रामलीला केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, लोक आस्था और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है। दिल्ली-एनसीआर में हर साल दशहरे के अवसर पर भव्य रामलीलाएँ आयोजित होती हैं। इन आयोजनों में लाखों लोग शामिल होते हैं। मंचन से लेकर झाँकियों तक सब कुछ महीनों पहले से तैयार होता है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में यह परंपरा कई तरह के विवादों और खींचतान का शिकार भी रही है। कहीं कलाकारों की चयन प्रक्रिया सवालों के घेरे में आई, तो कहीं परंपरागत भाषा और शैली संकट में पड़ी। कुछ जगह सुरक्षा और व्यवस्थागत लापरवाही ने विवादों को जन्म दिया तो कहीं रामलीला समिति पदाधिकरियों में आपसी खींचतान देखी गई।
दिल्लीः पूनम पांडे और लवकुश समिति विवाद
दिल्ली की सबसे चर्चित घटना इस वर्ष (2025) की रही, जब चांदनी चौक की लवकुश रामलीला समिति ने अभिनेत्री पूनम पांडे को मंदोदरी की भूमिका के लिए चुना। जैसे ही यह खबर फैली, बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद सहित अनेक धार्मिक संगठनों ने इसका विरोध किया। उनका तर्क था कि रामलीला एक पवित्र सांस्कृतिक मंच है, और इसमें ऐसे कलाकारों को शामिल करना ठीक नहीं, जिनकी सार्वजनिक छवि विवादास्पद रही हो।
समिति के अध्यक्ष अर्जुन कुमार और महासचिव सुभाष गोयल ने पहले निर्णय का बचाव किया, लेकिन जब दबाव बढ़ा और जनता में असंतोष सामने आया तो उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर घोषणा की कि पूनम पांडे इस वर्ष मंचन का हिस्सा नहीं होंगी। दिल्ली बीजेपी मीडिया सेल प्रमुख प्रवीण शंकर कपूर ने भी खुलकर विरोध किया। अंततः समिति ने पूनम पांडे को पत्र लिखकर इस भूमिका से हटाने का निर्णय सुनाया।
ग़ाज़ियाबादः ऊँट की मौत और कलाकार चयन
ग़ाज़ियाबाद में हाल ही में रामलीला आयोजन विवादों में तब आया जब राजनगर की रामलीला समिति में झाँकियों और मनोरंजन के लिए रखे गए ऊँट की मृत्यु हो गई। पशु अधिकार संगठनों ने इसे लापरवाही बताया और पुलिस पर कार्रवाई न करने का आरोप लगाया। समिति अध्यक्ष जयकुमार गुप्ता ने कहा कि उन्हें ऊँट की खराब हालत की जानकारी नहीं थी, जबकि एनजीओ एफआईएपीओ की अनामिका राणा ने समिति और देखरेख करने वालों पर गंभीर आरोप लगाए।
इसके अलावा, ग़ाज़ियाबाद की कविनगर रामलीला में कलाकार चयन को लेकर चर्चा रही। यहां मिस सहारनपुर अनुष्का यादव को सीता और इंजीनियर अंशुल सिंह को रावण की भूमिका दी गई। यह विवाद नहीं बना, लेकिन चयन प्रक्रिया को लेकर स्थानीय स्तर पर बहस जरूर हुई। इससे पता चलता है कि कलाकारों की पृष्ठभूमि और पहचान भी अब जनता के बीच चर्चा का विषय बनती है। कवि नगर स्थित श्री धार्मिक रामलीला समिति में अध्यक्ष और महामंत्री पर गंभीर आरोप लगे हैं। समिति के आजीवन सदस्य और पूर्व सांसद डॉ. रमेश चंद्र तोमर ने आरोप लगाया है कि नियम विरुद्ध तरीके से उन्हें समिति से बाहर करने का प्रयास किया जा रहा है। डॉ. तोमर का कहना है कि वे समिति के आजीवन सदस्य हैं, फिर भी अध्यक्ष और महामंत्री ने उन्हें हटाने का नोटिस जारी कर दिया। उनका आरोप है कि समिति के भीतर कुछ लोग व्यक्तिगत लाभ और राजनीतिक दबाव में निर्णय ले रहे हैं। संजय नगर सेक्टर-23 में आयोजित होने वाली रामलीला भी राजनीतिक महाभारत का मैदान बनी हुई है। यहां भाजपा नेता प्रदीप चौधरी और पार्षद पप्पू नागर के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है। बताया जा रहा है कि रोजाना नए-नए आदेश पत्र जारी किए जा रहे हैं, जिससे मंचन की तैयारी पर भी असर पड़ रहा
नोएडाः आधुनिक मंच और पुलिस की सख्ती
नोएडा में रामलीला समितियों का स्वरूप धीरे-धीरे बदल रहा है। श्री सनातन धर्म रामलीला, श्री राम मित्र मंडल जैसी समितियाँ भव्य मंच, स्क्रीन और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। इस परंपरा और आधुनिकता का मेल दर्शकों को आकर्षित तो कर रहा है, लेकिन परंपरावादियों के बीच यह बहस छेड़ रहा है कि क्या रामलीला को इतने आधुनिक रूप में प्रस्तुत करना उचित है। इसके साथ ही, पुलिस और प्रशासन भी हर साल अधिक सतर्क हो रहा है। 2024 में नोएडा पुलिस ने भीड़ नियंत्रण के लिए धारा 144 लागू की और समितियों को स्पष्ट निर्देश दिए कि सुरक्षा में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।
फरीदाबादः भाषा और परंपरा का संकट
फरीदाबाद की जागृति रामलीला समिति ने इस साल घोषणा की कि वे परंपरागत “बन्नुवाली रामलीला” का मंचन अब नहीं कर पाएंगे। यह रामलीला पंजाबी की एक विशेष बोली ‘बन्नुवाली’ में होती थी और लंबे समय से स्थानीय पहचान का हिस्सा रही है। समिति से जुड़े गुरचरण सिंह भाटिया ने कहा कि अब उस भाषा को जानने वाले लोग लगभग खत्म हो चुके हैं, इसलिए मंचन संभव नहीं है।
गुरुग्रामः विवाद कम, चुनौतियाँ वही
गुरुग्राम की रामलीलाओं से जुड़ी बड़े विवाद की खबरें कम मिली हैं। यहाँ आयोजन अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहते हैं। लेकिन स्थानीय स्तर पर समितियों को भूमि, बिजली, अनुमति और फंड जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह बताता है कि भले ही गुरुग्राम मीडिया की सुर्खियों में न आए, पर समिति स्तर पर संघर्ष वही हैं जो दिल्ली या ग़ाज़ियाबाद में देखने को मिलते हैं।
रामलीलाओं में विवाद-एक नजर में
दिल्ली-एनसीआर की रामलीला समितियों के विवादों को अगर एक नज़र से देखें तो चार मुख्य प्रकार उभरते हैं-
1.कलाकार चयन और छवि विवाद-जैसे दिल्ली में पूनम पांडे का मामला।
2.सुरक्षा और लापरवाही-ग़ाज़ियाबाद में ऊँट की मौत, दिल्ली में मंच पर कलाकार का गिरना।
3.परंपरा बनाम आधुनिकता-नोएडा में एलईडी और तकनीक का इस्तेमाल, फरीदाबाद में भाषा का संकट।
4.संसाधन और प्रशासनिक दबाव-गुरुग्राम और अन्य जिलों में भूमि, बिजली, अनुमति जैसी समस्याएँ।
दिल्ली-एनसीआर की रामलीला समितियों में विवाद और आपसी खींचतान इस बात का संकेत है कि सांस्कृतिक आयोजनों को लेकर समाज में संवेदनशीलता कितनी गहरी है। चाहे वह पूनम पांडे को लेकर हुआ विरोध हो, ग़ाज़ियाबाद में ऊँट की मौत हो, नोएडा की आधुनिकता हो या फरीदाबाद की भाषा का संकट, हर घटना हमें यह याद दिलाती है कि परंपरा को निभाने के लिए केवल उत्साह काफी नहीं, बल्कि संवेदनशीलता, जिम्मेदारी और दूरदृष्टि भी आवश्यक है। रामलीला की शक्ति इसी में है कि वह समय के साथ बदल भी सकती है और परंपरा को संभाल भी सकती है। जरूरत है कि समितियाँ और समाज दोनों मिलकर ऐसा संतुलन साधें, जिससे मर्यादा भी बनी रहे और आधुनिक दर्शकों को भी आकर्षित किया जा सके।
लेखक
डॉ. चेतन आनंद
(कवि एवं पत्रकार)
