किस करवट बैठेगा ऊँट, किसका बदलेगा भाग्य
बिहार की राजनीति सदैव परिवर्तनशील रही है। यहाँ के मतदाता जाति, वर्ग, विकास और नेतृत्व सभी को संतुलित दृष्टि से देखते हैं। वर्ष 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव भी कुछ ऐसा ही रोमांच लेकर आया है। सवाल वही पुराना है-“ऊँट किस करवट बैठेगा?” लेकिन इस बार उत्तर आसान नहीं है। स्थिति लगभग संतुलन पर है, दोनों प्रमुख गठबंधन एनडीए और महागठबंधन, एक-दूसरे को कांटे की टक्कर दे रहे हैं। वहीं, प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी तीसरे मोर्चे के रूप में कुछ नए समीकरण बनाने की कोशिश में है। चुनाव नज़दीक हैं, हवा में सवाल गूंज रहा है, किसका भाग्य बदलेगा, किसका सूर्यास्त होगा, और बिहार के मतदाता किस दिशा में झुकेंगे? आइये जानते हैं।
वर्तमान परिदृश्यः टक्कर बेहद कड़ी
बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में बहुमत के लिए 122 सीटों की आवश्यकता है। चुनाव दो चरणों में होने जा रहे हैं 6 और 11 नवंबर 2025 को। वर्तमान में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार है, जबकि तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन सत्ता में वापसी का पूरा प्रयास कर रहा है। कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सर्वेक्षण यह संकेत दे रहे हैं कि दोनों गठबंधनों के बीच का अंतर मात्र 1.5 से 2 प्रतिशत तक सिमटा हुआ है। यानी, मुकाबला बेहद करीबी है और हर सीट निर्णायक हो सकती है। जनता के बीच यह भी सवाल है कि नीतीश कुमार की बार-बार की राजनीतिक करवटों के बावजूद क्या जनता फिर उन पर भरोसा करेगी, या इस बार तेजस्वी यादव जैसे युवा चेहरे को मौका देगी। दूसरी ओर, भाजपा की रणनीति यह है कि नीतीश के अनुभव और मोदी के करिश्मे को मिलाकर सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखी जाए।
ऊँट किस करवट बैठेगा?
चुनावी विश्लेषकों की राय में इस बार ऊँट का बैठना कई छोटे-छोटे समीकरणों पर निर्भर करेगा। यदि एनडीए अपने परंपरागत वोटबैंक कुर्मी, कुशवाहा, बनिया और उच्चवर्गीय मतदाताओं को एकजुट रख पाने में सफल रहा, तो उसे मामूली बढ़त मिल सकती है। वहीं, महागठबंधन यदि यादव, मुस्लिम, दलित और पिछड़े वर्गों के मतों को एकजुट करने में सफल रहता है, तो सत्ता परिवर्तन संभव है। इन दोनों के बीच जनसुराज जैसी नई ताकतें कुछ सीटों पर समीकरण बिगाड़ सकती हैं, विशेषकर उन इलाकों में जहाँ जनता पारंपरिक दलों से ऊबी हुई है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार में “वोट ट्रांसफर” और “जातिगत जुड़ाव” सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं। यदि इनमें से किसी एक मोर्चे पर कोई दल कमजोर पड़ा, तो खेल बदल सकता है।
किसका बदलेगा भाग्य?
2025 का चुनाव कई नए चेहरों और युवा नेताओं के भाग्य बदलने वाला साबित हो सकता है। तेजस्वी यादव ने बेरोज़गारी और शिक्षा जैसे मुद्दों को लेकर युवाओं से सीधा संवाद साधा है। उन्होंने यह दावा किया है कि सत्ता में आने पर वे “बेरोजगारीमुक्त बिहार” बनाएँगे। वहीं, एनडीए ने उनके वादों को “असंभव और छलावा” बताते हुए अपने एजेंडे में विकास, सड़क, बिजली, कानून-व्यवस्था और स्थिरता को प्रमुखता दी है। युवाओं, महिलाओं और प्रथम बार वोट देने वाले मतदाताओं की संख्या इस बार निर्णायक भूमिका निभाने जा रही है। जिन दलों ने इन वर्गों को सही दिशा में साधा, उनका भाग्य अवश्य बदलेगा।
किसका होगा सूर्यास्त?
हर चुनाव कुछ नेताओं के लिए नई सुबह लेकर आता है और कुछ के लिए राजनीतिक सूर्यास्त। इस चुनाव में भी कई ऐसे चेहरे हैं जिनकी साख दांव पर है। अगर महागठबंधन अपेक्षानुसार प्रदर्शन नहीं करता, तो तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठ सकते हैं। वहीं, अगर एनडीए बहुमत नहीं जुटा पाता, तो यह नीतीश कुमार के लंबे राजनीतिक सफर का अंत साबित हो सकता है। भाजपा के लिए भी यह चुनाव महत्वपूर्ण है, पार्टी को साबित करना है कि वह बिहार में स्वतंत्र रूप से जनादेश हासिल करने की क्षमता रखती है, न कि केवल सहयोगी दलों पर निर्भर है। नए दलों के लिए भी यह परीक्षा की घड़ी है। जनसुराज पार्टी अगर इस चुनाव में कुछ सीटें भी जीत जाती है, तो वह बिहार की राजनीति में नया अध्याय खोल सकती है। लेकिन यदि वह असफल रही, तो उसका अस्तित्व सीमित रह जाएगा।
मतदाताओं का रुझान, मुद्दों का गणित
इस बार बिहार के मतदाता जातीय राजनीति के साथ-साथ स्थानीय विकास, रोजगार और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर भी सजग दिख रहे हैं।
1.रोजगार और पलायन-हर घर से कोई न कोई रोज़गार की तलाश में बाहर है। युवाओं की यह पीड़ा इस चुनाव का बड़ा मुद्दा बनेगी।
2.विकास और आधारभूत ढाँचा-सड़कें, बिजली, पुल, स्वास्थ्य सेवाएँ कृ ये अब भी बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं।
3.कानून व्यवस्था-जनता अब “सुशासन” के नाम पर केवल वादे नहीं, बल्कि परिणाम चाहती है।
4.जातिगत समीकरण-यादव, कुर्मी, पासवान, भूमिहार, मुसलमान, अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग, इन सभी की हिस्सेदारी को देखते हुए कोई भी दल किसी वर्ग की उपेक्षा नहीं कर सकता।
5.भ्रष्टाचार और पारदर्शिता-सत्ता में आने के बाद जवाबदेही और पारदर्शिता पर जनता की निगाहें होंगी।
6.महिलाओं की भूमिका-बिहार की महिलाएँ अब राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा रही हैं। सरकार की “आरक्षण नीतियों” और “स्वयं सहायता समूहों” ने उन्हें सशक्त बनाया है।
7.मतदान की मनोवृत्ति, ‘बदलाव’ बनाम ‘स्थिरता’-बिहार के मतदाता भावनात्मक नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण निर्णय लेते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी “जाति” एक बड़ा फैक्टर है, जबकि शहरी मतदाता “विकास और रोज़गार” पर अधिक केंद्रित हैं। कई युवा मतदाता यह मानते हैं कि अब बिहार को एक “स्थिर और दीर्घकालिक सरकार” चाहिए। वहीं, बदलाव की चाह रखने वाले मतदाता कह रहे हैं कि “अब नई सोच को मौका मिलना चाहिए।”
अभी ऊँट बैठा नहीं है
बिहार के 2025 चुनाव का नतीजा भविष्य की राजनीति को गहराई से प्रभावित करेगा। फिलहाल समीकरण यह कह रहे हैं कि न तो एनडीए और न ही महागठबंधन पूरी तरह हावी दिख रहा है। स्थिति इतनी करीबी है कि 1,000 से 5,000 वोटों का झुकाव ही सरकार तय कर सकता है। ऊँट किस करवट बैठेगा, यह कहना जल्दबाज़ी होगी, लेकिन इतना तय है कि यह चुनाव राजनीतिक परिपक्वता, जनभावना और युवा ऊर्जा का संगम बनने जा रहा है। बदलाव की चाह, स्थिरता की उम्मीद और नेतृत्व की परीक्षा यही इस चुनाव के तीन सूत्र हैं। अब देखना यह है कि बिहार की जनता किसे अपना भविष्य सौंपती है, नीतीश का अनुभव, तेजस्वी की युवा ऊर्जा या किसी नए चेहरे की नई सोच। समाप्त
लेखक
डॉ. चेतन आनंद
(कवि-पत्रकार)
