जयपुर - साझा संसार नीदरलैंड्स की पहल पर “बुंदेलखण्डी मातृभाषा का भविष्य और चुनौतियां” पर अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन आयोजन, लीलाधर मंडलोई के मुख्य आतिथ्य और मुकेश वर्मा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इस आयोजन में बुंदेलखण्डी भाषाविद् ध्रुव शुक्ल, महेश कटारे ’’सुगम’’ और राजीव शुक्ला ने भाग लिया।
इस कार्यक्रम का संयोजन साझा संसार के निदेशक डॉ0 रामा तक्षक (नीदरलैंड्स) के सान्निध्य में हुआ और इसका सफल सञ्चालन मनीष पाण्डेय (नीदरलैंड्स) ने किया। संयोजक डॉ0 रामा तक्षक ने अपने बीज वक्तव्य में बताया कि मातृभाषा, संस्कृति की जननी है। मातृभाषा और संस्कृति का आपसी सम्बन्ध अटूट है। मातृभाषा, देह और अस्तित्व का जोड़ है। उन्होंने बुंदेलखण्डी मातृभाषा के विषय में अपनी जिज्ञासा के साथ कार्यक्रम के सभी वक्ताओं का स्वागत किया।
राजीव शुक्ला ने कहा कि बुंदेली भाषा में कुछ फिल्में जरूर बन रही हैं लेकिन बुंदेलखण्डी मातृभाषा को सशक्त एवं समृद्ध करने के लिए दो चार फिल्मों का बना देना पर्याप्त नहीं है। ध्रुव शुक्ल ने बुंदेली के इतिहास को एक हजार वर्ष पुराना होने की बात कही। साथ ही कहा कि लोकगीत, लोक शिक्षा का काम करते हैं। उन्होंने आश्चर्य जताया कि यह अजीब समय है जब हमें अपनी मातृभाषा के अस्तित्व की चिंता पर चर्चा करनी पड़ रही है।
बुंदेलख़ण्डी में ग़ज़ल विधा को स्थापित करने वाले महेश कटारे ’’सुगम’’ ने बुंदेली के समकाल पर विस्तार से बताया। आज भी पद्य साहित्य में वीर रस सृजन का आधिक्य है। वर्तमान जीवन में अत्याचार, शोषण, अंधविश्वास, भ्रष्टाचार पर न के बराबर लिखा जा रहा है। जाने माने वरिष्ठ कवि लीलाधर मंडलोई ने अपने मुख्य आतिथ्य वक्तव्य में कहा कि बुंदेली के संवर्धन और संरक्षण के लिए नये आव्हान की जरूरत है। सोसल मीडिया के युग में, भाषा का बदलता स्वरूप सामने आ सके इसके लिए बुंदेलखण्डी का दस्तावेजीकरण आवश्यक है।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में मुकेश वर्मा ने विश्वरंग की भूमिका और गांधी जी को उद्धृत करते हुए बताया कि अब जागने का समय है। सोते रहने से काम नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि बुंदेलखण्डी मातृभाषा के संरक्षण संवर्धन हेतु रचनात्मक कदम उठाया जायेगा।
राजस्थान से रामस्वरूप रावतसरे