लोकतंत्र की पाठशाला थे अटल जी
अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम हैं, जिनके साथ ‘क़िस्से’ केवल रोचक घटनाएँ नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संस्कारों की सीख भी हैं। उनके जीवन से जुड़े प्रसंग बताते हैं कि सत्ता में रहते हुए भी विनम्रता, संवाद और मानवीयता कैसे बचाए रखी जा सकती है। अटल जी के क़िस्से आज के शोरगुल भरे राजनीतिक माहौल में शालीनता का पाठ पढ़ाते हैं।
विरोध का सम्मानः संसद से सड़क तक
संसद में तीखी बहस के दौरान जब शोर-शराबा बढ़ जाता, अटल जी मुस्कराकर माहौल हल्का कर देते। एक बार विपक्ष के तीखे प्रहार पर उन्होंने कहा “लोकतंत्र में विरोध सरकार की कमजोरी नहीं, ताक़त होता है।” यह वाक्य केवल एक तात्कालिक टिप्पणी नहीं था, बल्कि उनके राजनीतिक दर्शन का सार था। वे असहमति को भी संवाद में बदलने की कला जानते थे।
ऐतिहासिक भाषणः देश पहले
1996 में विश्वास मत हारने के बाद संसद में दिया गया उनका वक्तव्य आज भी उद्धृत किया जाता है, “सरकारें आती-जाती रहती हैं, पार्टियाँ बनती-बिगड़ती रहती हैं, लेकिन देश रहना चाहिए।” यह क़िस्सा बताता है कि सत्ता उनके लिए साध्य नहीं, साधन थी; राष्ट्र सर्वोपरि था।
लाहौर बस यात्राः साहस का संदेश
जब अटल जी लाहौर बस यात्रा पर निकले, तो आलोचनाएँ भी हुईं। लेकिन उनका उत्तर सरल और दूरदर्शी था, “मित्र बदले जा सकते हैं, पड़ोसी नहीं।” यह प्रसंग बताता है कि वे जोखिम उठाने से नहीं घबराते थे, यदि उद्देश्य शांति और संवाद हो। उनके लिए कूटनीति केवल समझौते नहीं, भरोसे की पहल थी।
कवि का मन, प्रधानमंत्री का दायित्व
एक कार्यक्रम में उनसे पूछा गया, आप पहले क्या हैं, कवि या प्रधानमंत्री? अटल जी का उत्तर था, “प्रधानमंत्री संयोग से हूँ, कवि स्वभाव से।” सत्ता के उच्च शिखर पर बैठा व्यक्ति भी भीतर से संवेदनशील रचनाकार हो सकता है, यह क़िस्सा इसी सच्चाई को रेखांकित करता है।
हार में भी गरिमा
चुनावी पराजय के बाद कार्यकर्ताओं में निराशा थी। अटल जी ने कहाकृ?, “हार हमें और बेहतर बनने का अवसर देती है।” राजनीति में हार को भी सीख मानने का यह दृष्टिकोण उन्हें विशिष्ट बनाता है। वे जीत में संयमी और हार में धैर्यवान थे।
सादगी का प्रसंग
प्रधानमंत्री रहते हुए भी उनका जीवन सादा रहा। बताया जाता है कि देर रात तक फाइलों पर काम के बाद वे कुछ पंक्तियाँ लिख लेते थे, कविता उनके लिए थकान की दवा थी। यह क़िस्सा बताता है कि सत्ता उनके स्वभाव को नहीं बदल सकी।
विरोधी भी प्रशंसक
एक वरिष्ठ विपक्षी नेता का कथन चर्चित है, “हम अटल जी से राजनीतिक असहमति रख सकते हैं, लेकिन उनका अपमान नहीं कर सकते।” यह प्रसंग दर्शाता है कि उनका व्यक्तित्व दलगत सीमाओं से ऊपर था।
युवाओं के नाम संदेश
एक छात्र ने राजनीति में सफलता का सूत्र पूछा। अटल जी बोले, “पहले अच्छा इंसान बनो, नेता अपने आप बन जाओगे।” यह छोटा-सा क़िस्सा उनके जीवन-दर्शन को संक्षेप में रख देता है।
अटल बिहारी वाजपेयी के क़िस्से केवल स्मृतियाँ नहीं, बल्कि लोकतंत्र की पाठशाला हैं। वे सिखाते हैं कि दृढ़ विचारों के साथ भी शालीनता संभव है, सत्ता के साथ भी संवेदना बची रह सकती है। आज जब राजनीति में कटुता बढ़ रही है, अटल जी के ये प्रसंग हमें याद दिलाते हैं कि संवाद, सम्मान और संयम ही लोकतंत्र की असली ताक़त हैं।
लेखक
डॉ. चेतन आनंद
(कवि-पत्रकार)
