(नई दिल्ली) : रविवार, दिनांक 10 मार्च, 2024 की दोपहर पर्पल पेन काव्य गोष्ठी विश्वम्भरा' का आयोजन अणुव्रत भवन, आईटीओ में किया गया। विशिष्ट अतिथियों -- एशियाई स्वर्ण पदक शूटर सुश्री अनु तोमर, प्रख्यात कवयित्री सुश्री कल्पना शुक्ला सहित आयोजन अध्यक्ष, वरिष्ठ लेखिका सुश्री शारदा मदरा के गौरवपूर्ण सानिध्य में आयोजित गोष्ठी 'विश्वंभरा' का संयोजन 'अंतर्राष्टीय माहिला दिवस और फाल्गुन के उपलक्ष्य में किया गया था। 
गोष्ठी का शुभारंभ माँ वीणापाणि की वंदना और पुष्प अर्पण से हुआ। तत्पश्चात पर्पल पेन समूह की संस्थापक-अध्यक्ष सुश्री वसुधा 'कनुप्रिया' ने अंगवस्त्र, पुष्पहार, 'तेजस्विनी सम्मान' प्रतीक चिन्ह एवं उपहार भेंट कर मंचासीन अतिथिगण का स्वागत किया। सदन में उपस्थित सभी कवयित्रियों को भी एक-एक पेन भेंट कर वसुधा 'कनुप्रिया' से उनका भी अभिनंदन किया। 
'विश्वबाहर 2024' में दिल्ली/एनसीआर से पधारे पच्चीस कविगण ने विभिन्न रसों, छंदों में एक से बढ़कर एक गीत, ग़ज़ल, गीतिका, दोहे, मुक्तक, कुंडलियां, आदि पढ़कर सभी को वाह वाह करने पर मजबूर कर दिया।। 
देश के प्रतिष्ठित मंचों से काव्य पाठ कर अपनी प्रखर लेखनी और मधुर कंठ के लिए प्रसिद्ध कवयित्री कल्पना शुक्ला के शानदार गीत पेश कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया -- 
"नारी क्या, कहना मुश्किल है
संसृति का एक अजूबा है,
यह है निमग्न संसार मध्य,
संसार इसी में डूबा है।"
अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज़ अनु तोमर ने महिला सशक्तिकरण पर अपने विचार एक प्रेरक कविता के रूप में रखते हुए कहा  -- 
"राम युग हो या कलियुग 
ख़ुद को साबित करना होगा। 
ख़ुद के बलबूते होकर 
तुझे माँ दुर्गा बनना होगा। 
साहस का परिचय देकर 
हर इक बाधा को पार करना होगा! 
तुझमें है देवी की शक्ति 
आत्मविश्वास से
हर तूफान से तुझको लड़ना होगा!"
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ लेखिका सुश्री शारदा मदरा ने पर्पल पेन समूह और उसकी संचालक वसुधा 'कनुप्रिया' के प्रयास की प्रशंस करते हुए समूह की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना की। आपने मधुर स्वर में गीत प्रस्तुत कर आपने गोष्ठी को ऊँचाई प्रदान की ।
कार्यक्रम की संयोजक, वसुधा 'कनुप्रिया' ने महिला सशक्तिकरण पर एक नज़्म और होली पर कुछ दोहे प्रस्तुत किए। आपकी होली पर पेश ग़ज़ल के अशआर बहुत पसंद किए गए  -- 
"समां रंगी गले मिल जाएँ भी दिलदार होली है,
न शरमाएँ करें हम बेतहाशा प्यार होली है।
तुम्हारे प्यार में डूबूँ सरापा इतनी है ख़्वाहिश,
बढ़ो आगे करो तुम रंग की बौछार होली है।"
मिलन सिंह मधुर ने अवधी में होली गीत पढ़ा तो वहीं 
ब्रज की होली की अनूठी प्रस्तुति इन पंक्तियों से दी जगदीश मीणा ने -- 
"मस्ती छाय रही फागुन की, 
चहूँ दिस बिखर रेह्यो है रंग 
अब तो गली गली हुरियारे, 
जम कै घोट रहे हैं भंग।"
ममता लड़ीवाल ने अपनी बात कुछ इस तरह रखी --- 
"तोड़ दूँगी मैं सभी वादे मुहब्बत वाले
रब्त उनसे जो रहे सिर्फ़ तिज़ारत वाले
इम्तिहां और नहीं, और नहीं और नहीं...
ज़ब्त अब होते नहीं पल ये अज़ीयत वाले" 
हशमत भारद्वाज ने बिटिया की विदाई पर गीत पढ़ा तो सभी की आँखें नम हो गई  -- 
"आज रूख़सत हुई है मेरी लाड़ली
दूसरे घर चली है मेरी लाड़ली।"
होली का एक रंग भूपेंद्र कुमार ने इन पंक्तियों से प्रस्तुत किया -- 
"आँखों ही की छुअन से, हो जाता मुख लाल।
प्रेमी होली खेलते, बिना अबीर गुलाल।" 
जहाँ एक तरफ महिलाओं को समर्पित और नारी विमर्श पर कवितायेँ प्रस्तुत की गयीं, वहीं दूसरी ओर फाग के रंगों से भी श्रोता सराबोर हुए। सर्व श्री/सुश्री रेखा जोशी, गीता भाटिया, वन्दना मोदी गोयल, मीनाक्षी भटनागर, सत्यम भास्कर, विनीत त्यागी, मनोज कामदेव, सुषमा शैली, बबली सिन्हा वान्या, रामकिशोर उपाध्याय, शालिनी शर्मा, दिनेश आनंद, पूनम झा, गुंजन अग्रवाल 'अनहद', रजनीश त्यागी 'राज़' एवं गुरचरण मेहता रजत ने भी शानदार कविता पाठ किया। गोष्ठी का सञ्चालन सुश्री पूजा श्रीवास्तव ने किया। 
'विश्वभरा  2024' के समापन पर पर्पल पेन समूह की अध्यक्ष वसुधा 'कनुप्रिया' ने गुलाल लगाकर सभी को रंगोत्सव की बधाई दी। 
(रिपोर्ट -- वसुधा 'कनुप्रिया') 

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