बेंगलुरू के प्रतिष्ठित माउंट कार्मेल कॉलेज में 30-31 जुलाई को “जनजातीय संस्कृति, विरासत और पारंपरिक प्रथाएं” विषय पर भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, भारत सरकार के सहयोग से दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गेहलोत, राज्यपाल कर्नाटक ने भारत की जनजातीय संस्कृति और उनकी विरासत को संरक्षित कारण के लिए बिरसा मुंडा के योगदान को सराहा। उन्होंने भारत सरकार द्वारा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष में चलाई जा रही जनजातीय गौरव संगोष्ठी योजना की सराहना करने हुए कहा कि भारत सरकार उन गुमनाम महावीरों को समाज से परिचित करने में जो प्रयास कर रही है वह अतुलनीय है। उनका कहना था कि जनजातीय विरासत को समाज के सामने लाना अत्यंत आवश्यक है वह केवल संग्रहलयों तक सीमित न रहे। इस संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में समानांतर रूप से हुआ। इस अवसर पर संगोष्ठी में प्रस्तुत किए जानेवाले 150 से भी अधिक शोध पत्रों के शोध सार की संकलित पुस्तक और संयोजक डॉ. राठोड पुंडलिक द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘ग्रीनोवेशन’ का लोकार्पण भी किया गया।
संगोष्ठी में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद ले सदस्य सचिव प्रो. धनंजय सिंह ने जनजातीय समाज के विकास में ICSSR की भूमिका पर विचार करते हुए सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं से अवगत कराया। संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित बेंगलुरू सिटी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के. आर. जलजा और बेंगलुरू विश्वविद्यालय के कुलपति जयकारा शेट्टी एम ने भी इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। उद्घाटन समारोह में माउंट कार्मेल कॉलेज की सुपीरीयर सिस्टर फ्रिडोलीन, निदेशक सिस्टर अल्बिना और प्राचार्या डॉ. जॉर्ज लेखा आदि उपस्थित रहे।
संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में सर्वश्री हरीश अरोड़ा, सुधीर प्रताप सिंह, सुधीर सोनी, वाहरु सोनवणे, रणेन्द्र, हरीराम मीणा, विनय यादव, इस्पाक अली, श्रीनिवासय्या, पंकज सकसरिया आदि विचारकों और शिक्षाविदों ने अपने विचार रखे। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में दस सत्रों में विभिन्न उपविषयों पर वक्ताओं द्वारा विचार विमर्श किया गया और 150 से भी अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति हुई। इस अवसर पर हाइब्रिड मोड पर देश के अनेक राज्यों के प्रपत्र वाचकों द्वारा अपने विचार रखे गए।
संगोष्ठी के समापन समारोह के मुख्य अथिति आदिवासी विचारक और लेखक श्री वाहरु सोनवणे तथा विशेष अथिति प्रो. सुधीर सोनी रहे। इन विद्वानों द्वारा श्रोताओं को जनजातीय समुदायों और भाषाओं के रूप में आदिवासी के महत्व के बारे में संबोधित किया गया। हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. कोयल विश्वास द्वारा संपादित 'भाषा कौशल और भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध आयाम' का लोकार्पण हुआ। सम्मेलन की रिपोर्ट हिंदी और अंग्रेजी में क्रमशः डॉ. कोयल बिस्वास और डॉ. प्रियंका दत्ता के द्वारा प्रस्तुत की गई। संगोष्टी के अंत में डॉ. एलिस मैथ्यू ने सभी आमंत्रित अतिथियों और उपस्थित प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
संगोष्ठी का आयोजन डॉ. राठोड़ पुंडलिक के संयोजन तथा डॉ. कोयल बिस्वास के सह-संयोजन में हुआ। संगोष्ठी की आयोजित समिति में डॉ. सुमा, डॉ. एलिस मैथयू, डॉ. विजयप्रिया, डॉ. सुबा मैन्यूल, डॉ. सुमति आर., डॉ . ज्योतिर्मयी, डॉ. वाणीश्री बुग्गी, सुश्री आतिकाख़ान, डॉ. प्रियंका दत्ता, डॉ. अनुपमा पी, डॉ. कौशल पटेल, डॉ . वर्षाली ब्रह्मा, डॉ. प्रियंका, डॉ. सुरेश डुडवे के अतिरिक्त विधि, मुस्कान, भाग्यश्री, परी, अनुष्का, आलिया, रेहान, दितिका, अंशिका आदि विद्यार्थियों का विशेष सहयोग रहा।