 वर्षों की अनवरत जारी साहित्यिक यात्रा के अतीत और वर्तमान पर प्रकाश डालते हुए भविष्य के लिए उसकी योजनाओं की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हिन्दी के अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार इस संस्था के साथ वर्षों से सम्बद्ध रहकर हिंदी की सेवा करते रहे।
इस अवसर पर सम्मेलन द्वारा प्रकाशित 'गरिमा के स्वर' स्मारिका का लोकार्पण मंचस्थ अतिथियों द्वारा एवं स्मारिका के संपादक एवं वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य अनमोल द्वारा किया गया। कार्यक्रम की स्वागताध्यक्ष श्रीमती हेमलता अग्रवाल ने सुंदर आयोजन के लिए सभी कवयित्रियों एवं संयोजकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
सम्मेलन की अध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती इंदिरा मोहन ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में बताया कि गत 44 वर्षों से दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन महिला दिवस के उपलक्ष्य में महिलाओं की सृजन क्षमता का आवाहन करता आ रहा है। हिंदी भाषा और साहित्य का यह कवितामय संवाद महिला गरिमा को तो प्रस्तुत करता ही है, समाज में सकारात्मक बदलाव को जाग्रत कर सनातन संस्कारों को भी पुष्ट करता आ रहा है।
सान्निध्य वक्तव्य देते हुए डाॅ॰ रत्नावली कौशिक ने कहा कि आज महिलाएँ देश को नया आयाम दे रही हैं। आज की महिलाएँ जिस प्रकार का योगदान समाज कल्याण के लिए कर रही हैं, वह विश्व के लिए एक उदाहरण है, इस काल में महिलाएँ पहले से ज्यादा सशक्त हो रही हैं। उन्होंने सुंदर आयोजन के लिए सम्मेलन परिवार को बधाई दी।
कवयित्री सम्मेलन का संचालन सम्मेलन की साहित्य मंत्री प्रो॰ रचना बिमल ने बड़ी कुशलता के साथ किया। बीच-बीच में उन्होंने प्रसंगानुकूल उदाहरण भी प्रस्तुत किए। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ॰ सरिता शर्मा को हिंदी भाषा की सेवा के लिए ’वागीश्वरी सम्मान’ से सम्मानित किया गया। उन्हें सम्मान स्वरूप शाॅल एवं प्रशस्ति पत्र और प्रतीक चिह्न भेंट किए गए। डाॅ॰ सरिता शर्मा ने दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सम्मेलन द्वारा सम्मान पाना मेरे लिए गौरव की बात है।
इस महत्त्वपूर्ण अवसर पर सम्मेलन कार्यालय के सहायक श्री नवीन झा जी की गत 38 वर्षों की निरंतर सेवा के लिए ‘श्रीराम दरवार’ प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में आमंत्रित कवयित्रियों ने अपने सरस काव्य पाठ से सभागार में उपस्थित सभी श्रोताओं का मनमोह लिया। कवयित्रियों में सर्वप्रमुख डॉ० सरिता शर्मा, श्रीमती अंजु जैन, श्रीमती अलका सिन्हा, श्रीमती कल्पना शुक्ला, श्रीमती सुधा संजीवनी और श्रीमती उषा श्रीवास्तव 'उषाराज' सभी की कविताओं से पूरे सभागार में तालियों की गूँज सुनाई देती रही।
कार्यक्रम के अंत में सम्मेलन के पूर्व महामंत्री प्रो० रवि शर्मा 'मधुप' ने सभी आगंतुक अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में हिंदी अकादमी के पूर्व उप सचिव ऋषि कुमार, राकेश शर्मा, आचार्य अनमोल, डाॅ॰ वीणा गौतम, गजेन्द्र सोलंकी, नवरत्न अग्रवाल, डॉ० सुधा शर्मा पुष्प, ओंकार त्रिपाठी, सुनील विज, प्रमिला भारती, मनवीर मधुर, उपेंद्र पांडे, संजीव सक्सेना, साक्षी, निधि, नीरज पांडे आदि अनेक साहित्यकार, पत्रकार एवं हिंदी प्रेमी उपस्थित रहे।