नेपाल के घटनाक्रम को कुछ लोग विदेशी ताकतों का खेल बता रहे हैं। कुछ हद तक संभव है, क्योंकि हर शक्ति सुपरबॉस बनना चाहती है। अमेरिका, रूस या चीन कोई भी हो। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली तो जाते-जाते भारत को ही दोषी ठहरा गए। लेकिन ओली और उनके मंत्री यह नहीं समझ पाए कि देश के जिन युवाओं की वे उपेक्षा कर रहे हैं, उनकी जरूरतों की अनदेखी कर परिवार को आगे बढ़ा रहे हैं, लोगों के साथ अन्याय हो रहा है, देश में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच चुका है, वही लोग एक दिन उनके लिए काल बन सकते हैं।
दरअसल, सत्ता का नशा ही ऐसा है कि जब तक ये तथाकथित नेता कुर्सी पर होते हैं, उन्हें नहीं लगता कि एक दिन उनसे यह सत्ता छिन सकती है। वे भूल जाते हैं कि अत्याचार, भ्रष्टाचार और अन्याय सहन करने वाला जब मरने-मारने पर उतरू हो जाता है तो वह अब पांच साल इंतजार नहीं करता। न संविधान न सरकार, न मुकदमा न अदालत, उसे तो ऑन स्पाट फैसला चाहिए। बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान, म्यांमार और अब नेपाल में यही हुआ है। इसके बावजूद नेता सबक नहीं ले रहे हैं। सत्ता में आते ही वे यह मान कर चलते हैं कि अब इस धरती के असली भगवान वही हैं। स्याह करें या सफेद, वह जो कर रहे हैं, वही सही है और उनका ही निर्णय सर्वमान्य होगा। बस, यहीं गच्चा खा जाते हैं।
ओली सरकार के साथ भी यही हुआ। देश की तरक्की, नवजवानों को रोजगार और भ्रष्टाचार से मुक्ति की शांति तरीके से मांग करने के लिए सरकार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे कई लोगों को विद्रोही मानकर पुलिस ने गोलियों से भून दिया। प्रदर्शनकारियों पर सरकारी गाड़ी चढ़ाने की कोशिश हुई। ऐसे तानशाह प्रधानमंत्री और उसकी सरकार को कौन बर्दाश्त करेगा? आंदोलन कर रही युवकों की भीड़ विद्रोह पर उतर आई। भ्रष्टाचार, अन्याय सह रही आम जनता भी युवाओं के समर्थन में उतर गई। अंतत: अपनी बात मनवाने के लिए राष्ट्रपति भवन, संसद और सुप्रीम कोर्ट तक को आग के हवाले कर दिया गया। कई पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी जान-माल का नुकसान हुआ है और मंत्रियों को हिंसा व आगजनी की त्रासदी झेलनी पड़ रही है।
नेपाल के घटनाक्रम ने बता दिया है कि आज की युवा पीढ़ी पांच साल चुनाव का इंतजार करने को तैयार नहीं है। उसकी मानें तो अत्याचार, भ्रष्टाचार और अन्याय सहन करने वाला जब मरने-मारने पर उतरू हो जाता है तो न संविधान न सरकार, मुकदमा न अदालत, वह ऑन स्पाट फैसला चाहता है। पड़ोसी देशों में यही हुआ है। हमें भी इस घटनाक्रम से सतर्क रहना चाहिए। यद्यपि हमारा संविधान बहुत अच्छा है। यहां हर किसी को बोलने की आजादी है। मानवाधिकार की अनदेखी नहीं की जाती, फिर भी हमें इससे सबक लेना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)