दिल्ली-एनसीआर देश की राजधानी क्षेत्र होने के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र है। यहाँ की जनसंख्या विविध है, प्रवासी आबादी बड़ी संख्या में रहती है और शहरी जीवन की जटिलताएँ हर क्षेत्र में दिखाई देती हैं। इसी जटिलता का असर महिला सुरक्षा और अपराध की स्थिति पर भी देखा जाता है। पिछले पाँच वर्षों (2020-2024) के आँकड़े, रिपोर्ट्स और घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि महिला अपराध अब भी एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं। दिल्ली-एनसीआर में महिला अपराध एक गंभीर सामाजिक और प्रशासनिक चुनौती बने हुए हैं। एनसीआरबी और दिल्ली पुलिस के आँकड़े बताते हैं कि हालाँकि 2024 में अपराधों में कुछ कमी आई है, फिर भी दिल्ली महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित महानगरों में गिनी जाती है। अपराधों की विविधता, घरेलू हिंसा, दहेज, अपहरण, छेड़छाड़, बलात्कार, यह दर्शाती है कि समस्या केवल कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक भी है। पुलिस की त्वरित कार्रवाई, अदालतों की तेज़ सुनवाई और समाज में मानसिकता परिवर्तन, तीनों स्तरों पर एक साथ काम करने की आवश्यकता है। तभी आने वाले वर्षों में दिल्ली-एनसीआर को वास्तव में महिलाओं के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक क्षेत्र बनाया जा सकेगा।
महिला अपराधों के आँकड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और दिल्ली पुलिस द्वारा जारी आँकड़े बताते हैं कि दिल्ली-एनसीआर में महिला अपराधों की संख्या पिछले पाँच वर्षों में ऊँची रही है। एनसीआरबी के अनुसार 2021 में दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लगभग 13,982 मामले दर्ज हुए, जो 2022 में बढ़कर 14,158 तक पहुँच गए। यानी महामारी के बाद के वर्षों में मामूली बढ़ोतरी देखी गई। दिल्ली पुलिस के अनुसार 2023 की तुलना में 2024 में महिला अपराधों में लगभग 11 प्रतिशत की कमी आई है। हालाँकि, यह कमी सांत्वना देने वाली है, फिर भी दिल्ली अब भी 19 महानगरों में महिला अपराध के मामले दर्ज कराने में सबसे ऊपर बनी हुई है।
महिला अपराधों की प्रमुख श्रेणियाँ
महिला अपराध अलग-अलग रूपों में सामने आते हैं। एनसीआरबी के आँकड़े इस विविधता को स्पष्ट करते हैं।
1-पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता (आईपीसी 498)-यह श्रेणी सबसे अधिक मामलों की है, कुल अपराधों का लगभग 31 प्रतिशत। घरेलू हिंसा, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना इस श्रेणी में आती है।
2-महिलाओं का अपहरण और किडनैपिंग-लगभग 19 प्रतिशत मामले इसी श्रेणी में दर्ज होते हैं। इसमें विवाह हेतु अपहरण, यौन शोषण के उद्देश्य से अपहरण जैसे अपराध शामिल हैं।
3-महिलाओं पर हमला, छेड़छाड़ और अश्लील हरकतें-लगभग 18-19 प्रतिशत मामले। सार्वजनिक स्थलों पर छेड़छाड़, कार्यस्थल पर उत्पीड़न आदि इसमें आते हैं।
4-बलात्कार-यह श्रेणी कुल मामलों का लगभग 7 प्रतिशत हिस्सा रखती है। आँकड़ों के अनुसार दिल्ली में हर दिन कई रेप केस दर्ज होते हैं, जिससे यह अपराध विशेष रूप से संवेदनशील श्रेणी मानी जाती है।
5-इनके अलावा दहेज हत्या, पीछा करना, साइबर अपराध, मानव तस्करी और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएँ भी सामने आती रहती हैं।
जिलेवार आंकड़े
1-दिल्ली (एनसीटी)
2020-लगभग 9,782 मामले दर्ज हुए (एनसीआरबी)।
2021-लगभग 13,982 मामले।
2022-कुल 14,158 मामले (एनसीआरबी रिपोर्ट)।
2023-एनसीआरबी की रिपोर्ट अभी प्रकाशित नहीं, पर दिल्ली पुलिस व मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 2023 में भी महिला अपराधों में वृद्धि देखी गई।
2024-दिल्ली पुलिस की आंतरिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 में रेप के लगभग 2,076 मामले दर्ज हुए, अन्य श्रेणियों में भी सैकड़ों मामले आए।
2-गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)
2020-341 मामले दर्ज हुए।
2021-591 मामले।
2022-1,063 मामले (एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार)।
2023-स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार 2022 की तुलना में और वृद्धि दर्ज हुई, पर समेकित संख्या उपलब्ध नहीं।
2024-अभी तक आधिकारिक वार्षिक रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है।
3-गौतम बुद्ध नगर (नोएडा, यूपी)
2020-कुल अपराध लगभग 9,130
2021-रेप के लगभग 242 मामले, अन्य महिला अपराध भी जोड़े जाने पर संख्या अधिक रही।
2022-रेप के लगभग 226 मामले, घरेलू हिंसा व छेड़छाड़ जैसे अपराध भी काफी दर्ज हुए।
2023-रेप मामलों की संख्या घटकर लगभग 140 रही।
2024-पूर्ण आंकड़ा अभी सार्वजनिक नहीं, केवल आंशिक श्रेणियों के रिपोर्टेड केस उपलब्ध हैं।
4-फरीदाबाद (हरियाणा)
2020 से 2022-एनसीआरबी के अनुसार महिला अपराधों की संख्या लगातार बढ़ती रही, पर जिला स्तर पर हर साल का आंकड़ा सीमित रूप से उपलब्ध है।
2023-दर्ज मामलों में वृद्धि दिखी।
2024-जनवरी से जून तक के छह महीनों में ही 437 मामले दर्ज किए गए (जिसमें दुष्कर्म, छेड़छाड़, दहेज उत्पीड़न शामिल हैं)।
5-गुरुग्राम (हरियाणा)
2020 से 2021-एनसीआरबी के अनुसार महिला अपराधों के मामले हर साल बढ़ रहे थे।
2022-जनवरी से अगस्त तक महिला अपराधों में लगभग 57 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी (पिछले साल की तुलना में)।
2023-महिला अपराधों के मामलों में वृद्धि की पुष्टि स्थानीय रिपोर्टों में हुई।
2024-पूरे वर्ष में कुल 1,727 मामले दर्ज हुए (हरियाणा पुलिस डेटा के अनुसार)।
गिरफ्तारी और कानूनी प्रक्रिया
दिल्ली पुलिस हर दर्ज मामले पर कार्रवाई करते हुए आरोपियों को गिरफ्तार करती है, लेकिन समस्या गिरफ्तारी तक ही सीमित नहीं है। असली चुनौती चार्जशीट दाखिल करने और अदालत में सजा दिलाने की प्रक्रिया में आती है।
कई मीडिया रिपोर्टों और एनसीआरबी के विश्लेषणों के अनुसार दिल्ली में चार्जशीट दाखिल करने की दर अपेक्षाकृत कम है। कुछ मामलों में यह दर 30 प्रतिशत के आसपास बताई गई है, जबकि देश के अन्य राज्यों में यह आँकड़ा इससे कहीं बेहतर है। इसी प्रकार सजा दिलाने की दर (कनविक्शन रेट) भी कम है। इसका सीधा असर यह होता है कि पीड़िता को न्याय पाने में लंबा समय लगता है और अपराधी अक्सर छूट जाते हैं।
पुलिस और न्यायिक व्यवस्था के सामने चुनौतियाँ
महिला अपराधों को रोकने और दोषियों को सजा दिलाने में पुलिस और न्यायिक तंत्र कई बड़ी चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
1-अत्यधिक केस-लोड-दिल्ली जैसे महानगर में महिला अपराधों की संख्या बहुत अधिक है। प्रत्येक थाने पर सैकड़ों मामले लंबित रहते हैं।
2-साक्ष्य संग्रह में कमी-मेडिकल परीक्षण, फॉरेंसिक जांच और डिजिटल सबूत जुटाने में अक्सर देरी होती है। इससे चार्जशीट कमजोर हो जाती है।
3-अदालतों में लंबित मुकदमे-महिला अपराधों के हजारों मामले वर्षों तक अदालतों में लंबित रहते हैं। इससे पीड़िताओं का विश्वास कमजोर होता है।
4-सामाजिक दबाव-घरेलू हिंसा या दहेज जैसे मामलों में परिवार का दबाव, समझौते की कोशिशें और बयान बदलना आम है। इससे जांच प्रभावित होती है।
5-माइग्रेशन और जनसंख्या का दबाव-दिल्ली-एनसीआर की बदलती जनसंख्या, अस्थायी बस्तियाँ और अपराधी नेटवर्क की मौजूदगी पुलिस के लिए चुनौती है।
6-कानूनी बदलाव और प्रशिक्षण-हाल के वर्षों में दंड संहिता और आपराधिक कानूनों में बदलाव हुए हैं। पुलिस को इनके अनुरूप प्रशिक्षण और संसाधन नहीं मिल पाते।
7-डेटा पारदर्शिता की कमी-एनसीआरबी और दिल्ली पुलिस के आँकड़े कई बार अलग-अलग तस्वीर दिखाते हैं। इससे नीति-निर्माण में कठिनाई होती है।
सुधार के सुझाव
महिला अपराधों को कम करने और पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए कई उपाय सुझाए जा सकते हैं।
1-फॉरेंसिक और मेडिकल प्रतिक्रिया को तेज़ करना ताकि हर जिले में त्वरित फॉरेंसिक यूनिट हो, जिससे सबूत तुरंत इकट्ठा किए जा सकें।
2-महिला हेल्प डेस्क और वन स्टॉप सेंटर, थानों में महिला हेल्प डेस्क सक्रिय हों और पीड़िताओं को परामर्श, कानूनी मदद और सुरक्षित स्थान तुरंत उपलब्ध कराया जाए।
3-विशेष प्रशिक्षण, पुलिसकर्मियों को जेंडर संवेदनशील जांच और पीड़िताओं से संवाद की ट्रेनिंग दी जाए।
4-तेजी से न्यायिक प्रक्रिया, महिला अपराधों के मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट बढ़ाए जाएँ।
5-समुदाय और एनजीओ सहयोग, समाज में जागरूकता अभियान चलाकर महिला अपराधों की रिपोर्टिंग को बढ़ावा देना।
6-शहरी ढाँचे में सुधार, अँधेरी सड़कों पर रोशनी, सार्वजनिक परिवहन में सुरक्षा व्यवस्था, सीसीटीवी कैमरों का विस्तार और महिला सुरक्षा ऐप्स का प्रचार।
लेखक
डॉ. चेतन आनंद
(कवि-पत्रकार)
