शनिवार, 16 सितंबर को दिल्ली की अग्रणी साहित्यिक संस्था 'पर्पल पेन' द्वारा 'हिन्दी ~ राष्ट्र गौरव' काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। हिन्दी भाषा के संवर्धन एवं उन्नयन हेतु आयोजित इस गोष्ठी की अध्यक्षता प्रसिद्ध दोहाकार श्री नरेश शांडिल्य ने की। मुख्य अतिथि के रूप में विश्व विख्यात उस्ताद शायर श्री सीमाब सुल्तानपुरी उपस्थित रहे एवं विशिष्ट अतिथि की भूमिका में पूर्व विशेष न्यायिक दंडाधिकारी श्री ओम सपरा ने कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई।
समूह की संस्थापक-अध्यक्ष सुश्री वसुधा कनुप्रिया ने अपने स्वागत वक्तव्य में हिन्दी दिवस के शुभारंभ और इतिहास की जानकारी दी। आपने बताया कि हिन्दी दिवस पर समूह आठ वर्ष से कविता, आलेख तथा नारा लेखन प्रतियोगिताएं आयोजित करता रहा है जिनमें विजेताओं को प्रशस्ति पत्र, सम्मान और उपहार प्रदान किए जाते रहे हैं। आठ वर्ष से समूह प्रतिदिन लिखित आयोजन भी कर रहा है, जिस से सभी को मातृभाषा में लिखने के लिए प्रेरित किया जा सके। यह आयोजन अपने 381 वें सप्ताह में हैं और यह साहित्यिक यात्रा अनवरत जारी है।
दिल्ली--एनसीआर से लगभग 25 कवियों--कवयित्रियों ने 'हिन्दी -- राष्ट्र गौरव" गोष्ठी में काव्य पाठ किया किया। गीत, दोहे, गीतिका, मुक्तक, सहित अनेक पारंपरिक छंद आधारित और मुक्तछंद कविताओं का श्रेष्ठ पाठ कर कविगण ने गोष्ठी को सफल बनाया। श्रोतागण सहित कवियों ने संकल्प लिया की सामान्य नागरिकों, विशेषकर युवाओं को बोलचाल में हिन्दी का अधिक से अधिक उपयोग करने की प्रेरणा देंगे। कार्यक्रम के अंत में सबसे सुन्दर प्रस्तुति देने वाले दो कवि मित्रों -- श्री अरविन्द असर और डॉ. टी. इस. दराल को मंचासीन अतिथिगण द्वारा मेडल पहनाए गए। । काव्य की सरस धारा तीन घंटे तक अविरल बही जिसका सभी कविगण एवं श्रोताओं ने भरपूर आनंद लिया।
"जिस मिट्टी में बढ़ी-पली हूँ, उसका गौरव गान करूं।
भारत माता के चरणों में, न्योछावर में प्राण करूं।।" -- सुश्री शारदा मदरा ने इस ओजपूर्ण रचना की सस्वर प्रस्तुति दी।
कवि ओम प्रकाश प्रजापति ने श्रम पर अपनी कविता पढ़ी --
"श्रम करना मेरा कर्तव्य है
जिसे मैं पूरी तरह निभाता हूं
किसी का हक नहीं मारता
अपनी मेहनत की खाता हूं"
इतिहास के साक्षी 'खंडहरों' पर डॉ. माधवी करोल ने कहा --
श्वेत रंगीन, पुती दीवारें
दिखने में खंडहर, समेटे बवंडर
सदियों की साक्षी बनी दीवारें"
मुक्तक, कविता सहित वसुधा 'कनुप्रिया' ने कुछ समसामयिक दोहे प्रस्तुत किये --
"क्षणभंगुर जीवन मना, कल की जाने कौन।
श्वासों का संगीत यह, कब हो जाए मौन।।"
उस्ताद शायर श्री सीमाब सुल्तानपुरी ने माँ पर के हृदयस्पर्शी रचना पढ़ी। हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, रशियन आदि अनेक भाषाओँ के जानकार सीमाब जी की इन पंक्तियों से सबका मन छू लिया --
"वेसे तो हर भाषा से ही प्यार किया है मैं ने,
बचपन से ही लेकिन मुझको हिन्दी प्यारी है।
आपने इन पंक्तियों में एक अत्यंत व्यावहारिक सुझाव हिन्दी के प्रवर्तन के लिए दिया --
"मिट जायेगा आप ही,अंग्रेज़ी का रोग,
दिनचर्या में हो अगर, हिन्दी का प्रयोग"
श्री नरेश शांडिलय ने बहुत सुन्दर और सारगर्भित दोहे, एक गीत कुछ युग्म भी पढ़े। आपका यह दोहा 'हिन्दी दिवस' पर अत्यंत प्रासंगिक रहा --
"अंग्रेज़ी का कलेण्डर, ऐसा आया रास।
भूले हम अपने दिवस, अपने सम्वत मास।।"
दशकों से लागू शिक्षा नीति, विद्यालयों की दुर्दशा जैसे विचारणीय विषयों पर केंद्रित कविताओं के साथ संविधान निर्माण पर श्री ओम सपरा ने अपनी बात इस तरह रखी --
"संविधान निर्माताओं की गहरी सोच, उनकी अंतर-दृष्टि थी सचमुच महान,
और दिल से चाहा जातिविहीन समाज और सभी वर्गों का कल्याण!"
इनके अतिरिक्त सर्व श्री/सुश्री गीता भाटिया, अरविन्द असर, जगदीश मीणा, मिलन सिंह, वंदना मोदी गोयल, ओम प्रकाश शुक्ल, भूपेंद्र कुमार, रवि ऋषि, अनिल वर्मा मीत, शिव प्रभाकर ओझा, डाॅ. टी. एस. दराल, अपर्णा थपलियाल, छत्र छाजेड़ 'फक्कड़’, शालिनी शर्मा, मनोज कामदेव, सुनील शर्मा, और सुषमा शैली सहित प्रयाग से पधारे पूर्व रेलवे अधिकारी श्री शैलेन्द्र कपिल ने भी हिन्दी दिवस, मातृभाषा उन्नयन, आदि सम्बंधित विषयों पर एक से बढ़कर एक रचनायें पढ़ी और गोष्ठी को सफल बनाया।
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए समूह की संस्थापक-अध्यक्ष सुश्री वसुधा 'कनुप्रिया' ने सभी से आग्रह किया की युवाओं में हिन्दी और मातृभाषा बोलने के लिए प्रेरित करना कविगण का कर्तव्य है, वे अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को दिशा दिखा सकते हैं।
-- वसुधा 'कनुप्रिया'