काशी-वाराणसी विरासत फाउंडेशन की
'उदन्त मार्तण्ड' द्विशताब्दी समारोह केंद्रित वर्ष पर्यंत चलने वाली आयोजन
श्रृंखला का दूसरा आयोजन 'भारत : साहित्य और मीडिया महोत्सव' के रूप में विगत 15-16 नवंबर 2025 को मुंबई
मराठी पत्रकार भवन, मुंबई में गरिमा पूर्ण ढंग से संपन्न हुआ। ध्यातव्य है कि
प्रथम हिंदी समाचार पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन पं.
जुगुल
किशोर सुकुल के संपादन में 30 मई 1826 को कोलकाता से प्रारंभ हुआ था। इस स्मृति में देश
प्रतिवर्ष 30 मई को 'पत्रकारिता दिवस' के रूप में मनाता है। केंद्रीय हिंदी
निदेशालय, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी एवं मुंबई मराठी पत्रकार संघ के
सौजन्य से संपादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराड़कर (1883-1955) की 143वीं जयंती के
अवसर पर आयोजित समारोह का केंद्रीय विषय
था-- 'मराठी भाषी संपादकों-पत्रकारों का हिंदी पत्रकारिता एवं साहित्य के विकास
में योगदान'। बाल गंगाधर तिलक और बाबूराव विष्णु पराड़कर को
समर्पित
समारोह का उद्घाटन महाराष्ट्र के सांस्कृतिक कार्य विभाग मंत्री आशीष शेलार ने
किया। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार तथा
महाराष्ट्र और दिल्ली से आए प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए पराड़कर जी के गांव
के निवासी आशीष शेलार ने कहा कि मेरे लिए भाषा संवाद का माध्यम है, विवाद का नहीं।
अपनी भाषा के लिए कट्टरता ठीक है लेकिन संवाद के लिए हर भाषा का सम्मान होना
चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकार समाज का प्रबोध भी करता है और उसका प्रेरक भी है।
जब पत्रकारिता से साहित्य से जुड़ जाता है तो वह मानव मूल्यों को और गतिशील बना
देता है। उन्होंने स्मरण दिलाया कि यह संत ज्ञानेश्वर (1275-1296) का 750वां जन्म
वर्ष भी है। उन्होंने आह्वान किया कि उनकी गीता पर आधारित मराठी कृति 'ज्ञानेश्वरी'
का कार्यक्रम काशी में भी होना चाहिए।
आयोजन में ऑनलाइन जुड़े असम के
राज्यपाल महामहिम लक्ष्मण प्रसाद आचार्य ने अपने संबोधन में कहा कि भाषाएं नदी की
तरह होती हैं, जब वे बहती हैं तो सीमाएं मिट जाती हैं। महाराष्ट्र ने हिंदी
पत्रकारिता को ऐसी तमाम विभूतियां दीं, जिन्होंने हिंदी पत्रकारिता को गति और
गरिमा दी। वे भाषा के नहीं, राष्ट्र के प्रहरी थे। उनका कहना था कि हिंदी
पत्रकारिता के द्विशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित यह राष्ट्रीय संगोष्ठी
विशेष रूप से हिंदी पत्रकारिता की गौरवशाली परंपरा को स्मरण कराने के साथ ही
राष्ट्र निर्माण में उसके योगदान को नवीन दृष्टि से समझने का अवसर प्रदान करती है।
अपने उद्बोधन में काशी-वाराणसी
विरासत फाउंडेशन के कार्यकारी अध्यक्ष तथा आयोजन के संयोजक व सूत्रधार प्रोफेसर
राम मोहन पाठक ने कहा कि भाषा की विशेषता भूगोल में नहीं उसके सरोकारों में है।
पराड़कर जी ने बताया कि समाज की दिशा तय करने में पत्रकारिता की कितनी महत्वपूर्ण
भूमिका है। उन्होंने कहा की भाषा बंधन नहीं, राष्ट्र सेवा का माध्यम है।
उद्घाटन समारोह में बोलते हुए
केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक प्रो. हितेन्द्र मिश्र ने कहा कि जब समय की दुरूहताएं बहुत गंभीर हो जायं तब
पत्रकारिता के माध्यम से उसका समाधान किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हिंदी
पत्रकारिता की शुरुआत भले ही कोलकाता से हुई हो, उसकी दिशा निकलती है महाराष्ट्र से।
उद्घाटन समारोह को पश्चिम बंगाल
शिक्षण-प्रशिक्षण विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सोमा बंद्योपाध्याय तथा
इसकॉन मैनेजिंग ट्रस्टी प्रभु सूरदास ने
भी संबोधित किया। अतिथियों का स्वागत मुंबई मराठी पत्रकार संघ के अध्यक्ष संदीप
चाह्वाण ने तथा धन्यवाद ज्ञापन पत्रकार संघ के सचिव शैलेन्द्र शिर्के ने किया। इस
अवसर पर आयोजन की स्मारिका 'साहित्य भारत' तथा डॉ. नीलम वर्मा की काव्य कृति
'तरंगिणी' का लोकार्पण भी किया गया।
उद्घाटन मंच पर मुंबई मराठी पत्रकार
संघ की
उपाध्यक्ष स्वाति घोसालकर, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की प्रधान संपादक डॉ. अमिता दुबे तथा
काशी वाराणसी विरासत फाउंडेशन की ट्रस्टी सुषमा अग्रवाल की भी महत्वपूर्ण उपस्थिति
रही। उद्घाटन
समारोह का संचालन ‘हिंदुस्तान’, वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मिश्र ने किया।
आयोजन के मुख्य विषय
पर केंद्रित पहले
विचार-सत्र की अध्यक्षता डॉ. किंशुक पाठक, एसोसिएट प्रोफेसर, जनसंचार एवं
मीडिया अध्ययन, पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय, बठिंडा ने की। मुख्य अतिथि कुलपति
प्रोफेसर सोमा बंद्योपाध्याय
रहीं। संचालन
कमलेश भट्ट कमल ने किया। इस महत्वपूर्ण सत्र को जवाहर कर्नावट, निदेशक
अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र, रवीन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल ने मुख्य
वक्ता के रूप में संबोधित किया। अन्य वक्ताओं में हरीश पाठक, वरिष्ठ
साहित्यकार-पत्रकार मुंबई ; डॉ. अमिता दुबे, स्वप्निल रानी नंदकुमार, प्रोफेसर
पवित्र श्रीवास्तव (माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल) शामिल थे।
15 नवंबर 2025 के अपराह्न में ही
संपन्न द्वितीय विचार-सत्र का विषय था 'भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता हिंदी साहित्य
व पत्रकारिता के अंतर्संबंध'। इसकी अध्यक्षता
राजलक्ष्मी कृष्णन, चेन्नई ने की तथा इसकी सह-अध्यक्ष डॉ. निशा मुदे पवार
थीं। मुख्य अतिथि के रूप में हिंदुस्तान की सलाहकार संपादक जयंती रंगनाथन उपस्थित
थीं। इस सत्र का संचालन अरविंद मिश्र ने संभाला । वक्ताओं के रूप में मंच पर
उपस्थित विश्वनाथ गोकर्ण ,वाराणसी (मुख्य वक्ता),डॉक्टर श्रावणी भट्टाचार्य
(चेन्नई), डॉ महेश मीणा (भटिंडा), प्रोफेसर आनंद वर्मा शर्मा (बीएचयू), डॉ पुष्पा
एल (मैसूरु),ओम प्रकाश त्रिपाठी (सोनभद्र) की रही।
15 नवंबर 2025 का सायंकालीन सत्र एक
काव्य गोष्ठी के रूप में संयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता कमलेश भट्ट कमल ने की
तथा इसमें काव्य पाठ करने वालों में नूतन अग्रवाल (आगरा), डॉ. लता सिन्हा
'ज्योतिर्मय' द(मुजफ्फरपुर), प्रो. सोमा बंद्योपाध्याय (कोलकाता), श्रीमती कमलेश
पाठक (मुंबई) व डॉ. नीलम वर्मा (नई दिल्ली) के अलावा मुंबई के युवा रचनाकार
अनुष्का विश्वकर्मा, कुमारी कीर्ति, खुशी कुमारी तथा उत्कर्ष कुमार शामिल थे।
गोष्ठी का संचालन अरविंद मिश्र ने किया।
16 नवंबर 2025 को प्रो. हितेंद्र
मिश्र के साथ एक विशेष संवाद-सत्र का आयोजन किया गया। इसमें उन्होंने कहा कि हिंदी
पत्रकारिता बंगाल से शुरू हुई, लेकिन उसको शीर्ष पर पहुंचाने वाले मराठी भाषी थे।
पत्रकारिता की यह यात्रा 200वें वर्ष की उसी दिशा में कोलकाता से मुंबई की ओर चलकर
आई है। कभी अखबार की एक आवाज पर हजारों लोग खड़े हो जाते थे। आज भी पत्रकारिता ही
खड़े होकर सवाल खड़े करती है। इस सत्र को प्रो. राम मोहन पाठक ने भी संबोधित किया।
16 नवंबर 2025 के अंतिम विचार-सत्र
में जिसका विषय था 'भारतीय भाषाई साहित्य और हिंदी अनुवाद (मराठी-हिंदी केंद्रित)
की अध्यक्षता डॉ. गजेंद्र देवड़ा, साठे कालेज, मुंबई ने की। मुख्य अतिथि प्रोफेसर
पवित्र श्रीवास्तव रहे। संचालन का दायित्व-निर्वहन कमलेश भट्ट कमल ने किया तथा
वक्ताओं के रूप में डॉ रंजन सिंह (भोपाल), शमशेर जमदग्नि (प्रयागराज), डॉ. अलीम
अहमद खान (सागर), ओम प्रकाश त्रिपाठी (सोनभद्र) व जयप्रकाश मिश्र (कोलकाता) की
उपस्थिति थी।
समापन-सत्र की अध्यक्षता मुंबई मराठी
पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र वाबले ने की। मुख्य अतिथि के रूप में डा.
अमिता दुबे की उपस्थिति रही। संचालन अरविंद मिश्र का रहा। धन्यवाद शरद कुमार
त्रिपाठी ने दिया। समापन समारोह के मंच पर प्रो. राम मोहन पाठक, संदीप चाह्वाण,
नूतन अग्रवाल, संजीव पांडेय, कमलेश भट्ट कमल, दिनेश पांचाल, राजलक्ष्मी कृष्णन,
प्रो. सोमा बंद्योपाध्याय की उपस्थिति
रही। समापन सत्र में डॉ. नीलम वर्मा की कृति 'उत्तिष्ठ भारत' का विमोचन भी
किया गया।
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प्रस्तुति
: कमलेश भट्ट कमल
मो. 9968296694
