दिल्ली : साहित्यिक संस्था 'पर्पल पेन' के तत्वावधान में रविवार, 08 अक्टूबर को 'गुलबहार' काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। साहित्यकार श्री रामकिशोर उपाध्याय के अध्यक्षता में दिल्ली/एनसीआर के कवियों और कवयित्रियों ने सार्थक गीत, दोहे, मुक्तक, सवैया, पद, ग़ज़ल, आदि अनेकानेक विधाओं में सुरुचिपूर्ण काव्य प्रस्तुति दे कर 'गुलबहार' नाम को सार्थक करते हुए कार्यक्रम में खूबसूरत समां बंधा। विशिष्ट अतिथि, ग़ज़लकार श्री अनिल वर्मा मीत सहित सर्व श्री/सुश्री मीनाक्षी भटनागर, शारदा मदरा, वीना तँवर, सुरेशपाल वर्मा जसला, ओम प्रकाश शुक्ल, छत्र छाजेड़, आर. सी. वर्मा साहिल, अभिलाषा विनय, अनिल पाराशर मासूम, विनय विक्रम सिंह, सत्यम भास्कर, बबली सिन्हा वान्या और पूजा श्रीवास्तव ने काव्य पाठ किया।
गोष्ठी का शुभारंभ गोष्ठी संचालक सुश्री रजनी रामदेव ने माँ सरस्वती की वंदना से किया। तत्पश्चात पर्पल पेन समूह की संस्थापक-अध्यक्ष एवं 'गुलबहार' गोष्ठी की संयोजक सुश्री वसुधा 'कनुप्रिया' ने श्री उपाध्याय एवं श्री अनिल मीत का अंगवस्त्र, माला और उपहार से स्वागत-अभिनन्दन किया।
वरिष्ठ शायर श्री साहिल की ग़ज़ल का ये शेर सभी को वाह वाह करने पर मजबूर कर गया --
"जो अब लगते नहीं तुमको किसी भी काम के पत्थर।
अगर कल वो ही बन जाएं तुम्हारे नाम के पत्थर।।"
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम पर अपने मन के उदगार सुश्री मीनाक्षी भटनागर ने कुछ इस प्रकार रखे --
"कठिन सी राह हो, मुक्ति की ,चाह हो
उठे इक पुलक सी, बजे इक ,खनक सी
खुशी का धाम हो, मन बसे राम हों
मन बसे राम हों। "
सुमधुर कंठ से वरिष्ठ लेखिका सुश्री शारदा मदरा ने जीवन के शाश्वत सत्य को उजागर करता एक पद प्रस्तुत किया --
"मानव माटी का खिलौना
गढ़ा ईश ने तुझको सुंदर,रूप अनूप सलोना
सुख-दुख जीवन के संग जोड़े,कुछ पाना कुछ खोना"
ओम प्रकाश शुक्ल, अभिलाषा विनय तथा सुश्री पूजा श्रीवास्तव ने भी सस्वर रचना पाठ किया। अन्य कविगण ने भी एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दे कर काव्य गोष्टी को सफल बनाया। हिन्दी, उर्दू सहितअवधी भाषा में भी काव्य पाठ हुआ।
गिरते मानव मूल्यों पर बात करते हुए श्री छत्र छाजेड़ ने पढ़ा --
"कैसा अजब हुआ धरा का मंजर
कहीं चले विष बुझे शब्द बाण
कहीं घोंपै इंसा को इंसा खंजर
कैसा अजब हुआ धरा का मंजर".
पितृ पक्ष में अपने पिता को शाब्दिक श्रद्धांजलि देते हुए अनिल मासून ने जब अपनी नज़्म पड़ी तो सभी की आँखें नम हो गयीं --
"हाथ काँधे पे बस एक रखता था वो
मेरी आँखों में सब देख सकता था वो"
गोष्ठी संयोजक वसुधा 'कनुप्रिया' ने छंदमुक्त कविता के साथ एक ग़ज़ल के चंद अशआर भी पेश किये --
"तुम्हारे नाम कर दूँ वो सितारा,
लगे जो आसमां को ख़ास प्यारा।
बिछा दूँ फूल, काँटे चुन के' जानां,
बना दूँ ख़ुशनुमा माहौल सारा।"
विशिष्ट अतिथि श्री अनिल 'मीत' की बेहतरीन ग़ज़लों ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया --
"मेरी फ़ितरत है ख़तरों से उलझना
कोई मुश्किल नहीं मुश्किल से मुझको"
अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री रामकिशोर उपाध्याय ने सभी कविताओं की संक्षिप्त समीक्षा की। आपने एक बेहतरीन आयोजन की परिकल्पना और संयोजन के लिए पर्पल पेन समूह और उसकी संस्थापक वसुधा 'कनुप्रिया' की प्रशंसा की। स्वयं काव्य पाठ करते हुए आपने कुछ यूँ कहा --
"पता नहीं मैं किस मजहब को मानता रहा
ख़ुद ही पिघला,कभी ख़ुद को ढालता रहा
नफरत कर न सका,इश्क मुझे मिला नहीं
जिंदगी भर राहों की यूँ ही ख़ाक छानता रहा"
साहित्यकार एवं चित्रकार श्री सुरेशपाल वर्मा जसाला ने धन्यवाद ज्ञापित कर पर्पल पेन काव्य गोष्ठी 'गुलबहार' का औपचारिक समापन किया। गन्धर्व वैलनेस स्टूडियो की अध्यक्ष सुश्री ममता वर्मा एवं व्यवस्थापक सुश्री मधुमिता के प्रति भी आभार व्यक्त किया गया।
ढलते सूरज की चादर में लिपटी पेड़ों की कतारों की पृष्ठभूमि में आयोजित यह काव्य संध्या हर मायने में सफल रही, ऐसा सभी उपस्थित कविगण ने कहा।
रिपोर्ट : वसुधा 'कनुप्रिया'