-डॉ. अशोक कुमार गदिया
भारत एवं जापान लगभग एक ही समय में पुनर्निर्माण की ओर अग्रसर हुए। ये वही 1947-48 का काल था। जापान कहाँ पहुँचा और हम कहाँ पहुँचे। 75 सालों में जापान ने अभूतपूर्व विकास किया है, खासकर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद। युद्ध में हार के बाद, जापान ने तेज़ी से आर्थिक पुनर्निर्माण किया और 1960 और 70 के दशक में “आर्थिक चमत्कार“ का अनुभव किया, जिससे यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई। यह विकास उच्च शिक्षित, कुशल कार्यबल, विद्युत एवं इस्पात जैसे प्रमुख उद्योगों में पूंजी व संसाधनों का संकेंद्रण, विदेशी सहायता और तकनीकी ज्ञान के उपयोग के कारण संभव हुआ।
जापान के विकास के मुख्य बिंदु-
औद्योगिक विकास-जापान ने 19वीं सदी के अंत में ही औद्योगिक क्रांति की शुरुआत कर दी थी और युद्ध के बाद इसे तेजी से आगे बढ़ाया।
आर्थिक चमत्कार-1960 और 70 के दशक में, जापान ने 10 प्रतिशत से अधिक की वार्षिक जीडीपी वृद्धि दर हासिल की, जिससे इसे “आर्थिक चमत्कार“ का नाम दिया गया।
तकनीकी प्रगति-जापान ने विनिर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में तकनीकी नवाचारों में महत्वपूर्ण प्रगति की।
शिक्षा और मानव संसाधन-जापान में उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण पर बहुत जोर दिया गया, जिससे एक कुशल कार्यबल का निर्माण हुआ।
सामाजिक विकास-जापान ने स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा और जीवन स्तर में भी सुधार किया है।
हालांकि, जापान को हाल के वर्षों में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जैसे कि धीमी आर्थिक वृद्धि, जनसंख्या में कमी और बुढ़ापा। जापान का विकास एक प्रेरणादायक कहानी है, जो दिखाती है कि कैसे एक देश युद्ध के बाद अपनी अर्थव्यवस्था और समाज का पुनर्निर्माण कर सकता है।
यह कहने-लिखने की आवश्यकता नहीं कि जापान विश्वशक्ति बना और भारत एक विपन्न देश बना, जिसकी 80 करोड़ जनता को आज भी सरकार को खिलाना पड़ता है। इसके मुख्य कारण हैं, जिस प्रकार व्यक्ति की आत्मशक्ति उसके वर्तमान एवं भविष्य का निर्माण करती है उसी प्रकार देश में व्याप्त आत्मशक्ति उसके इतिहास एवं भविष्य का निर्माण करती है। जापान अपनी प्राचीन आत्मा के साथ जुड़ा रहा, जो थी समुराई की आत्मा। जापान में आध्यात्मिक साधना के साथ-साथ तलवार के धनी योद्धाओं की एक परंपरा है, जिन्हें समुराई कहा जाता है। जबकि भारत ने अपनी विरोचित क्षत्रिय परंपराओं को छोड़ दिया। हमने अपने अन्दर वर्षों से विद्यमान क्षत्रित्व को छोड़ दिया, जिसका यह परिणाम है कि जापान आज एक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र है और हम एक विपन्न एवं कमज़ोर राष्ट्र हैं।
हमारे देश ने एक नये प्रकार के समाज का निर्माण किया जो कि विदेशी एवं देशी शासकों की पूर्ति हेतु बनाया गया। आज भी हम अपने समाज को इन विदेशी एवं देशी शासकों की आवश्यकता की पूर्ति के ही लिये तैयार कर रहे हैं।
आज जो समाज हम बना रहे हैं उसकी मुख्य विशेषता क्या है-
1. औसत बुद्धि, कृत्रिम रूप से संतोषी, मध्यमवर्गीय एवं उच्च मध्यमवर्गीय हिन्दू परिवार।
2. सरल स्वभाव, उथली प्रकृति, जागरूक उस हद तक जितना उन्हें सुविधाजनक लगता है।
3. अपने जीवन से अंधा प्रेम करने वाले अपनी सुख-सुविधा से बढ़कर किसी को न चाहने वाले, किसी भी विपरीत परिस्थिति में स्वयं को और अपनी भौतिक संपत्ति को बचाने वाले।
4. जो इनकी सुख-सुविधा को बाधित करता है उसके धुर विरोधी उसको मूर्ख, अज्ञानी, घातक या अतिवादी कहकर उसका विरोध करने वाले।
5. न्याय, परिवर्तन, जागृति, पर्यावरण या अन्य आदर्शवादी विषयों पर ये लोग बहुत चर्चा करते हैं, पर स्वयं से कुछ नहीं करने वाले।
6. अपनी औसत समझ, संयमित व्यवहार, शांत एवं आज्ञाकारी स्वभाव के चलते समाज में सम्मानीय स्थान प्राप्त करने वाले।
7. महान, साहसिक, त्याग, महती उद्योग, बड़ी सफलताओं, अत्यन्त कठिन परिस्थितियों आदि से चालाकीपूर्वक दूर रहने वाले।
8. बड़े ही वाकपटु, मतलबी, अवसरवादी, चालाक, भोगवादी, साहसिक, त्यागी एवं बलिदानी आत्माओं के प्रयासों का सुख लूटने वाले। कुछ नहीं कर चालाकी से श्रेय लेने वाले।
9. ये लोग अपने जीवन में कला, कविता, प्रज्ञा, अध्यात्म, दर्शन, आडम्बर, नैतिकता आदि का ओरा बनाये रखते हैं।
10. इस तरह के लोगों को ऐसा कोई उद्योग, विचार, रुचिकर नहीं लगता जो इनके जीवन के परम उद्देश्य से इन्हें दूर ले जायें।
11. धनोपार्जन, परिवार का पोषण, बच्चों को स्नातक एवं स्नातकोत्तर तक शिक्षा दिलवाना, बच्चों का अच्छे परिवार में बहुत दहेज लेकर या देकर विवाह करवाना, अपने प्रभाव से कहीं अच्छी नौकरी दिलवाना एवं सेवा में उच्च पद प्राप्त करना, अति सामान्य जीवन जीकर मृत्यु को प्राप्त करना ही इनके जीवन का मुख्य उद्देश्य होता है।
12. इस तरह के लोग समाज में स्थिरता तो लाते हैं पर वे आलस्य एवं खुदगर्जी को जन्म देने वाली होती है, जोकि कायरता की नींव पर खड़ी होती है।
13. ऐसी जड़ता समाज में कोई क्रान्तिकारी परिवर्तन नहीं ला सकती और ऐसी मानसिकता देश को महान एवं आत्मनिर्भर कभी नहीं बना सकती है।
14. ऐसी परिस्थितियों में बहादुरी, सच्चाई, सरलता, निश्छलता, ज़िन्दादिली, सहयोग, सद्भाव एवं पुरुषार्थ पग-पग पर हारता है और झूठ, फरेब, चाटुकारिता, मक्कारी, कामचोरी, धोखाधड़ी, कायरता, अवसरवादिता पग-पग पर जीत हासिल करती है।
यदि हमें अपने देश एवं समाज को स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर एवं मजबूत बनाना है तो हमें ऐसे नौजवान तैयार करने होंगे जो क्षात्र धर्म का पालन करने वाले हों।
क्षात्र धर्म का मतलब-
1-हर भारतीय नौजवान जो शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक रूप से सुदृढ़ हो, जिसमें देश-प्रेम एवं सामाजिक संवेदना कूट-कूटकर भरी हो,
2-जो भारतीय संस्कृति एवं भारतीय जीवन मूल्यों का उपासक हो।
3-जिसकी रग-रग में अपने राष्ट्रीय, सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षाओं का रक्त प्रवाहित हो रहा हो।
4-जो अपनी संस्कृति, सभ्यता एवं महापुरुषों का मरते दम तक आदर करता हो।
5-जिसका दिल-दिमाग एवं क्रियाकलाप आधुनिक शिक्षा एवं तकनीक तथा प्राचीन संस्कारों का उत्तम मिश्रण हो।
6-जो निर्भीक हो, निडर हो, साहसी हो, बलशाली हो, जिन्दादिल हो, सच्चा हो, सरल हो, जो बिना पलक झपकाये साक्षात् मृत्यु का सामना करने से नहीं डरता हो।
7-जो अपने समाज एवं राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा हर परिस्थिति में करने को कटिबद्ध हो।
8-जिसकी प्राथमिकता बिना किसी भेदभाव के सबके लिये न्याय एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने की हो।
9-जो व्यापार, व्यवसाय, अर्थ, भौतिक विकास या भौतिक सुख से ज़्यादा अपने राष्ट्र, समाज, माता-पिता, संस्कृति, जीवन मूल्य, राष्ट्रीय स्वाभिमान, राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता को ज्यादा महत्व दे।
यह है आज के ज़माने का क्षात्र धर्म जिसका ज्ञान हमारे नौजवानों को होना चाहिये और हर संभव प्रयास करते हुए इसकी पालना करवानी चाहिये।
समाप्त