दिल्ली (26 जनवरी) : राष्ट्रीय पर्व 'गणतंत्र दिवस' के उपलक्ष्य में दिल्ली की अग्रणी साहित्यिक संस्था 'पर्पल पेन' ने 'सलाम-ए-वतन' काव्य गोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें दिल्ली/एनसीआर से पधारे कविगण ने देशभक्ति और राष्ट्र को समर्पित गीत, ग़ज़ल, दोहे, मुक्तक, गीतिका आदि की सुन्दर प्रस्तुति दी। ओजपूर्ण कविताओं की सलिला में हर कवि और श्रोता का मन भीग गया। भारत माता के चरणों में पूजन-वंदन के साथ आरंभ हुई 'सलाम-ए-वतन' काव्य गोष्ठी का समापन राष्ट्रगान 'जन गण मन' से कर सभी ने भारत माँ की जय और वन्दे मातरम के नारे लगाए। 'पर्पल पेन' की संस्थापक-अध्यक्ष वसुधा 'कनुप्रिया' ने कविगण और श्रोताओं को तिरंगा बैज पहना का उनका अभिनन्दन किया।
गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार और अनुवादक श्री आर. सी. वर्मा साहिल ने की तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में कवि, चित्रकार, समाजसेवी श्री सुरेशपाल वर्मा जसाला का सानिध्य रहा। मंचासीन अतिथिगण सहित सर्व श्री/सुश्री वंदना मोदी गोयल, जगदीश मीणा , अरविन्द असर, डॉ. सत्यम भास्कर, बबली सिन्हा वान्या, असलम बेताब, हशमत भरद्वाज, शालिनी शर्मा, शिव प्रभाकर ओझा, मनोज कामदेव और वसुधा कनुप्रिया ने ओजपूर्ण कविताओं का पाठ किया।
कार्यक्रम के आरम्भ में मंचासीन अतिथिगण श्री साहिल और श्री जसाला का पुष्पमाला, अंगवस्त्र एवं उपहार दे कर वसुधा 'कनुप्रिया' ने उनका स्वागत किया।
पर्पल पेन पटल पर लिखित आयोजनों के सफल 400 सप्ताह पूरे होने के सुखद अवसर पर सुश्री वंदना मोदी गोयल, सुश्री ममता वर्मा और सुश्री मधुमिता को वसुधा 'कनुप्रिया' ने पटका और पेन भेंट कर संस्था के प्रति उनके समर्पित भाव का सम्मान किया।
आमंत्रित कविगण के काव्य पाठ और धन्यवाद ज्ञापन के पश्चात पर्पल पेन साहित्यिक यात्रा के इस 400वें विशेष सोपान को केक काटकर मनाया गया।
'सलाम-ए-वतन' काव्य गोष्ठी में कविगण से देश, राष्ट, गणतंत्र, देश प्रेम, एकता जैसे विषयों पर सुन्दर, सार्थक और भावप्रवण रचनाओं का पाठ किया।
अपने मनोभाव शालिनी शर्मा ने कुछ इस प्रकार व्यक्त किये --
"देश नही तो कुछ नही, सबसे पहले देश
दो सौ देशो में यहाँ, मेरा देश विशेष
अनेकता में एकता, प्रेम, दया, समभाव
सत्यमेव जयते सदा, देता ये सन्देश"
शहीदों को नमन करते हुए वंदना मोदी गोयल ने यह भावपूर्ण पंक्तियाँ पढ़ीं --
"पूछ रहा शिशु मन मैया से, कौन तिरंगे में घर आया
क्यूं काजल आंखों से गिरा तेरे, क्यूं कुमकुम तूने बिखराया"
"ऐ वतन ऐ वतन! तेरी मुहब्बत में
बांध लिया माथे पे कफन।" -- बबली सिन्हा वान्या ने पढ़ा।
देश प्रेम पर अपने भाव जगदीश मीणा ने कुछ इस तरह इस मुक्तक द्वारा रखे --
"ये फितरत है हमारी, हम सभी को प्यार करते हैं
नज़र से तौलते हैं और नज़र से वार करते हैं
पुजारी शान्ति के हम हैं न बुजदिल तुम समझ लेना
जो ख़तरा हो वतन के वास्ते संहार करते हैं।"
देश पर प्राण उत्सर्ग करने की इच्छा लिए अपने मन के उद्गार इन भावपूर्ण पंक्तियों के माध्यम से युवा कवि डॉ. सत्यम भास्कर ने व्यक्त किये --
"मैं भी उस दौर में लेता जन्म
होता उस रज में वहीं दफन
आखिरी कतरे तक करता दमन
सोता ओढ़कर तिरंगे का कफन"
"पैग़ाम ये महब्बत का लाया है दोस्तों,
दिन जनवरी छब्बीस का आया है दोस्तों।
अपना के हमने संविधान आज के ही दिन,
जम्हूरियत का जश्न मनाया है दोस्तों।" --- जश्न-ए-जम्हूरियत पर वसुधा 'कनुप्रिया' ने एक मुक़म्मल ग़ज़ल पेश की। आपके संदेशपरक दोहों को भी सब ने ख़ूब सराहा।
अपनी ओजस्वी वाणी और कविता के लिए मशहूर, कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री जसाला ने देश भक्ति, राष्ट्र वंदन और श्री राम जन्मभूमि में हुई प्राण प्रतिष्ठा पर सार्थक दोहे और मुक्तक प्रस्तुत किये। आपने अपने आशीर्वचन में पर्पल पेन की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना की।
चमकेगी ज़मीं, चमकेगा गगन, सच्चा होगा जो सलाम-ए-वतन,
जब फहरा रहेगा कौमी निशां, हर शक़्स करेगा सलाम-ए-वतन --- काव्य गोष्ठी के विषय/नाम पर आधिरत ये सुन्दर पंक्तियाँ पढ़कर आयोजन अध्यक्ष साहिल जी से सभी की हौसला अफ़ज़ाई की।
"धर्म और नीति पे चले वतन,
कोई फ़र्क न छोटे बड़े में हो
यह जज़्बा ले के बढ़ें आगे,
यह शिक्षा देता संविधान" --- उक्त पंक्तियों के बाद आपने सिरायकी में एक शानदार ग़ज़ल/गीत भी पेश किया और आयोजन को ऊँचाई तक पहुँचाया।
'सलाम-ए-वतन' काव्य गोष्ठी का सुरुचिपूर्ण संचालन सुश्री पूजा श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम पूर्वी दिल्ली स्थित गंधर्व वेलनेस स्टूडियो में आयोजित हुआ। स्टूडियो की संस्थापक सुश्री ममता वर्मा ने इस सुन्दर और सुव्यवस्थित आयोजन की प्रशंसा करते हुए वसुधा 'कनुप्रिया' के प्रयास की भूरी-भूरी प्रशंसा की। आपने इच्छा व्यक्ति की कि भविष्य में हिन्दी के प्रसार और देश प्रेम पर आधारित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम पर्पल पेन समूह स्टूडियो के कांफ्रेंस हॉल में आयोजित करता रहे और 'गन्धर्व' नाम को सार्थकता मिलती रहे।
रिपोर्ट -- वसुधा 'कनुप्रिया'