सनातन संस्कृति में हमारे घरों में मनाये जाने वाले प्रत्येक त्योहार का अपना विशेष महत्व है। प्रत्येक त्यौहार का आध्यात्मिक, भौगोलिक तथा वैज्ञानिक महत्व भी है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इन त्यौहारों का विशेष महत्व है।
ऐसा ही एक पर्व है- मकर संक्रान्ति, जो माघ मास (जनवरी) में मनाया जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस दिन सूर्य बारह राशियों में से एक राशि मकर में प्रवेश करता है। इस दिन से सूर्य पृथ्वी के दो अयन दक्षिणायन तथा उत्तरायण में से उत्तरायण में प्रवेश करता है। इन अयनों का समय छह, छह मास का होता है। उत्तरायण को सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक तथा दक्षिणायन को नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक ग्रन्थों में कहा जाता है कि यदि किसी की मृत्यु दक्षिणायन में होती है तो उसका पुनर्जन्म होता है। उत्तरायण में मृत्यु होने पर व्यक्ति स्वर्ग में जाता है, उसका मोक्ष हो जाता है। महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह शर शय्या पर सोये और जब उत्तरायण प्रारंभ हुआ, तभी उन्होंने प्राणों का त्याग किया। मान्यता है कि उस दिन मकर संक्रान्ति थी। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-
अग्रिर्ज्योतिरह: शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम्।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्मब्रह्मविदो जना:।।२४।।
(श्रीमद् भगवद्गीता, अध्याय ८/२४)
भाव यह है कि जो परब्रह्म के ज्ञाता है, वे अग्निदेव के प्रभाव में, प्रकाश में, दिन के शुभ क्षण में, शुक्ल पक्ष में या जब सूर्य उत्तरायण में रहता है, उन मासों में इस संसार से शरीर त्याग करता है तो वह परब्रह्म को प्राप्त करता है।
दक्षिणायन में मृत्यु होने पर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-
धूमो रात्रि स्तथा कृष्ण: षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते।।२५।।
(श्रीमद् भगवद् गीता, अध्याय ८/२५)
भाव यह है कि जो व्यक्ति कृष्ण पक्ष या सूर्य के दक्षिणायन होने पर दिवंगत होता है, वह चन्द्रलोक को जाता है और पुन: वहाँ से पृथ्वी पर चला जाता है अर्थात् उसका पुनर्जन्म होता है।
मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति उत्तरायण हो जाती है। यह पर्व सम्पूर्ण भारत में, नेपाल में तथा जहाँ-जहाँ विदेशों में भारतीय समुदाय निवास करता है वे भी देेश, काल तथा वातावरण के अनुरूप इस पर्व को मनाते हैं। भारत के लगभग सभी प्रान्तों में मकर संक्रान्ति भिन्न-भिन्न नामों से मनाई जाती है।
तमिलनाडु में इसे पोंगल के नाम से मनाते हैं। यह पर्व यहाँ चार दिन तक बड़े उत्साह से सम्पन्न करते हैं। विशेष प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। इस दिन सूर्य, इन्द्र, बैल तथा अंतिम दिन कन्या पूजन किया जाता है।
केरल में इसे मकर विलझू कहते हैं। बड़े उत्साह से यह पर्व सम्पन्न होता है। भगवान अय्यप्पा का पूजन होता है।
कर्नाटक में एलु बिरोधु नामक एक अनुष्ठान इस दिन किया जाता है। तिल, गुड़, मूंगफली के व्यंजन बनाते हैं।
पंजाब, जम्मू-कश्मीर में इस पर्व को लोहिड़ी नाम से मनाया जाता है। परिवार सामूहिक रूप से होली के समान आग जलाकर उसमें धानी, नवान्न डालकर ताप लिया जाता है। तिल तथा खिचड़ी का सेवन किया जाता है। यदि घर में बालक का जन्म होता है उस वर्ष लोहड़ी का पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। धानी के लड्डू वितरित किए जाते हैं।
गुजरात में यह पर्व सूर्य को केन्द्र बिन्दु मानकर मनाया जाता है। इस प्रदेश में तिल-खिचड़ी के दान के साथ ही पतंगबाजी की जाती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यहाँ की पतंगबाजी प्रसिद्ध है। देर रात तक आकाश में विभिन्न आकार की प्रकाश करने वाली पतंगें उड़ती दिखाई देती हैं।
महाराष्ट्र तथा गोवा में भी इस पर्व का विशेष महत्व है। तिल तथा गुड़ का दान किया जाता है। तिळ गुड़ घ्या आणि गोड़ गोड़ बोला- ''ऐसा कह कर गुड़ तिल खाने के लिये दिया जाता है (तिल गुड़ लो और मीठे मीठे बोलो) सुहागिन महिलाएं वायन देती हैं। उसमें तिल गुड़, खिचड़ी, हरे चने, बेर आदि नई फसल की सामग्री रखी जाती है। हल्दी कुंकुम के साथ सुहागिन महिलाओं को सुहाग सामग्री दी जाती है और आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है। विवाह के प्रथम वर्ष में महिला को काले रंग की साड़ी और काँटेदार तिल (हलवा) के आभूषण पहनाए जाते हैं। गिल्ली डंडा और पतंग उड़ाई जाती है।
उत्तर प्रदेश में इस दिन मंदिरों में विशेषकर गोरखधाम मंदिर में खिचड़ी चढ़ाते हैं और भोजन में भी खिचड़ी खाते हैं। कम्बल, चावल, तिल, गुड़, ऊनी वस्त्र आदि के दान का विशेष महत्व है।
बिहार में भी चूड़ा, दही, तिलकूट, तिलगुड़ के लड्डू आदि दान करने के पश्चात खाया जाता है।
आन्ध्र तथा तेलंगाना में यह पर्व चार दिन तक मनाते हैं। घरों में चावल के रंगीन आटे से रांगोली सजाई जाती है जिसे अल्पना कहते हैं। दान का भी महत्व है।
पश्चिम बंगाल में पौष संक्रान्ति के रूप में मनाते हैं। चावल तथा ताड़ के गुड़ के साथ सुस्वादु मिष्ठान्न बनाए जाते हैं। एक प्रकार से यह नई फसलका उत्सव है जिसे आनन्द एवं उल्लास से मनाया जाता है। यहाँ गंगा सागर का मेला लगता है। यहां दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है।
राजस्थान में उत्तरायण नाम से इस पर्व को मनाते हैं। गुड़, तिल, लड्डू का विशेष महत्व है। नदियों में स्नान कर सूर्य पूजन किया जाता है। पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता होती है। दान करने का विशेष महत्व है।
मध्यप्रदेश में इस त्यौहार का विशेष महत्व है। प्रात: नदियों में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पानी में तिल डाले जाते हैं। स्नान के पश्चात् मंदिरों में तिल के लड्डू, खिचड़ी (मूँग दाल तथा चावल) तथा दक्षिणा रख कर दान किया जाता है। सुहागिन स्त्रियों तथा बेटी-दामाद को भोजन कराकर दान दिया जाता है। भोजन में हरे चने, मटर, तिल्ली, गाजर आदि डालकर खिचड़ी बनाई जाती है। मूँग के भजिये तथा तिल के मिष्ठान्न बनाए जाते हैं। सुहागिन स्त्रियां सौभाग्य सामग्री सादर प्रदान करती हैं। इन सामग्रियों की संख्या चौदह होती है। अपने सामर्थ्य के अनुसार इनकी संख्या को कम या ज्यादा किया जा सकता है। पतंगबाजी तथा गिल्ली डंडा इस पर्व का विशेष आकर्षण है।
इस प्रकार विभिन्न प्रान्तों में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। सब के मूल में एक बात निहित है कि यह पर्व दान पुण्य का पर्व है। गुड़ और तिल सभी प्रान्तों में आवश्यक है। सूर्य की उपासना का पर्व है। पितृगणों के लिए भी दान किया जाता है। इस दिन राजा भगीरथ गंगा नदी को लाये थे और राजा सगर के सौ पुत्रों का उद्धार किया था। इसी दिन गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चल कर सागर में मिली थी। इसी दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर भेंट स्वरूप आते हैं। इसी दिन मलमास समाप्त होता है और वसन्त ऋतु का प्रारंभ होता है।
हर्षोल्लास, दान-पुण्य के इस पर्व को मनाने में सावधानी रखना अति आवश्यक है। कई बार किशोरवय बालक छतों पर पतंग उड़ाने में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि छत की ऊँचाई का असावधानीवश ध्यान नहीं रख पाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं, जिससे पारिवारिक क्षति होने की संभावना अधिक रहती है। चाइना डोर से भी कई वाहन चालक दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। अत: चाइना डोर पर प्रतिबंध आवश्यक है। प्रशासन तथा जनता दोनों के सहयोग से ही यह कार्य सम्पन्न हो सकता है।
मकर संक्रान्ति से दिन बड़े होने लगते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह पर्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। तिल, गुड़ तथा खिचड़ी का सेवन रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है। तिल स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। आयुर्वेद की दृष्टि से भी ये अति उपयोगी होते हैं। इसके अतिरिक्त यह पर्व सौभाग्य का वर्धन करने वाला तथा पतंग तथा गिल्ली डंडा खेलने के कारण खेल भावना का विकास करने वाला और स्वास्थ्य की रक्षा करने वाला है।
प्रेषक
डॉ. शारदा मेहता