राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में दिल्ली, उत्तर प्रदेश के जिले जैसे गौतमबुद्ध नगर (नोएडा, ग्रेटर नोएडा), गाजियाबाद, हरियाणा के जिले जैसे फरीदाबाद, गुरुग्राम, सोनीपत आदि शामिल हैं। ये क्षेत्र शिक्षा की दृष्टि से देश में अग्रणी हैं, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं। दिल्ली-एनसीआर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में देश के अग्रिम क्षेत्रों में है, लेकिन “गुणवत्ता के साथ समावेशन” और “सटीक डेटा पारदर्शिता” की कमी अभी भी बड़ी चुनौतियाँ हैं। ज़िलेवार संख्या, विषयवार छात्रों की उपस्थिति और संसाधन-विभाजन के डेटा का अभाव नीति निर्माताओं व शोधकर्ताओं दोनों के लिए समस्या है। यदि ये आंकड़े ठीक से एकत्रित हों और सार्वजनिक हों तो शिक्षा नीतियों को बेहतर तरीके से तैयार किया जा सकता है। संसाधन प्रभावी तरीके से आवंटित किए जा सकते हैं। छात्रों को बेहतर अवसर मिल सकते हैं।
राष्ट्रीय स्तर का डेटा (एआईएसएचई रिपोर्ट के अनुसार)
भारत में 45,473 कॉलेज एआईएसएचई से पंजीकृत हैं। जिनमें से लगभग 42,825 ने 2021-22 सर्वे में प्रतिक्रिया दी। इनमें उद्योग, तकनीकी, इंजीनियरिंग कॉलेजों की हिस्सेदारी लगभग 6.1 प्रतिशत है। शिक्षक-शिक्षण, शिक्षा-विषयक कॉलेज (टीचर एजुकेशन) लगभग 8.7 प्रतिशत हैं। अधिकांश कॉलेजों की छात्र संख्या छोटी-मोटी है। करीब 65.1 प्रतिशत कॉलेजों में नामांकन 500 से कम छात्रों का है। विषयवार नामांकन के लिए, उदाहरण के लिए आर्ट सामान्य एजुकेशन, कॉमर्स आदि तंत्रों में बड़े अनुपात में छात्र हैं। इंजीनियरिंग, तकनीकी और मेडिसिन और नर्सिंग जैसे विषयों में कम, पर लगातार वृद्धि हो रही है।
ज़िलेवार हाल एवं प्रमुख चुनौतियाँ
दिल्ली (एनसीआर)
200-350 कॉलेज, उच्च-शिक्षण संस्थाएँ (सामान्य, प्राइवेट, प्रोफेशनल) आर्ट, कॉमर्स एवं साइंस कॉलेज बड़ी संख्या में हैं। कुछ विशेष तकनीकी, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट एवं बीएड कॉलेज। कुछ कॉलेजों का बुनियादी संसाधन कम, अत्यधिक छात्र-संख्या के कारण क्षेत्रों में दबाव।
गौतमबुद्ध नगर (नोएडा-ग्रेटर नोएडा, यूपी)
अनुमानतः 100-150 कॉलेज। प्रोफेशनल पाठ्यक्रम (इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट), कंप्यूटर, क्षेत्रीय कला-विज्ञान कॉलेज, बीएड आदि। यातायात और रहन-सहन खर्च, निजी कॉलेजों में फीस अधिक, कॉलेजों की गुणवत्ता में भिन्नता।
गाजियाबाद (यूपी)
लगभग 250-300 कॉलेजों की सूची-लिस्टिंग मिलती है। सामान्य शिक्षा, प्रोफेशनल पाठ्यक्रम; कॉमर्स, साइंस, कम्प्यूटर, शिक्षण प्रशिक्षण (टीचर एजुकेशन) अधोसंरचना और प्रयोगशालाओं की कमी, अध्यापक-छात्र अनुपात में असंतुलन, छात्रावास आदि सुविधाएँ कम।
फरीदाबाद (हरियाणा)
अनुमान 120-150 कॉलेज। इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी कॉलेज, सामान्य कॉलेज, बीएड आदि। औद्योगिक-प्रदूषण, आवास की समस्या; सार्वजनिक कॉलेजों में दाखिला प्रक्रिया या छात्र-सराहना में पारदर्शिता की आवश्यकता।
गुरुग्राम एवं नज़दीकी क्षेत्र
80-130 कॉलेज, विशेष टेक्नोलॉजी, मैनेजमेंट संस्थाएँ अधिक, निजी कॉलेजों की संख्या ज्यादा बहुत, अधिक फीस, ट्रैफ़िक एवं पब्लिक ट्रांसपोर्ट की समस्या, कुछ कॉलेजों की मान्यता और प्रतिष्ठा का प्रश्न।
सोनीपत अन्य हरियाणा जिले
एनसीआर में कम से कम 50-80 कॉलेज, सामान्य, कॉमर्स, आर्ट्स कुछ प्रोफेशनल। क्षेत्रीय पहुंच और पारिवारिक खर्च, लैब व किताबालय की कमी, छात्र-परिवहन की समस्या।
उपलब्धियाँ, कमियाँ और सुधार की संभावनाएँ
1-उपलब्धियाँ
विविधता में वृद्धि-एनसीआर क्षेत्र में कला-विज्ञान, कॉमर्स, तकनीकी व प्रबंधन पाठ्यक्रमों की विविधता है। छात्रों को विकल्प मिलते हैं और निजी संस्थान भी बड़े पैमाने पर पेशेवर शिक्षा मुहैया करा रहे हैं।
विश्वविद्यालय और शोध संस्थानों की उपस्थिति-आईआईटी दिल्ल्ी, जेएनयू और डीयू जैसे उच्च स्तरीय संस्थाएँ हैं जो राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हैं। इनमें शोध, ग्रेजुएट और पोस्ट-ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों का अच्छा अवसर मिलता है।
पहुंच और सुलभता-एनसीआर की स्थिति की वजह से अधिकांश जिलों व कस्बों से परिवहन व लॉजिस्टिक दृष्टि से पहुंच बेहतर है। निजी कॉलेजों ने छात्रावास, ऑनलाइन शिक्षा आदि विकल्प दिए हैं जिससे दूर-दराज से आने वाले छात्रों को लाभ हुआ है।
2-प्रमुख कमियाँ
जिलेवार सटीक डेटा की कमी-जैसा कि आपने बताया, सूची-लिस्टिंग वेबसाइट अक्सर अपडेटेड नहीं होतीं, एआईएसएचई में सार्वजनिक रूप से ज़िलेवार स्तर पर पूरी तरह प्रकाशित डेटा नहीं मिलता।
गुणवत्ता में भिन्नता-कुछ कॉलेज उन्नत सुविधाएँ, शिक्षण व प्रयोगशालाएँ प्रदान करते हैं, जबकि कई छोटे या प्राइवेट कॉलेजों में संसाधन, अधोसंरचना व अनुभवी शिक्षक की कमी है।
उच्च शुल्क एवं आर्थिक बोझ-विशेषकर निजी एवं प्रोफेशनल कॉलेजों में फीस बहुत अधिक हो जाती है, छात्रवृत्ति या आर्थिक सहायता सीमित है।
स्ट्रीमवार असंतुलन-आर्ट, कॉमर्स, सामान्य स्ट्रीम आदि में सीटों की कमी या प्रवेश प्रक्रिया कठिनाई है।
छात्र-संख्या बोझ और संसाधन प्रबंधन-बड़े कॉलेजों में विशेष रूप से क्लास-रूम, पुस्तकालय, प्रयोगशालाएँ व अध्ययन क्षेत्रों पर दबाव है, सुविधाएँ पुरानी या अपर्याप्त होती हैं।
3-सुधार के सुझाव
आधिकारिक ज़िला-वार सर्वे एवं डेटा सार्वजनिक करना-एआईएसएचई, राज्य शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन मिलकर ज़िलेवार, स्ट्रीमवार, छात्र-संख्यावार डेटा समय-समय पर अपडेट करें और सार्वजनिक पोर्टलों पर रखें।
गुणवत्ता मानदंडों को सुदृढ़ करें-कॉलेजों को नाक और एनबीए जैसे मान्यता-संस्थानों की ज़रूरत अनुसार समय-समय पर रेटिंग और सुधार की प्रक्रिया से गुजरना चाहिए। प्रयोगशालाओं, लाइब्रेरी, शिक्षक-प्रशिक्षण व पाठ्यचर्या में नियमित अपडेट ज़रूरी है।
वित्तीय सहायता व छात्रवृत्तियों का विस्तार-गरीब और मध्यम वर्ग के छात्रों के लिए सरकारी छात्रवृत्तियाँ, विशेष योजना, फीस में रियायत आदि बढ़ानी चाहिए ताकि आर्थिक कारणों से शिक्षा न रुके।
प्रौद्योगिकी और ऑनलाइन संसाधनों का उपयोग-हाइब्रिड शिक्षा मॉडल, डिजिटल लाइब्रेरीज़, ऑनलाइन पाठ आदि को अपनाना, विशेष रूप से उन कॉलेजों के लिए जहाँ इन्फ्रास्ट्रक्चर कम है।
प्रोफेशनल और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा-उद्योग-संघों के साथ साझेदारी, इंटर्नशिप, कौशल-केंद्र, आधुनिक प्रयोगशालाएँ स्थापित करना चाहिए। छात्रों को रोजगार-उन्मुख शिक्षा मिले।
भौगोलिक एवं परिवहन दृष्टि से बेहतर पहुंच-अधिक कॉलेज दूरदराज क्षेत्रों में खोलने चाहिएं या आवास और परिवहन सुविधाएँ अच्छी करनी चाहिएं ताकि विद्यार्थियों का समय व धन बच सके।
लेखक
डॉ. चेतन आनंद
(कवि-पत्रकार)
