इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र एवं हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी के संयुक्त तत्त्वावधान में बुधवार, 29 मई, 2024 को इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सम्वेत सभागार में हिन्दी एवं मराठी भाषी सुविख्यात लेखिका, कथाकार एवं पद्मश्री सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत श्रीमती मालती जोशी जी की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।
सायं 4 बजे से शुरू हुई इस श्रद्धांजलि सभा में डॉ. लक्ष्मीशंकर बाजपेई, प्रो. जितेंद्र कुमार श्रीवास्तव, प्रो. (डॉ.) रमा शर्मा, डॉ. सच्चिदानंद जोशी, प्रो. रमेश चंद्र गौड़, श्री सुधाकर पाठक एवं श्रीमती मीनू त्रिपाठी मंचासीन थीं । भारतीय परिवार की चहेती कथाकार मालती जोशी जी के जीवन-परिचय प्रस्तुति से श्रद्धांजलि सभा को प्रारम्भ किया गया । इस अवसर पर मालती जोशी जी के साहित्यिक योगदान पर केंद्रित एक लघु वृत्तचित्र को प्रस्तुत किया गया । सुश्री विनीता काम्बीरी ने उनके जीवन परिचय प्रस्तुत किया तथा श्रीमती मीनू त्रिपाठी ने उनकी एक कहानी ‘खुबसूरत झूठ’ का पाठ किया ।
अपने श्रद्धांजलि वक्तव्य में हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष श्री सुधाकर पाठक ने कहा कि आधुनिक हिन्दी कहानी को सार्थक एवं नई दिशा देने वाली, बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न, हिन्दी और मराठी की सुविख्यात लेखिका एवं कथाकार मालती जोशी जी का नाम साहित्यिक जगत में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है । मालती जोशी जी को पढ़ते हुए पाठक कहानी के पात्रों में ऐसे समा जाता है कि वहाँ लेखक गौण हो जाता है और केवल पात्र और पाठक के बीच से होते हुए कहानी आगे बढ़ती चली जाती है । कथा-कहन का उनका एक अलग ही अंदाज था । केवल अपनी स्मृति से वे कहानी पाठ किया करती थी । यदि उनकी किताब को आगे रखकर उन्हें सुना जाए, तो एक भी शब्द और वाक्य इधर से उधर नहीं होगा । यही गुण उन्हें अन्य साहित्यकारों से पृथक करता है । मालती जोशी जी के रचना संसार को लेकर हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी लम्बे समय से एक बड़ा कार्यक्रम करना चाहती थी, किन्तु कई बार उनके मुम्बई प्रवास और स्वास्थ्य समस्याओं के चलते इस योजना पर काम नहीं हो पाया । अपनी बात को समाप्त करते हुए उन्होंने आगे कहा कि आगामी आयोजनों में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर हम अवश्य कार्यक्रम करेंगे ।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीशंकर बाजपेयी जी ने कहा कि जैसे ग़ज़ल लिखी नहीं जाती, कही जाती है ठीक वैसे ही मालती जोशी ने कहानी लिखी नहीं, बल्कि कहानी कही है । अपने आसपास के चरित्रों, दृश्यों और घटनाओं में से अपने लिए उपयुक्त पात्रों को चुनकर वे अपनी कहानी में बुन लिया करती थीं और यही कारण है कि उनकी कहानी आम भारतीय परिवारों के बीच लोकप्रिय हुई । उन्होंने अपनी कहानी में पश्चिमी संस्कृति को पनपने नहीं दिया और भारतीय संस्कारों तथा भारतीयता को बचाए रखा । कवि एवं आलोचक प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव जी ने कहा कि मालती जोशी जी की कहानियों में भारतीय परिवेश और भारतीय जीवन प्रतिबिम्बित होता है । उनकी कहानियों में स्त्री पात्र प्रमुखता से उभरकर आए हैं और स्त्री विमर्श के नाम पर वहाँ पुरुष को केवल खलपात्र के रूप में नहीं खड़ा किया गया है, बल्कि उनकी कहानियों में उदार और सहज-सरल पुरुष भी हैं । उनकी कहानियाँ भारतीय चिंतन को उद्घाटित करती हैं । लोग उनकी कहानियों से प्रेरणा लेते हैं कि कैसे दाम्पत्य जीवन को, सहचार्य को सुखद बनाया जाए, कैसे परिवारों को जोड़ा जाए, कैसे संस्कारों को आगे बढ़ाया जाए, कैसे सम्बन्धों को सहेजा जाए । हंसराज कॉलेज की प्राचार्या प्रो.(डॉ.) रमा शर्मा ने कहा कि मालती जोशी जी की कहानियाँ परिवारों और संस्कारों की कहानियाँ है । भारतीय जीवन में परिवार से बड़ा कुछ भी नहीं है और भारतीय नारी परिवार जोड़ती है, तोड़ती नहीं । वे झूठ को भी खूबसूरत झूठ बना देती है । उनकी कहानियों में जीवन जीने की कला है । इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की निदेशक (प्रशासन) सुश्री प्रियंका मिश्रा, मालती जोशी जी के भाई श्री चंद्रशेखर दिघे और आचार्य विद्या प्रसाद मिश्र ने भी अपने संस्मरण साझा किए ।
इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव एवं श्रीमती मालती जोशी जी के सुपुत्र डॉ. सच्चिदानन्द जोशी जी ने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा कि इंदौर के घर में उनके साथ खेलने वाले मित्र, जीवन के इस पड़ाव पर आकर कहते हैं कि उन्होंने कभी भी उस घर में किसी लेखक को देखा ही नहीं । उन्होंने केवल नन्दू की आई को देखा । अपने लेखन को उन्होंने कभी भी परिवार से ज्यादा महत्त्व नहीं दिया । उन्होंने कभी नहीं कहा कि मुझे लिखना है, घर में शोर मत करो । उन्होंने कभी नहीं कहा कि मुझे बाहर जाना है, तो कल की बनी सब्ज़ी गर्म करके खा लेना । उन्होंने कभी नहीं कहा कि मुझे लिखने के लिए एक अलग कमरा चाहिए । एक प्रतिष्ठित लेखिका होने के बावज़ूद उन्होंने अपने लेखकीय व्यक्तित्व को कभी परिवार पर लदने नहीं दिया । वे साहित्यिक सम्मेलनों और निमंत्रणों से दूर ही रहा करती थी । भाषा और साहित्य की जो समझ और संस्कार हमें मिले, वो आई ने ही दिए हैं । 'आई' कहा करती थी कि तुम्हारे बगल में बैठी स्त्री को या तुम्हारे ऑफिस में तुम्हारे साथ काम करने वाली स्त्री को कभी भी तुमसे असहज और असुरक्षा का भाव नहीं आना चाहिए । अपने भावों को समाप्त करते हुए उन्होंने कहा कि मुझे सात जन्मों तक केवल आई ही चाहिए । यदि इसके लिए कोई ऐसा व्रत हो, तो मैं इसके लिए भी बिना अन्न-जल के नागा रहने को तैयार हूँ ।
श्रद्धांजलि सभा के समापन पर बोलते हुए इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के कला निधि विभाग के प्रभारी, डीन (अकादमिक) प्रो. रमेश चन्द्र गौड़ ने मालती जोशी जी की सुखद स्मृतियों को याद करते हुए अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की । दो मिनट के मौन धारण के साथ उपस्थित सभी अतिथियों द्वारा उनके चित्र पर पुष्प अर्पित किए गए । इस अवसर पर जोशी जी के पारिवारिक सदस्य और कला केंद्र के स्टाफ सहित कई साहित्यकार और पत्रकार एवं हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के सदस्य श्री विजय शर्मा, विनोद पाराशर, राजकुमार श्रेष्ठ, डॉ. विनीता शर्मा उपस्थित थे ।