बागपत। वात्स्यायन पैलेस में मरहूम मतीन तारिक की याद में आयोजित मुशायरा और कवि सम्मेलन में करीब चार दर्जन शायरों-कवियों ने अपनी रचनाओं से खूब समां बांधा। साहित्य और शायरी को समर्पित इस कार्यक्रम में नगर व आसपास के क्षेत्रों से आए साहित्यप्रेमियों ने बड़ी संख्या में भाग लेकर आयोजन को गरिमामय बना दिया। कार्यक्रम का उद्देश्य मरहूम मतीन तारिक के साहित्यिक योगदान को स्मरण करना और नई पीढ़ी को साहित्य से जोड़ना रहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार एवं सुप्रसिद्ध कवि डॉ. चेतन आनंद ने की। उनके सधे हुए कलाम और साहित्यिक दृष्टि ने पूरे आयोजन को प्रभावशाली बना दिया। गालिब इंस्टीट्यूट दिल्ली के डायरेक्टर डॉ. इदरीस अहमद ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। कार्यक्रम का संचालन अपने विशिष्ट अंदाज़ में कारी हसनैन दिलकश ने किया, जिन्होंने मंच और श्रोताओं के बीच सुंदर संवाद स्थापित किया। कार्यक्रम के डायरेक्टर डॉ. ज़की तारिक थे। असद खान कन्वीनर तो संरक्षक शाहाब तारिक एवं राजकुमार शर्मा रहे। विशेष वक्ता के रूप में डॉ. परवेज आलम अलीगढ़ और डॉ. मुस्तमिर ने अपने विचार रखे और मरहूम मतीन तारिक के व्यक्तित्व व साहित्यिक सोच पर प्रकाश डाला।
मुशायरे में शामिल शायरों और कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज, प्रेम, मानवीय संवेदनाओं, समकालीन यथार्थ और जीवन के विविध रंगों को प्रस्तुत किया। कहीं ग़ज़लों की नज़ाकत थी तो कहीं सामाजिक पीड़ा की सशक्त अभिव्यक्ति। कवियों की प्रस्तुतियों पर श्रोताओं ने बार-बार तालियों से उत्साहवर्द्धन किया। डॉ. ज़की तारिक ने पढ़ा-‘अभी हुजूम है इसको जुलूस बनने दो, तिरे खि़लाफ़ तिरा मेहरबान बोलेगा।’ वारिस वारसी ने कहा-‘जब लोग इत्तहाद के सांचे में ढल गये, फिर यूं हुआ चराग़ हवाओं में जल गये।’ डॉ. चेतन आनंद ने सुनाया-‘जु़बां से बोलेगा या फिर नज़र से बोलेगा, मेरा वजूद तो मेरे हुनर से बोलेगा। क़लम क़लम है क़लम की ज़ुबां नहीं होती, क़लम का दर्द तुम्हारी ख़बर से बोलेगा।’ हसनैन दिलकश की ग़ज़ल का ये शेर खूब पसंद किया गया-‘पिछली ख़ता मुआफ़ कराने की ज़िद पे है, अब के हवा चिराग़ जलाने की ज़िद पे है।’ कौसर ज़ैदी, अरशद ज़िया, अनवर ग़ाज़ियाबादी, खुशतर मतीनी, विजय कौशिक अम्बर, चांद देवबंदी, अन्सार सिद्दीकी़, कृष्ण अंजुम, शुएब जलाल, नाज़िल अली, ख़वाब देहलवी, फ़रमान मीर, शरफ नानपारवी, अब्र देहलवी आदि शायरों के कलाम भी श्रोताओं ने दिल खोलकर सुने और सराहे। श्रोताओं में डॉ. शकील अहमद, इरशाद खान, हफीज़ अहमद, सत्येंन्द्र जैन, प्रदीप जैन, इकबाल खान, आलिम आदि मौजूद रहे। अंत में आयोजकों की ओर से सभी अतिथियों, कवियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया गया।
