वामा अकादमी के तत्वावधान में दिनांक 29 अक्तूबर 2025 को सायं 4 बजे वामा अकादमी के संस्थापक एवं वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार,व्यंगयकार डॉ. संजीव कुमार, जिन्होंने 296 पुस्तकों का कीर्तिमान स्थापित कर 'इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड' में नाम दिखाया है, उन की चर्चित पुस्तक ‘ज्योतिर्मयी — नृत्य का ज्ञान कोश’ पर एक महत्वपूर्ण ऑनलाइन परिचर्चा आयोजित की गई।
कार्यक्रम का कुशल संचालन वामा अकादमी, दिल्ली इकाई की अध्यक्ष शकुंतला मित्तल ने किया।
शुभारंभ वामा अकादमी दिल्ली की उपाध्यक्ष, उमंग सरीन के स्वागत उद्बोधन से हुआ।
उद्बोधन के पश्चात श्रीमती मित्तल ने डॉ. संजीव कुमार जी से ‘ज्योतिर्मयी’ के लेखन की प्रेरणा के विषय में प्रश्न किया।
डॉ. संजीव कुमार जी ने बताया कि उनकी पुत्री ने नृत्य के क्षेत्र में अनेक प्रयोग किए और उन्होंने विभिन्न नृत्यांगनाओं के जीवन, साधना और अभिव्यक्ति को निकट से देखा। उन्हीं अनुभवों से उनके मन में यह विचार जन्मा कि 'नृत्य हमारे चारों ओर बिखरा हुआ जीवन का उत्सव है, बस उसे देखने की दृष्टि चाहिए।'
इसके पश्चात सुप्रसिद्ध लेखिका श्रीमती संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि ‘ज्योतिर्मयी’ डॉ. संजीव कुमार जी की वर्षों की साधना का परिणाम है, जिसमें उन्होंने वैज्ञानिकता और आध्यात्म, शास्त्र और प्रयोग, रस और भाव का सुंदर संगम प्रस्तुत किया है।
डॉ. विजय कुमार तिवारी ने अपने विचार रखते हुए लेखक के व्यक्तित्व की गहराई और संवेदनशील दृष्टि पर प्रकाश डाला।
लघुकथाकार एवं समीक्षक श्री बी. एल. आच्छा ने कहा कि ‘ज्योतिर्मयी’ एक ऐसा काव्य-कोश है ,जिसमें भारत की सांस्कृतिक चेतना और नृत्य की अंतःकथाएँ सजीव रूप में व्यक्त हुई हैं। उन्होंने कहा कि लेखक ने अवचेतन से जागरूक नर्तक तक की यात्रा को अत्यंत सशक्त रूप से उकेरा है। साथ ही उन्होंने कुछ सारगर्भित सुझाव भी दिए जिन्हें डॉ. संजीव कुमार जी ने सहजता से स्वीकार किया।
श्री ओमप्रकाश प्रजापति कार्यक्रम में नेटवर्क समस्या के कारण उपस्थित नहीं हो सके, किंतु उन्होंने अपनी समीक्षा लिखित रूप में भेजकर ‘ज्योतिर्मयी’ की सराहना की।
आदरणीय त्रिलोक कौशिक जी एवं डॉ. गरिमा संजय दुबे जी भी तकनीकी कारणों से परिचर्चा में भाग नहीं ले सके।
श्री भंवरलाल जाट ने ‘ज्योतिर्मयी’ को डॉ. संजीव कुमार जी का नवाचारपूर्ण और सृजनशील योगदान बताया।
कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष श्रीमती शकुंतला मित्तल ने सभी वक्ताओं, अतिथियों और प्रतिभागियों का हार्दिक आभार व्यक्त किया।
परिचर्चा आत्मीय संवाद, गंभीर विचार और रचनात्मक दृष्टि से संपन्न रही , जिसने ‘ज्योतिर्मयी’ को न केवल एक पुस्तक, बल्कि नृत्य और जीवन के सौंदर्य का जीवंत ग्रंथ सिद्ध कर दिया।
प्रस्तुति
शकुंतला मित्तल

बहुत सुंदर रिपोर्ट और कवरेज के लिए हार्दिक आभार
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