सुश्री शारदा मदरा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी कविताओं की संक्षिप्त समीक्षा करते हुए उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया दी। आपने 'मयूख' शीर्षक को बेहद पसंद किया और पर्पल पेन की संस्थापक-अध्यक्ष वसुधा 'कनुप्रिया' की छंदों के प्रचार, प्रसार के लिए समर्पित भाव से कार्य करने की सराहना की। विशिष्ट अतिथि श्री मनोज मिश्रा कप्तान ने भी उनकी बात का अनुमोदन किया।
दोनों मंचासीन अतिथिगण एवं आमंत्रित कवियों-कवयित्रियों ने अपने शानदार काव्य पाठ से गोष्ठी को गरिमा प्रदान की।
अपने माहिया और गीतों के लिए विशेह रूप से जानी जाने वाली सुश्री शारदा मदरा ने पढ़ा --
"कलम लिखती रही भाव मोती सुमनआंसुओं की लड़ी फिर बिखरती रही"
हे कपिलो, गजकर्ण, गजानन हे गणनाथ, गदाधर, स्वामी।
हे वरदायक, भक्ति प्रदायक, सिद्धि विनायक पूरनकामी।
हे जगदीश, कवीश अशीषहुं तोहिं नमामि नमामि नमामी।"
तन मन से निर्धन हुए, धन से मालामाल।।"
कविताकोष वेबसाइट के सह-संपादक, युवा कवि अभिषेक कुमार अम्बर ने आनंदवर्धक और बिहारी छंद में अपनी रचनायें पढ़ीं --
"कहना तो बहुत कुछ है मगर इसलिए चुप हूँ
इस शहर में हो जाएँगे कुछ लोग खफ़ा फिर"
बहुत से समसामयिक विषयों पर कवितायेँ पढ़ते हुए दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदुषण पर यह शानदार दोहा श्री अरविन्द असर ने प्रस्तुत किया --
"वायु प्रदूषण ने किया, बहुमत पर अधिकार।
फिर ख़तरे में पड़ गई, सांसों की सरकार।।"
सर्व श्री/सुश्री शालिनी शर्मा, डॉ. माधवी करोल, मनोज कामदेव, पुष्प शर्मा और सुप्रिया सिंह वीणा ने भी एक से बढ़कर एक दोहे और गीत पढ़े जिनमें विचारों और अभिव्यक्ति की विविधता देखने को मिली। सुश्री बबली सिन्हा वान्या ने रिश्तों पर तथा सुश्री संगीता वर्मा ने बेटियों पर सुन्दर गीत गाये जिन्हें ख़ूब सराहा गया।
काव्य गोष्ठी का सुरुचिपूर्ण सञ्चालन सुश्री पूजा श्रीवास्तव ने किया। गोष्ठी समापन पर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए वसुधा 'कनुप्रिया' ने कहा कि "हम ग़ज़ल के विरोधी नहीं हैं, स्वयं ग़ज़ल कहते हैं, लेकिन पर्पल पेन मंच के माध्यम से यह प्रयास है कि पारम्परिक छंदों को महत्व मिले, उनका प्रचार-प्रसार और संवर्धन हो। छंद विशेष काव्य गोष्ठियों, बहुभाषी कविता पाठ, पुस्तक एवं स्मारिका प्रकाशन के माध्यम से हम इस दिशा में नौ वर्ष से प्रयासरत हैं।
रिपोर्ट -- वसुधा 'कनुप्रिया'