राजेन्द्र सारस्वत
मुंबई में गणेश चतुर्थी से लेकर आगामी 28 तारीख तक जबरदस्त धूम धाम, चहल-पहल और रौनक रहने वाली है मुंबई के हर गली, मोहल्ले, सोसायटी और क्षेत्र में गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया का पावन जयघोष गूंज रहा है। और तो और यहां के वातावरण तक में इस उत्सव की महकती खुशबू महसूस की जा सकती है। पूरा मुंबई इन दिनों गणपति मय हो गया है। पूरे मुंबई और महाराष्ट्र में मनाया जाने वाले इस उत्सव के प्रति यहां के लोगों का उत्साह, उमंग और भक्तिभाव देखते ही बनता है। संभवतः यह हमारे भारत में ही नहीं विश्व का सबसे बड़ा त्यौहार है। मुंबई ! इस नाम में ही एक चुंबकीय आकर्षण है। देश ही नहीं दुनिया में मुंबई मायानगरी, फिल्म सिटी और उद्योग व व्यापार के लिए अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। वैसे भी मुंबई के लोग उत्सवधर्मी हैं। मुंबई का गणेशोत्सव और जन्माष्टमी पर दही हाण्डी पर्व देखने वाला होता है। यही कारण है कि देश के जिन जिन लोगों के कोई रिश्तेदार मुंबई रहते हैं। वे यह उत्सव देखने मुंबई अवश्य ही आते हैं। मूर्ति विसर्जन के दिन तो विदेशी लोग भी विशेषतया मुंबई पहुंचते हैं। मूर्ति विसर्जन के दिन समुद्र तटों का भीड़ भडा़का और मेले का सा माहौल लोगों को बहुत लुभाता है। मैं स्वयं ऐसे रोमांचक दृश्य का प्रत्यक्ष गवाह रहा हूं। मगर सच में मुझे अब भीड़भाड़ से वितृष्णा सी हो गई है।
आपको बता दूं कि इस समय जबकि देश के कई हिस्सों में जबरदस्त गर्मी और उकता देने वाली उमस का वातावरण है। यहां इन दिनों मुंबई में कभी बौछारों, कभी बूंदाबांदी और बीच-बीच में मूसलाधार बारिश का दौर जारी है। इस कारण यहां का मौसम बेहद सुहाना हो रहा है और ठंडी हवाओं से वातावरण मोहक बना हुआ है।यही वजह है जो कि इस बड़े उत्सव में लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।
वैसे तो मुंबई से आरंभ हुई गणोशोत्सव की परम्परा अब मुंबई से बाहर निकल कर थोड़ा थोड़ा देशभर में पहुंच गई है। बल्कि दुनिया के देशों में जहां जहां भारतीय रहते हैं सबसे प्रतिष्ठित, लोकप्रिय और प्रथम पूज्य देवों के देव महादेव पार्वती पुत्र गणेश जी के इस उत्सव को मनाने की परम्परा आरंभ हो गई है। महाराष्ट्र में गणपति जी की बहुत मान्यता है। गणेशोत्सव के लिए लोग महीनों पहले से ही तैयारी आरंभ कर देते हैं। इस उत्सव की विशेषता देखिये कि जिस भांति गणपति की स्थापना के लिए गणपति की प्रतिमा को ढोल-ढमाका, नृत्य रंग गुलाल मल कर घर या सोसायटी पंडालों में स्थापित करने के लिए लाया जाता है। उससे भी अधिक उत्साह, उमंग और उल्लास का माहौल गणराया की प्रतिमा विसर्जन को विसर्जित करने के लिए ले जाने पर रहता है। गणपति विसर्जन के उत्सव की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस दिन पूरे मुंबई में सम्पूर्ण अवकाश रहता है। छोटे बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठान ही नहीं थड़ी और रेहड़ी पटरी पर दुकान लगाने वाले भी अवकाश रखते हैं। जैसे सारा मुंबई इस दिन समुद्र तटों पर पहुंच जाता है। यहां रात दिन का कोई हिसाब नहीं है। दिन ही नहीं पूरी रात मूर्ति विसर्जन का कार्यक्रम बदस्तूर जारी रहता है। आतिशबाज़ी, ढोल धमाके और गणपति के भजनों की जबरदस्त धूम मची रहती है। इन दिनों वातावरण भी गणपतिमय हो उठता है।
मुंबई में अधिक व्यस्तताओं के चलते आमतौर पर परस्पर मिलने मिलाने का रिवाज़ नहीं है। मगर इन ग्यारह दिनों में लोग परस्पर अपने अपने सम्बन्धियों और मिलने वालों के घर आते जाते हैं। और आपस में मिल-बैठकर खाते पीते हैं और उपहार का लेन-देन भी किया जाता है।
गणेशोत्सव सिर्फ धार्मिक महत्व का अवसरमात्र नहीं है। इसका आर्थिक और राजनीतिक महत्व भी है। इस उत्सव के दौरान लाखों नहीं करोड़ों रुपए का लेन-देन होता है। लोगों को रोजगार मिलता है। सर्व प्रथम तो गणपति की मूर्ति निर्माताओं की जबरदस्त आय का जरिया बन जाता है। आप जानकर आश्चर्य करेंगे कि मूर्तिकार वर्ष भर मूर्ति बनाने में जुटे रहते हैं और इन दिनों में उनकी सभी मूर्तियां बिक जाती हैं। इसके लिए पहले से बुकिंग शुरू करदी जाती है। इसके बाद बैंड और ढोलक वाले, फूल-मालाएं बेचने वाले, रंग गुलाल वाले, प्रसाद और फलों के विक्रय करने वाले, पोस्टर्स, बैनर्स और होर्डिंग्स वाले, टेंट और तम्बू वाले, मूर्ति लाने ले जाने वाले, वाहनों वाले, इन दिनों में सड़क और रेल यातायात के साधनों में भी वृद्धि करना होती है इससे सरकार को अतिरिक्त आय होती है। राजनीतिक दलों के लोग भी अपने अपने समर्थकों को उत्साहित और प्रोत्साहित करते हैं। इसे वे अपनी सियासी शक्ति प्रदर्शित करने के उद्देश्य की पूर्ति भी करते हैं। यह वार्ता तब तक पूरी नहीं होगी जब तक कि मुंबई की पुलिस और प्रशासन की प्रशंसा नहीं की जाती। इस पर्व में कोई रंग में भंग न डाल पाए। इसके लिए विशेष प्रयास किए जाते हैं। मुंबई पुलिस को भीड़ को नियंत्रित करने में महारथ हासिल है, यह बात मैं यहां विशेष रूप से रेखांकित करना चाहूंगा।