- डॉ. मोहन गुप्त
उज्जैन/ जीवन में मनुष्य आनंद प्राप्ति की प्रत्याशा रखता है। आनंद के भारतीय वाङमय में साहित्यिक, दार्शनिक, भौतिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक आदि अनेक आयाम हैं। परमात्मा का एक स्वरूप सत्-चित् और आनंद बताया गया है। आनंद के अवरोधक तत्त्व, क्रोध, लोभ, मोह एवं ईर्ष्या को हटाने से आनंद मिलता है। वैश्विक स्तर पर आनंद के मानक अलग हैं, इनकी तुलना भारत जैसे बहुविध सांस्कृतिक विशेषताओं वाले देश से नहीं की जा सकती है। आनंद के विदेशी प्राचीन मानदंडों को बदलकर पुनः निर्धारण होना चाहिए। उक्त उद्गार मुख्य अतिथि डॉ. मोहन गुप्त, पूर्व कुलपति, उज्जैन ने भारतीय साँस्कृतिक विरासत में जीवन आनंद के आयाम विषय पर आयोजित परिचर्चा में व्यक्त कियें। अतिथि वक्ता उपाचार्य डॉ तुलसीदास परौहा ने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत में आनन्द की सविस्तार विवरण उपलब्ध है। जीवन की परिपूर्णावस्था का विशेष नाम आनंद है। जीवन में सुख-दु:ख का चक्र घुमता रहता है। अतिथि वक्ता पूर्व कुलपति आचार्य बालकृष्ण शर्मा ने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि लौकिक सुख आंनद नहीं है, बल्कि ब्रह्मानंद को प्राप्त करना आनंद है। सच्चिदानंद स्वरूप परम ब्रह्म है। आनंद ब्रह्म का साक्षात रूप है। भारतीय शास्त्रों में आंनद के अनेक आयाम बताएं गयें हैं। प्राणी मात्र का नैसर्गिक स्वरूप आनंद है। स्वागत भाषण संस्थान के निदेशक प्रोफेसर यतीन्द्रसिंह सिसोदिया ने दिया।
आचार्य शैलेंद्र पाराशर वरिष्ठ शोध अध्येता ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत में आनन्द प्राप्ति के अनेक मूल्य, मार्ग, सूत्र एवं साधना पद्धतियाँ सविस्तार बताई गई हैं मनुष्य को बुद्धि, विवेक और अंतर्रात्मा के गहन स्तरों की अभिव्यक्तियाँ, उसे सुसंस्कृत एवं आनंदित बने रहने का बोध कराती है। भौतिक साधनों से आनंद नहीं मिलता है, उसकी अनुभूति आत्मा के स्तर पर होती है।
प्रोफेसर गोपालकृष्ण शर्मा ने अध्यक्षीय उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि वर्तमान समय में मनुष्य को अपने जीवन में अनेक नवीन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिससे जीवन आनंद की अनुभूति प्रभावित हो रही है। भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत प्राचीन काल से आनंदमय जीवन दर्शन का बोध कराती रहीं है। विमोचित पत्रिका के केंद्रित आचार्य पाराशर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विभिन्न आयाम को रेखांकित किया।
कार्यक्रम के आरम्भ में मंचासीन अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पमाला, पूजा-अर्चना एवं दीप आलोकन कर किया। मंचासीन अतिथियों का भावभीना स्वागत मोतियों की माला एवं उत्तरीय पहनाकर किया। इस आयोजन में राष्ट्रीय हिंदी पत्रिका ट्रू मीडिया द्वारा परिचर्चा सयोंजक एवं वरिष्ठ शोध अध्येता के व्यक्तित्व एवं कृतित्व केन्द्रित विशेषांक का मंचासीन अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया। इस अवसर पर शोधार्थी, विद्यार्थी एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन संगोष्ठी के समन्वयक डॉ. संतोष पंड़या एवं आभार प्रदर्शन संयोजक आचार्य शैलेंद्र पाराशर ने किया।